24.8 C
Bhilai
Wednesday, October 16, 2024

पेजर फिर वॉकी-टॉकी ब्लास्ट, हिजबुल्लाह के पीछे क्यों पड़ा मोसाद:इजराइल से जीती जमीन छुड़वाई, लेबनान के प्रधानमंत्री से ज्यादा ताकतवर संगठन का चीफ नसरल्लाह

तारीख- 17 सितंबर, समय- दोपहर के साढ़े 3 बजे। लेबनान में एक के बाद एक धमाके होने लगे, जो लगभग 1 घंटे तक जारी रहे। इन धमाकों का तरीका आम नहीं था इतिहास में पहली बार पेजर में ब्लास्ट हो रहे थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इन धमाकों का मकसद चंद मिनटों में उन 4 हजार हिजबुल्लाह लड़ाकों को मारना था, जिन्हें इजराइल दुश्मन मानता है। इस हमले में 12 लोगों की मौत हुई तो वहीं हजारों घायल हुए। हिजबुल्लाह अपने कम्युनिकेशन सिस्टम पर हुए धमाकों से उबर ही रहा था कि अगले ही दिन 18 सितंबर की शाम को उनके वॉकी-टॉकी में धमाके होने लगे। हमले में 25 लोग और मारे गए। दोनों घटनाओं में 37 मारे गए। लगातार 2 दिन हुए हमलों के बाद हिजबुल्लाह के चीफ हसन नसरल्लाह ने इजराइल से बदला लेने की कसम खाई है। 19 सितंबर की शाम को दिए भाषण में नसरल्लाह ने कहा, ‘मैं पलटवार के समय, जगह और तरीके का जिक्र नहीं करूंगा, पर इजराइल को जवाब जरूर मिलेगा।” गाजा जंग के बीच इजराइल लेबनान के पीछे क्यों पड़ा है, इजराइली हमलों के बाद बदले की कसम खाने वाला हसन नसरल्लाह कौन है… गाजा के बाद लेबनान बॉर्डर पर इजराइल की नजर लेबनान और इजराइल के बीच अभी विवाद की 2 अहम वजह हैं… इजराइल ने अभी हमला क्यों किया? अलजजीरा के मुताबिक गाजा में एक साल से जारी जंग अब आखिरी पड़ाव पर है। 7 अक्टूबर का हमला प्लान करने वाला हानियेह और मोहम्मद दाइफ मारे जा चुके हैं। ऐसे में इजराइल अब लेबनान की तरफ बढ़ रहा है। लेबनान में पेजर अटैक से एक दिन पहले यानी 16 सितंबर को इजराइल के प्रधानमंत्री ने जंग में अपने उद्देश्यों में एक और मकसद जोड़ा। नेतन्याहू ने कहा- मैंने ये पहले भी कहा है और अब फिर कह रहा हूं, मैं लेबनान बॉर्डर से बेघर हुए लोगों को वापस लौटा कर रहूंगा इजराइल के रक्षा मंत्री योव गैलेंट ने भी घोषणा कर बताया था कि वे अपना फोकस गाजा से लेबनान की तरफ शिफ्ट कर रहे हैं। ऐसे में लेबनान पर अटैक कर इजराइल हिजबुल्लाह को बैकफुट पर लाना चाह रहा है। ताकि उनके 60 हजार लोग वापस लेबनान बॉर्डर के नजदीक अपने घर जा सकें। हालांकि हिजबुल्लाह के चीफ कमांडर ने अपने भाषण में साफ कहा है कि जब तक इजराइल गाजा से निकल नहीं जाता वे लेबनान बॉर्डर पर हमले जारी रखेंगे। वे इजराइलियों को घर नहीं लौटने देंगे। जानिए आखिर ये हसन नसरल्लाह है कौन, इसकी लेबनान में इतनी क्यों चलती है… गरीब परिवार में जन्मा, गृह युद्ध में घर छोड़ा 1960 में एक गरीब शिया परिवार में पैदा हुए हसन नसरल्लाह लेबानान की राजधानी बेरूत के शारशाबुक इलाके में रहते थे। उन्हें बचपन से ही धार्मिक चीजों में खास दिलचस्पी थी। वे ईरान में पैदा हुए इमाम सैयद मूसा सद्र से बेहद प्रभावित थे। सद्र ने 1974 में लेबनान के शिया समुदाय को ताकतवर बनाने के लिए ‘मूवमेंट ऑफ डिप्राइव्ड’ की शुरुआत की। लेबनान में इसे ‘अमल’ नाम से जाना गया। 