रायपुर के शासकीय दूधाधारी बजरंग महिला महाविद्यालय में जनजातीय गौरव माह के अंतर्गत जनजातीय समाज का गौरवशाली अतीत _ ऐतिहासिक सामाजिक और आध्यात्मिक योगदान विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया । कार्यक्रम में मुख्य वक्ता डाॅ राकेश पाण्डेय ने बताया कि भारतीय संस्कृति की विशेषता यह है कि वह आरण्यक जीवन शैली के साथ ही ग्राम्य और नगरीय जीवन शैली को एक सूत्र में पिरोए हुए है। आदिवासियों के लिए जंगल आत्मा है जबकि नगरीय समाज के लिए जंगल आजीविका और व्यवसाय का साधन बन गया है । आदिवासी समाज का अध्यययन एन्थ्रोपोलाॅजी के जरिए किया जाता है जबकि दूसरे समाजों का अथ्ययन इतिहास के माथ्यम से किया जाता है। सवाल यह है कि जीवंत समाज को जानने का यह कैसा तरीका है। हमें उनके बीच जाकर उनको समझना चाहिए। आदिवासी समाज प्रकृति को सहेजने वाला समाज है और नगरीय समाज उसे बिगाड़ कर आधुनिकता का पाठ पढ़ रहा है । 15 नवंबर को राष्ट्रीय आदिवासी दिवस मनाया जाता है इसी के तहत आदिवासी माह का आयोजन किया जा रहा है । कार्यक्रम की संयोजक डॉ बी एम लाल ने स्वागत उद्बोधन में कहा कि जनजातीय समाज के गौरवशाली अतीत को याद करने के लिए हम सब एकत्रित हुए हैं । आज हम उन लोक नायकों और योद्धाओं को याद करेंगे । इनके बलिदान की कहानी सर्वत्र व्याप्त है । अमर बलिदानी वीर नारायण सिंह प्रमुख योद्धा रहे । उन्होंने आदिवासी समुदाय की हितों की रक्षा हेतु युद्ध किया । जल जंगल जमीन के लिए ही ये अधिकतर लड़े । जनजातियों ने अपने परंपरा को अक्षुण्ण रखा है ।
विशिष्ट अतिथि साहित्यकार ,समाजसेवी हिम्मत सिंह अरमो ने जय जोहार जय छत्तीसगढ़ का उद्घोष किया और कहा कि जनजातीय समाज आदिम समाज है जो अतीत में सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ता है । बिहार झारखंड उड़ीसा मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ ये सब गोंडवाना लैंड से जुड़ा हुआ है । 700 साल का गौरवशाली इतिहास है जनजातीय समाज का । रानी दुर्गावती जैसी वीरांगना की शहादत उल्लेखनीय है । ये समाज स्वाभिमानी रहा और सदैव जन्मभूमि के लिए लड़ा ।
विशिष्ट अतिथि पूर्व आईएएस फूलसिंह नेताम ने कहा कि भगवान बिरसा मुंडा का बहुत योगदान रहा है समाज के उत्थान में। मुगल काल से अंग्रेजों के शासन तक इन जननायकों ने आजादी दिलाई । शंकर शाह रघुनाथ शाह ने जबलपुर में लड़ाई की और शहीद हुए । शहीद गेंद सिंह ने बालोद जिले में विद्रोह किया ,वीर गुण्डाधुर ने बस्तर में विद्रोह किया ।प्राचार्य डॉ किरण गजपाल ने कहा कि स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में जनजातियों का योगदान अविस्मरणीय है । जनजातीय क्षेत्र वन और खनिज संपदा से संपन्न है क्योंकि वे प्रकृति की रक्षा करते है और वहीं प्रसन्नता पूर्वक रहते है । समानता सहयोग और समूह इनके समाज के मूल मंत्र है । मातृसत्ता का सम्मान इनके समाज में बहुत होता है जो अनुकरणीय है ।
मुख्य अतिथि नीलकंठ टेकाम विधायक केशकाल पूर्व आईएएस ने अपने उद्बोधन में कहा कि जिन लोगों ने प्रकृति को अपने जीवन का अभिन्न अंग माना वही आदिवासी कहलाए । 2047 में जब हम विकसित भारत की बात करें तब आदिवासियों को हमेशा की तरह पिछड़ा हुआ नहीं रहने देना है । उनके विकास की बात करना जरूरी है । अस्मिता की रक्षा और अस्तित्व को बचाने के प्रयास सदैव किए जाने चाहिए , इनके बारे में जो गलतफहमियां फैली हुईं हैं उनको दूर करना आवश्यक है । मैं 13 वर्ष तक हॉस्टल मैं रहा मैं 4 घंटे खेलता था और केवल दाल भात खाकर हम रहते थे , काजू बादाम कभी नहीं खाया हम लोगों ने । आदिवासी संस्कृति सर्वाधिक समृद्ध और सशक्त संस्कृति है । रायपुर को बसाने का काम रायसिंह गोंड एक आदिवासी ने किया। जनजाती के अस्तित्व में ही मानव का अस्तित्व छिपा है ।
कार्यक्रम की विशिष्ट वक्ता डॉ शंपा चौबे रहीं। मंच संचालन कविता ठाकुर ने किया । धन्यवाद ज्ञापन कैरोलिन एक्का ने किया । आयोजन समिति के सदस्य डॉ गौतमी भतपहरी , संध्या ठाकुर ,मिलाप सिंह ध्रुव भी कार्यक्रम में मौजूद रहे।