तारीख- 22 सितंबर 2019 जगह- अमेरिका का टेक्सास राज्य पीएम मोदी टेक्सास के ह्यूसटन में ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान मोदी ने ट्रम्प की मौजूदगी में कहा, “अबकी बार ट्रम्प सरकार।” अमेरिका में एक साल बाद ही चुनाव थे। ऐसे में मोदी के इस बयान को डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए विरोध और ट्रम्प के समर्थन में देखा गया। तारीख- 22 जून 2023 जगह- वॉशिंगटन डीसी पीएम मोदी अमेरिकी संसद के जॉइंट सेशन को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने कहा, “अमेरिका में लाखों लोग ऐसे हैं जिनकी जड़ें भारत में हैं। कई लोग गर्व के साथ इस सदन में बैठे हैं।” मोदी ये कहते हुए अचानक पीछे मुड़े फिर मुस्कुराकर कमला की तरफ देखते हुए कहा, “एक मेरे पीछे भी बैठी हैं।” उनकी बात सुनते ही सदन में मौजूद सभी नेता खड़े होकर तालियां बजाने लगे। पूरा सदन तालियों से गूंजने लगा। सदन के स्पीकर माइक जॉनसन भी, कुर्सी से उठकर तालियां बजाने लगे। 2 महीने बाद 5 नवंबर को होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में कमला और ट्रम्प आमने-सामने हैं। इससे ठीक पहले मोदी अमेरिका पहुंचे हैं। वे न्यूयॉर्क में 25 हजार भारतवंशियों को संबोधित करेंगे। अमेरिका में भारतीय मूल के करीब 50 लाख लोग रहते हैं। जो चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि मोदी का चुनाव से पहले अमेरिका जाना किसके लिए फायदेमंद होगा, कमला और ट्रम्प के मोदी से कैसे रिश्ते हैं, भारत के मुद्दों पर दोनों उम्मीदवारों का क्या स्टैंड है… PM मोदी ने लगातार 12 मिनट की थी ट्रम्प की तारीफ… दोनों नेताओं की अब तक की पार्टनरशिप
ट्रम्प और मोदी के बीच काफी मजबूत संबंध रहे हैं। दोनों एक-दूसरे को अच्छा दोस्त बताते हैं और आपस में बड़ी ही गर्मजोशी से मिलते हैं। सितंबर 2019 में जब मोदी अमेरिका गए थे तो उनके लिए टेक्सास में “हाउडी मोदी” कार्यक्रम का आयोजन हुआ था। पीएम मोदी को सुनने के लिए 50 हजार भारतवंशी पहुंचे थे। इस कार्यक्रम में ट्रम्प भी शामिल हुए थे। तब पीएम मोदी ने 12 मिनट तक ट्रम्प की तारीफों के पुल बांधे थे। ट्रम्प इतनी देर मोदी से तारीफें सुनकर मुस्कुराते रहे थे। PM मोदी ने ट्रम्प की तारीफ में कहा था- ट्रम्प पूरी दुनिया में लोकप्रिय हैं। उन्हें धरती पर हर कोई जानता है। राष्ट्रपति बनने से पहले भी दुनिया ट्रम्प को जानती थी। उन्होंने CEO से कमांडर इन चीफ तक का सफर तय किया है। भारत के लोग ‘अबकी बार, ट्रम्प सरकार’ के नारे से जुड़ाव महसूस करते हैं। मोदी के भारतवंशियों के बीच कही इस बात पर भारत में विवाद हो गया। राहुल गांधी ने कहा कि जयशंकर को थोड़ी डिप्लोमेसी प्रधानमंत्री मोदी को सिखानी चाहिए। उनके बयान से डेमोक्रेटिक पार्टी नाराज हो सकती थी। आलोचना के बाद खुद जयशंकर ने मोदी के भाषण पर सफाई दी थी। 2019 में हाउडी मोदी के बाद ट्रम्प ने फरवरी 2020 में भारत का दौरा किया था। उनके स्वागत के लिए अहमदाबाद में दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम में कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इसे ‘नमस्ते ट्रम्प’ नाम दिया गया था। इसमें 1 लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए थे। पीएम मोदी ने उनका हाथ पकड़कर स्टेडियम का चक्कर भी लगाया था। कमला के भाषणों में भारत की विरासत का जिक्र, पर भारत नहीं आईं