1975 में लेबनान में गृहयुद्ध छिड़ गया। सद्र ने दक्षिणी लेबनान को इजराइल की घुसपैठ से बचाने के लिए अमल के आर्म्ड विंग की शुरुआत की। इसे लेबनानी रेजिस्टेंस ब्रिगेड नाम दिया गया। तब 15 साल के नसरल्लाह ने भी अमल जॉइन कर लिया। जब गृहयुद्ध उग्र हो गया तो नसरल्लाह का परिवार अपने पैतृक गांव बजौरीह चला गया। दिसंबर 1976 में नसरल्लाह शिया मदरसा (हौजा) में पढ़ने के लिए इराक के नजफ शहर चले गए। यहां उनकी मुलाकात लेबनानी स्कॉलर सैयद अब्बास मुसावी से हुई। 1978 की शुरुआत में शियाओं पर इराकी बाथिस्टों की कार्रवाई की वजह से नसरल्लाह और मुसावी को लेबनान वापस जाना पड़ा। मुसावी ने लेबनान के बालबेक में एक धार्मिक मदरसा की स्थापना की जहां नसरल्ला ने पढ़ाई जारी रखी। 1979 तक अमल के अधिकारी बन चुके नसरल्लाह और मुसावी ने ईरान में इस्लामिक क्रांति के दौरान इमाम रुहोल्लाह खुमैनी का समर्थन किया, जिसके बाद इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान की स्थापना हुई। लेबनान के खिलाफ इजराइल ने छेड़ी जंग, हिजबुल्लाह का गठन हुआ 3 साल बाद जुलाई 1982 में इजराइल ने लंदन में अपने राजदूत श्लोमो आर्गोव पर जानलेवा हमले का बदला लेने के लिए लेबनान पर हमला कर दिया। 10 हफ्तों तक बेरूत को घेरने के बाद सितंबर में इजराइल ने लेबनान पर कब्जा कर लिया। इसमें 20 हजार लोगों की मौत हुई, जिनमें कई फिलिस्तीनी भी शामिल थे। हमले के असर से निपटने के लिए, लेबनान के राष्ट्रपति इलायस सरकिस ने एक नेशनल सैल्वेशन कमिटी का गठन किया। अमल के लीडर नबीह बेरी और लेबनानी सेना के नेता बशीर गेमायेल ने भी यह कमिटी जॉइन कर ली। लेकिन अमल के सदस्यों में शामिल नसरल्लाह और मुसावी ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने अमल पर धोखा देने का आरोप लगाया। 1982 में संगठन से अलग हुए लोगों ने ईरान और सीरिया के समर्थन से हिजबुल्लाह का गठन किया। गठन के बाद हिजबुल्लाह ने लेबनान में इजराइल के खिलाफ गुरिल्ला कैंपेन शुरू किया। हिजबुल्लाह ने कहा कि वह इस अभियान के जरिए इजराइल से फिलिस्तीन को आजाद कराने की पटकथा लिख रहा है। इजराइली सैनिकों और सैन्य अड्डों पर हमला करने के अलावा हिजबुल्लाह ने फिदायीन हमले भी शुरू किए। इजराइल के खिलाफ हिजबुल्लाह के फिदायीन हमले
