3 ट्रांसप्लांट केस में अंगदान समिति ने एनओसी नहीं दी, शासन को लिखा- मामलों की जांच कराएं राज्य स्तरीय अंगदान समिति ने पहली बार किडनी ट्रांसप्लांट के 3 मामलों में एनओसी देने से साफ इनकार कर दिया है। ऐसा इसलिए क्योंकि रिसीवर-डोनर के बीच ‘स्वेच्छा से अंगदान का भाव’ नजर नहीं आ रहा। इतना ही नहीं, तीनों मामलों में रिसीवर बिलासपुर जिले के हैं और डोनर मुंगेली जिले के। समिति को शक है कि रिसीवर और डोनर के बीच लेन-देन हुआ है। इस आशंका में समिति ने संचालक स्वास्थ्य सेवाएं (सह समूचित प्राधिकारी) को जांच के लिए पत्र लिखा है। समिति की सिफारिश पर सरकारी एजेंसी जांच शुरू करती, उससे पहले भास्कर ने मुंगेली पहुंचकर इन डोनर्स को खोज निकाला। एनओसी क्यों नहीं, इस बारे में भास्कर ने डोनर्स तक जाकर वजह खोजी 31 साल की सविता (बदला हुआ नाम) 4 बच्चों की मां हैं। उनका परिवार एक कमरे में रहता है। वे पुटुपारा, लोरमी की रहने वाली हैं और किडनी डोनेट करने जा रही हैं। पति कबाड़ का धंधा करता है। परिवार पर 80 हजार का लोन है। भास्कर ने पूछा, किडनी क्यों डोनेट कर रही हैं? बोलीं- दीदी का दर्द मुझसे देखा नहीं जाता। ऐसे ही 37 साल के मुकेश (बदला हुआ नाम) का ठकुरीपारा लोरमी में कच्चा घर है। मजदूरी करके 300 रुपए रोज कमा लेते हैं। बोले- दोस्त के परिवार का हम पर बहुत एहसान है। इसी तरह 36 साल के राम (बदला हुआ नाम) सुकली में रहते हैं। बोले- ठेकेदार के बड़े उपकार हैं। मेरी किडनी से उनकी जान बच जाएगी, और क्या चाहिए। ये तर्क उन 3 डोनर्स के हैं, जिन्होंने स्वेच्छा से किडनी डोनेशन करने के लिए आवेदन किया है। दरअसल, भास्कर ने इस मामले में 5 महीनों तक नजर रखी। इसलिए टीम भास्कर को अप्रैल में ही पता चला कि राज्य स्तरीय मानव अंग प्रत्यारोपण समिति ने मुंगेली के रिसीवर द्वारा किए गए आवेदन पर एनओसी नहीं दी है। फिर मई में मुंगेली से पुन: आवेदन आया। और अब इसी महीने में एक और आवेदन। तीनों केस में कई समानताएं हैं। नियम फिजिकल वेरीफिकेशन का, अंगदान समिति जिला प्रशासन से कराती है सत्यापन
अंगदान प्रत्यारोपण कानून के मुताबिक ‘स्वेच्छा से अंगदान’ के मामलों में राज्य स्तरीय समिति को डोनर, रिसीवर के घर जाकर फिजिकल वेरीफिकेशन करना है। मगर, समिति जिला प्रशासन से सत्यापन करवाती है। राज्य स्तर पर इतनी सख्त काउंसिलिंग होती है कि गड़बड़ी की गुंजाइश कम है। समिति ने शासन से लीगल एडवाइजर और सोशल वर्कर की बतौर सदस्य नियुक्ति की मांग की है। वैसे प्रदेश में अब तक 750 किडनी ट्रांसप्लांट हुए। इनमें से 36 ऐसे मामले में मंजूरी दी गई, जिनमें डोनर-रिसीवर का खून रिश्ता नहीं था। भास्कर ने इनमें से 10 का अध्ययन किया तो पता लगा कि डोनेर-रिसीवर दूर के रिश्तेदार, दोस्त या पड़ोसी थे। उनका आत्मीय रिश्ता भी था। तीन मामलों में ही अंगदान संभव, खून का रिश्ता, नजदीकी रिश्तेदार या स्वेच्छा से दे
प्रदेश में विदेशी नागरिक को ऑर्गन डोनेशन की अनुमति नहीं है। ट्रांसप्लांट नहीं हो सकता। तीन मामलों में अंगदान हो सकता है। पहला- डोनर-रिसीवर में खून का रिश्ता। दूसरा- नजदीकी रिश्तेदार हो। तीसरा- स्वेच्छा से, जिसमें प्रलोभन न दिया जाए।
डोनर्स का ये हाल: एक कमरे के कच्चे में मकान में काट रहे जिंदगी संबंधी बताने के लिए रिसीवर-डोनर ने साथ खाते फोटो कराए
मुंगेली के डोनर और मुंगेली-बिलासपुर जिले के रिसीवर के मामलों को अंगदान प्रत्यारोपण समिति ने ‘स्वेच्छा से अंगदान’ की गाइड-लाइन के अनुसार नहीं पाया। दोनों पक्ष समिति में पेश हुए। दस्तावेज दिए। साथ खाने के फोटो लगाए, ताकि बता सकें कि वे पुराने पहचान वाले हैं। समिति के सवालों पर उनके रटे-रटाए जवाब हैं। समिति ने मुंगेली एसडीएम को अंगदान प्रत्यारोपण प्रमाण-पत्र को फिर से सत्यापित करने के लिए लिखा है। तीनों मामलों में ये समानताएं- सभी डोनर एक ही जिले के, रिसीवर भी एक जिले के, ट्रांसप्लांट कोलकाता में होना है तीनों मामलों में दूर-दूर तक स्वेच्छा से अंगदान का भाव नहीं नजर आया। हां, इनमें 3 बातें कॉमन हैं। पहली- तीनों मुंगेली जिले के हैं। दूसरी- नट समुदाय से हैं। तीसरी- तीनों ट्रांसप्लांट फोर्टिस हॉस्पिटल कोलकाता में होने हैं। हॉस्पिटल में इनकी जांच हो चुकी है। उन्हें छत्तीसगढ़ से एनओसी चाहिए। भास्कर को पता चला कि डोनर भले ही अलग-अलग गांवों के हों, पर वे एक-दूसरे को जानते हैं।
अब सवाल उठ रहे हैं कि गरीबी का सामना कर रहे इन डोनर्स को किसने प्रलोभन देकर किडनी डोनेशन के लिए मनाया। हर केस की डिटेल वीडियो रिकॉर्डिंग, दस्तावेज सत्यापन किया जाता है। प्रशासन के जरिए सत्यापन कराया जाता है। आशंका हो तो एनओसी नहीं दी जा रही। अभी हमारी ओर से 3 केस में एनओसी नहीं दी है। इन मामलों में समिति ने शासन से मार्गदर्शन मांगा है।
-डॉ. एसबीएस नेताम,अध्यक्ष, राज्य स्तरीय अंग प्रत्यारोपण समिति