2021 में मोदी पहला बार कमला से मिले थे। इस दौरान उन्होंने कमला को भारत आने का न्योता दिया था, लेकिन वे बीते 4 साल में एक बार भी भारत नहीं आईं। पिछले साल 2023 में जब मोदी फिर अमेरिका गए तो कमला ने उनके लिए लंच होस्ट किया था। इस दौरान उन्होंने लगभग 15 मिनट की स्पीच दी। हालांकि, भाषण में भारत से जुड़ी उनकी विरासत का जिक्र ज्यादा और पीएम मोदी का जिक्र कम ही था। कमला ने कोरोना से निपटने और भारत की आर्थिक तरक्की को लेकर पीएम मोदी की तारीफ की थी। वहीं, PM मोदी ने अपने स्वागत के लिए कमला हैरिस का शुक्रिया अदा किया था। उन्होंने कहा था, “जब कमला हैरिस की मां अमेरिका आईं तो उन्होंने पत्रों के जरिए भारत से संबंध बनाए रखे। दूरी हजारों मील की थी, लेकिन दिल जुड़े थे। कमला ने इन बातों को बुलंदियों तक पहुंचाया।” इससे पहले जून 2021 में मोदी ने कमला को फोन किया था। उन्होंने कमला को अमेरिका में रह रहे भारतीयों की मदद के लिए शुक्रिया कहा था। कमला VS ट्रम्प: भारत के लिए कौन बेहतर? भारतीयों को वीजा देने के मामले में- ट्रम्प ने H-1B पर बैन लगाया था, कमला से बेहतर की उम्मीद
वीजा पॉलिसीज को लेकर ट्रम्प के मुकाबले कमला हैरिस का रुख ज्यादा लचीला है। भारत से नौकरी की तलाश में अमेरिका जाने वाले लोगों को H-1 B वीजा की जरूरत होती है। ट्रम्प हमेशा से ऐसे वीजा के खिलाफ हैं। वे इसे अमेरिकी लोगों के लिए बुरा बताते हैं। ट्रम्प ने अपने राष्ट्रपति शासन के दौरान H-1B पर बैन लगा दिया था। वहीं, कमला हैरिस वीजा के मुद्दे पर नरम रूख रखती हैं। वे चाहती हैं कि जिस देश को जितना वीजा चाहिए, अमेरिका उसे मुहैया करवाए ताकि अप्रवासी अमेरिका में रह सकें। इस हिसाब से भारतीयों के लिए कमला हैरिस बेहतर हैं। यही वजह है कि अमेरिका के 55% भारतवंशी डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थक हैं। वहीं, सिर्फ 25% भारतवंशी रिपब्लिकन पार्टी के सपोटर्स माने जाते हैं। व्यापार मामले में – ट्रम्प ने भारत को स्पेशल बिजनेस पार्टनर की कैटेगरी से निकाला
व्यापार के मुद्दे पर ट्रम्प सरकार भारत के लिए ज्यादा नुकसानदेह है। ट्रम्प आयात को महंगा बनाने और अमेरिकी निर्यात को बढ़ावा देने के पक्ष में रहते हैं। इसका भारत को नुकसान हो सकता है। ट्रम्प के कार्यकाल में व्यापार के मुद्दे पर भारत और अमेरिका के बीच कई बार विवाद के मौके आए थे। ट्रम्प ने अपने पहले कार्यकाल में भारत को स्पेशल बिजनेस पार्टनर की कैटगरी से हटा दिया था। इस कैटगरी में शामिल होने वाला देश करीब 2 हजार प्रोडक्ट्स बिना किसी टैक्स के अमेरिका में बेच सकता है। लेकिन ट्रम्प का कहना था कि भारत इस सिस्टम का गलत फायदा उठाता है। भारत खुद तो कम टैक्स देना चाहता है मगर अमेरिकी कंपनियों से ज्यादा टैक्स वसूलता है। जुलाई 2024 में ट्रंप ने एक चुनावी रैली में कहा था कि भारत ने हार्ले डेविडसन पर 200% टैरिफ लगा दिया था। टैरिफ लगाने के कारण बाइक महंगी हो गई। इसलिए अमेरिकी कंपनी अपनी बाइक वहां नहीं बेच पाई। ट्रम्प ने कहा कि वे विदेशी कंपनी अपने देश में चाहते हैं मगर उनके प्रोडक्ट्स पर महंगी टैरिफ लगा देते हैं। ट्रेड डेफिसिट और टैरिफ को लेकर डेमोक्रेट्स ज्यादा सही हैं। भारत की आंतरिक राजनीति- बाइडेन सरकार ने कई मौके पर भारतीय की आंतरिक राजनीति पर टिप्पणी कर भारत सरकार को असहज कर दिया है। इस मामले में ट्रम्प सरकार का रिकॉर्ड ठीक रहा है। मानवाधिकार और कश्मीर मुद्दा