इस बीच नवंबर 1982 में लेबनान के टायर शहर में इजराइल के मिलिट्री हेडक्वार्टर पर आत्मघाती हमला हुआ। इसमें 75 इजराइली और 20 अन्य की मौत हुई, जिनमें से ज्यादातर कैदी थे। हिजबुल्लाह यहीं नहीं रुका। अप्रैल 1983 में लेबनान में मौजूद अमेरिकी दूतावास पर बम धमाका हुआ। इसमें 17 अमेरिकियों और 30 लेबनानियों की मौत हो गई। अमेरिकी दूतावास को शिफ्ट किया गया और करीब 1 साल बाद इसकी नई लोकेशन पर भी हमला हुआ। इस बीच बेरूत में अमेरिका के मरीन बैरक और फ्रांसीसी सैन्य अड्डों पर भी हमले हुए, जिनमें 300 से ज्यादा सैनिक मारे गए। हिजबुल्लाह ने हमलों की जिम्मेदारी नहीं ली लेकिन उसने इनका समर्थन किया। लगातार हमलों से की वजह से इजराइली सेना 1985 तक साउथ लेबनान के ज्यादातर हिस्से से पीछे हट गई। हालांकि, उसने सीमा के पास कई समुदायों पर कब्जा बनाए रखा। हिजबुल्लाह ने लेबनान में सिक्योरिटी जोन बनाने के नाम पर इजराइली ठिकानों पर हमला जारी रखा। उसी साल लेबनान में शिया ग्रुप के लड़ाके सैन डियागो जा रही TWA फ्लाइट 847 को हाईजैक कर बेरूत ले आए। इस दौरान एक यात्री को मार दिया गया, जबकि बाकी 152 लोगों की रिहाई के बदले इजराइल को 700 लेबनानी-फिलिस्तीनी कैदियों को आजाद करना पड़ा। हिजबुल्लाह ने एक बार फिर प्लेन हाईजैक की जिम्मेदारी नहीं ली, लेकिन उसने इसका समर्थन किया। इसके बाद 1985 में नसरल्लाह हिजबुल्लाह की एग्जीक्यूटिव काउंसिल के हेड बन गए। इस दौरान वे अक्सर ईरान में सुप्रीम लीडर खुमैनी से सलाह-मशविरा करते थे। ईरान के पूर्व जनरल हुसैन हामेदानी ने अपने मेमॉयर में बताया है कि नसरल्लाह को सीरिया के लिए नीतियां बनाने और कासिम सुलेमानी की मौत के बाद इराक में ईरान के सहयोगियों को एकजुट करने का काम सौंपा गया था। हिजबुल्लाह के चीफ बने नसरुल्लाह, इजराइल को लेबनान से खदेड़ा फरवरी 1992 में इजराइल की एयरस्ट्राइक में हिजबुल्लाह के चीफ मुसावी, उनकी पत्नी और बच्चे की मौत हो गई। उनके जनाजे पर नसरल्लाह ने कहा था, “चाहे हमारी हत्या कर दी जाए, चाहे हमारे घरों में सिर पर बम गिरा दिया जाए, हम अपनी लड़ाई से पीछे नहीं हटेंगे।” मुसावी के बाद हिजबुल्लाह की कमान नसरल्लाह के हाथ में आई। उनकी लीडरशिप में संगठन ने लंबी दूरी तक हमले में सक्षम रॉकेट हासिल किए। इसके जरिए हिजबुल्लाह के लिए उत्तरी इजराइल में हमला करना आसान हो गया। 1992 में नसरल्लाह के नेतृत्व में हिजबुल्लाह ने पहली बार संसदीय चुनाव लड़ा और 12 सीटें जीतीं। इसी के साथ संगठन लेबनान में राजनीतिक रूप से भी एक्टिव हो गया। अब तक जितने भी सशस्त्र संगठनों ने इजराइल के खिलाफ आवाज उठाई है, उनमें से हिजबुल्लाह सबसे बड़ी चुनौती साबित हुआ है। 1982 में संगठन के अस्तित्व में आने के बाद से अब तक एक साल भी ऐसा नहीं गया जब इजराइल और हिजबुल्लाह के बीच मुठभेड़ न हुई हो। मई 2000 में इजराइल दक्षिणी लेबनान से पूरी तरह पीछे हट गया। यह पहली बार था जब उसने बिना किसी संधि के किसी अरब इलाके पर कब्जा छोड़ा था। यह लेबनान में हिजबुल्लाह के लिए अब तक की सबसे बड़ी जीत थी। पूरे देश में जश्न का माहौल था। ठीक एक दिन बाद 26 मई 2000 को नसरल्लाह इजराइली सीमा से कुछ किलोमीटर दूर लेबनान के एक छोटे शहर बिंत जबेल पहुंचे। भूरे रंग के कपड़े और काला साफा बांधे 39 साल के नसरल्लाह ने कहा, “इजराइल के पास भले ही परमाणु हथियार मौजूद हैं लेकिन फिर भी वह मकड़े के जाल की तरह कमजोर है।” जुलाई 2006 में हिजबुल्लाह ने मुठभेड़ के दौरान इजराइल के 2 सैनिकों को बंधक बना लिया। तब एक बार फिर इजराइल ने लेबनान पर हमला कर दिया। 