सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकान्त ने कहा है कि न्यायाधीश को बहादुर, साहसी और अपने अंतरात्मा के प्रति ईमानदार होना चाहिए। रविवार को हाईकोर्ट में उनके मुख्य आतिथ्य में जिला न्यायपालिका के सशक्तीकरण व सिविल व आपराधिक विधि पर राज्य स्तरीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया, जिसमें विशिष्ट अतिथि सुको के न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा उपस्थित रहे। कान्फ्रेंस का उद्घाटन करते हुए सुको के न्यायमूर्ति सूर्यकान्त ने कहा कि कि पक्षकारों के सम्पर्क में सर्वप्रथम जिला न्यायपालिका आती है, ऐसी दशा में जिला न्यायपालिका की जिम्मेदारी व भूमिका महत्वपूर्ण है और यदि न्यायाधीश निर्णय लेने के लिए प्रतिबद्ध हैं तो कोई प्रक्रियात्मक व तकनीकी अड़चन न्यायाधीश को एक तार्किक निर्णय लेने में बाधा नहीं बन सकती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि न्यायदान में आने वाली तकनीकी व प्रक्रियात्मक बाधाओं के प्रति व्यक्तिगत दृष्टिकोण अपनाने के बजाय ऐसी बाधाओं के प्रभावी निवारण के लिए संस्थागत दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। तुच्छ और तुक्केवाली मुकदमेबाजी से रहें दूर जस्टिस सूर्यकान्त ने तुच्छ व तुक्के वाली मुकदमेबाजी की बढ़ती प्रवृत्ति को हतोत्साहित करने के संबंध में जोर देते कहा कि न्यायपालिका में झूठ व बेबुनियाद मामलों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। एक मजबूत व साहसी जिला न्यायपालिका तुच्छ व तुक्के वाली मुकदमेबाजी को निपटने में सक्षम हो सकती है। उन्होंने जिला न्यायपालिका के सदस्यों को साहस व ईमानदारी के साथ निर्णय लेने का आह्वान किया। आस्था और विश्वास को बनाए रखें उन्होंने जिला न्यायपालिका के सदस्यों से कहा कि जिला न्यायपालिका की अधीक्षण की शक्त्ति उच्च न्यायालय को प्राप्त है अत: जिला न्यायपालिका उच्च न्यायालय के प्रति अपनी अन्तरात्मा के प्रति और सबसे महत्वपर्ण न्याय के आकांक्षी के रूप में आम जनता के प्रति जवाबदेह है। उन्होंने कहा कि एक पक्षकार किसी न्यायाधीश को नहीं जानता और वह इस आस्था व विश्वास के साथ आता है कि उसके साथ न्याय होगा। हमारा दायित्व है कि हम उनकी आस्था और विश्वास को बनाए रखें। जिला न्यायपालिका व्यक्तिगत स्वतंत्रता की संरक्षक न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा ने जिला न्यायपालिका की भूमिका व महत्व पर जोर देते कहा कि भारत में जिला न्यायपालिका केवल वैधानिक न्यायालय ही नहीं है बल्कि इसकी जड़ें भारत के संविधान में अवस्थित हैं। उन्होंने जिला न्यायपालिका को सिविल व आपराधिक दोनों क्षेत्रों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षक बताया। न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार निश्रा ने विशिष्ट अतिथि के रूप में भाषण करते कहा कि नए प्रावधानों के लागू होने से कानूनों के प्रति जिला न्यायपालिका का दृष्टिकोण व निर्वचन अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है, इसलिए जिला न्यायपालिका को कानूनों को लागू करने में व निर्वचन करने में अत्यंत सतर्क रहना होगा। न्यायपालिका को सशक्त बनाना उद्देश्य: सीजे छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने कहा कि सभी के सामूहिक प्रयासों से हम एक सशक्त व प्रभावी जिला न्यायपालिका को सुनिश्चित करने में सक्षम होंगे और आज की यह कान्फ्रेंस जिला न्यायपालिका को सशक्त करने के हमारे प्रतिबद्धता को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि कान्फ्रेंस के तकनीकी सत्र निश्चित तौर पर न्यायिक अधिकारियों की सिविल व आपराधिक विधि के संबंध में समझ को और विस्तृत व वर्तित करने वाला होगा। पुस्तक का विमोचन कॉन्फ्रेंस के दौरान छत्तीसगढ़ जिला न्यायपालिका पर एक पुस्तक ‘डिस्ट्रिक्ट कोर्ट्स ऑफ छत्तीसगढ़’ का अनावरण न्यायमूर्तिगण द्वारा किया गया। इस पुस्तक में राज्य के समस्त जिला न्यायालयों के बारे में जानकारी के साथ-साथ जिले के इतिहास, संस्कृति व विविधता के बारे में सारगर्भित जानकारी के साथ-साथ न्यायिक अधिकारियों के विद्धतापूर्ण लेख भी समाविष्ट हैं।