कमला हैरिस का कश्मीर और मानवाधिकार मामले पर उनका स्टैंड भारत से मेल नहीं खाता है। कमला ने आर्टिकल 370 के हटाए जाने और इसके बाद कश्मीर में मानवाधिकार से जुड़े सवालों पर बयान दिया था। उन्होंने मोदी सरकार की आलोचना भी की थी। आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद अक्तूबर 2019 में हैरिस ने कहा था, “हमें कश्मीरियों को याद दिलाना होगा कि वे दुनिया में अकेले नहीं हैं। हम स्थिति पर नजर रख रहे हैं। अगर हालात बदले, तो दखल देने की जरूरत पड़ेगी।” हालांकि उपराष्ट्रपति बनने के बाद कमला हैरिस के रुख में बदलाव आया है। उन्होंने कभी भी भारत सरकार को असहज करने वाला बयान नहीं दिया है। प्रवासियों को लेकर डेमोक्रेटिक पार्टी और कमला हैरिस का स्टैंड
डेमोक्रेटिक पार्टी अवैध इमिग्रेशन को लेकर भी लचर रूख रखने के लिए जानी जाती है। इसे लेकर पार्टी की आलोचना होती है। हालांकि कमला हैरिस इमिग्रेशन को लेकर कड़े कानून लाने की वकालत करती हैं। कमला का आरोप है कि रिपब्लिकन सरकार नहीं चाहती कि इसका कोई समाधान निकले। दरअसल, अमेरिका में हर दिन अवैध रूप से हजारों लोग घुस रहे हैं। ये अमेरिका में छोटी नौकरी या फिर मजदूरी करके गुजर-बसर करते हैं। अमेरिकी उद्योगपतियों को फैक्ट्रियों को चलाने के लिए सस्ते मजदूरों की जरूरत होती है। अगर अवैध इमिग्रेशन बंद हो गया, तो उन्हें सस्ते मजदूर नहीं मिलेंगे। वहीं, अगर इमिग्रेशन को वैध कर दिया जाए, तो इन मजदूरों को सरकारी नियमों के तहत वेतन देना होगा। इससे बिजनेस कंपनियां का मुनाफा घट जायेगा। यही वजह है कि ज्यादातर उद्योगपतियों का सरकार पर दबाव रहता है कि मौजूदा सिस्टम में बदलाव न हो। यही वजह है कि ज्यादातर उद्योगपति डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थन में हैं और उन्हें ज्यादा चंदा भी दे रहे हैं। चीन को काउंटर करने में कमला या ट्रम्प कौन बेहतर?
इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस की प्रियंका सिंह का कहना है कि चीन को अमेरिका सबसे बड़ा खतरा मानता है। ऐसे में किसी भी पार्टी की सरकार हो वह चीन से वैसे ही डील करेगी जैसे वो करती आई है। ट्रम्प ज्यादा वोकल हैं तो वे चीन को लेकर कई बयान देते रहेंगे लेकिन सरकार के स्तर पर दोनों ही पार्टियां चीन के साथ एक जैसा रूख रखेंगी। वे कई बार कहते हैं कि वे चीन से आए सामानों पर भारी टैरिफ लगाएंगे। लेकिन बाइडेन सरकार भी ऐसे कदम उठा चुकी है। बाइडेन प्रशासन चीनी EV, सेमीकंडक्टर, बैटरी, सोलर सेल, स्टील जैसी चीजों पर 100% तक टैरिफ लगा चुकी है। इसका फायदा भारत को हो सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री को भारत में लाना चाहते हैं। कौन बेहतर एक्सपर्ट कमेंट- प्रियंका सिंह का कहना है कि कमला हैरिस जीतें या फिर ट्रम्प किसी भी जीत हो, इससे भारत-अमेरिका के संबंधों में खास बदलाव देखने को नहीं मिलेगा। भारत के लिए दोनों ही अच्छे हैं। भारत और अमेरिका के बीच पिछले कुछ सालों में आर्थिक, सैन्य या फिर कूटनीतिक रिश्ते सभी काफी आगे बढ़ चुके हैं। अगला राष्ट्रपति किसी भी पार्टी का हो वो इसे और आगे लेकर जाएगा। अब इसमें ब्रेक नहीं लगेगा। कुछ मामले पर इश्यू रहेंगे लेकिन इससे दोनों देशों के संबंधों में कोई फर्क नहीं पड़ेगा। फिर भी कुछ मुद्दे हैं जहां दोनों प्रशासन में अंतर दिख सकता है। इसकी संभावना काफी कम है कि भारत मुखर होकर किसी एक कैंडिडेट का समर्थन करें।