33 दिन तक चली इस जंग में हिजबुल्लाह लेबनान का सबसे मजबूत मिलिट्री फोर्स बनकर उभरा, जो देश के नागरिकों की रक्षा कर सकता था। जंग में हिजबुल्लाह ने 4 हजार रॉकेट फायर किए। 14 जुलाई 2004 को एक भाषण के दौरान नसरल्लाह ने बेरूत के लोगों को पश्चिम की तरफ देखने को कहा। ठीक उसी वक्त हिजबुल्लाह ने भूम्ध्य सागर में मौजूद इजराइल के नौसैनिक जहाज हानित पर मिसाइल दागी। इस हमले में कई लोगों की मौत हुई थी। इजराइल को लगातार कड़ी चुनौती देने से लेबनान में हिजबुल्लाह और नसरल्लाह की लोकप्रियता में काफी इजाफा हुआ। हालांकि, वे इजराइल की रडार पर आ गए। इसके चलते उन्होंने सार्वजनिक जगहों पर भाषण देना बेहद कम कर दिया। अब नसरल्लाह के ज्यादातर संबोधन पहले से रिकॉर्ड किए होते हैं। हिजबुल्लाह की राजनीति में एंट्री, सरकारी फैसलों पर वीटो लगाने का हक नसरल्लाह ने लेबनान की राजनीति में अपने पैर जमाने के लिए देश में हिजबुल्लाह की छवि बनाने का काम शुरू किया। उन्होंने देश के सबसे बड़े शिया समुदाय को सीधा समर्थन दिया। नसरल्लाह ने हिजबुल्लाह के नाम पर कई ऐसे सामाजिक कल्याण से जु़ड़े काम किए, जिसे लेबनान की सरकार नहीं कर पाई थी। नसरल्लाह के नेतृत्व में हिजबुल्लाह ने कई स्कूल, अस्पताल और चैरिटी आर्गेनाइजेशन बनवाए। इजराइल से जंग के बाद दिसंबर 2006 में हिजबुल्लाह ने लेबनान की सरकार में हिस्सेदारी और देश से अमेरिका के समर्थन वाले फौद सिनिओरा की सरकार को हटाने की मांग की। हिजबुल्लाह के समर्थन में हजारों लोगों ने बेरूत में कैंप लगाकर प्रदर्शन किए। इसके 2 साल बाद मई 2008 में अमेरिकी समर्थन वाली लेबनान की सरकार ने हिजबुल्लाह के टेलीकम्यूनिकेशन नेटवर्क को बंद करने की धमकी दी। इसके बाद हिजबुल्लाह और सरकार के समर्थकों के बीच हिंसा हुई। इसे देखते हुए सरकार पीछे हट गई और कतर की मध्यस्थता के समझौते के लिए तैयार हो गई। तमाम बैठकों के बाद हिजबुल्लाह को लेबनान की कैबिनेट के फैसले पर वीटो लगाने की इजाजत मिल गई। REFERENCE LINKS… https://www.middleeasteye.net/news/explainer-who-hezbollah-leader-hassan-nasrallah-profile-lebanon https://www.washingtonpost.com/world/2023/11/03/hasan-nasrallah-hezbollah-leader/ https://www.theguardian.com/world/article/2024/jun/27/hassan-nasrallah-hezbollah-leader-profile

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike
0FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles