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Thursday, January 16, 2025

रायपुर में शादी के 23 साल बाद ‘तीन तलाक’:पत्नी बोली- मेरा 22 तोला सोना उसने दूसरी औरत को दिया, पुलिस सुन नहीं रही

रायपुर में तीन तलाक का मामला सामने आया है। शादी के 23 साल बाद पति ने पत्नी को तलाक दे दिया। वहीं पत्नी का आरोप है कि पति ने उसका 22 तोला सोना भी लेकर दूसरी औरत को दे दिया है। पत्नी का ये भी आरोप है कि, पुलिस FIR भी नहीं कर रही। मामले की शिकायत रायपुर SSP समेत महिला थाने में की गई है। वहीं पति ने आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कहा कि, पत्नी ने झूठी शिकायतें दी हैं। वह खुद साथ नहीं रहना चाहती है। परिवार से एक बच्ची गोद ले ली दैनिक भास्कर को शमीना (बदला हुआ नाम) ने आप बीती सुनाई, जिसमें उसने कहा कि, उसका निकाह साल 2000 में हुआ था। शादी की शुरुआती दिनों में सब कुछ ठीक था। हम जॉइंट फैमिली में रहते थे। शादी के सालभर बाद बच्चा नहीं हुआ तो ससुराल वालों ने ताना देना शुरू कर दिया। इसके बाद मैं और मेरे पति ने अस्पताल जाकर डॉक्टर से चेकअप कराया लेकिन उसके बावजूद बच्चा नहीं हुआ। इसके बाद रिश्तेदार से बच्ची गोद ले ली, लगा कि बच्चे के आने के बाद ससुराल में सब कुछ ठीक हो जाएगा। इस बीच 2021 में मेरे पति का एक्सीडेंट हो गया। एक्सीडेंट के बाद वह 5 महीने तक पूरी तरह बेड में रहे। इस दौरान खाना, पीना से लेकर दवाई देने का पूरा इंतजाम मैंने किया। मायके से लाए गहने-जेवर दूसरी औरत को दिए शमीना ने आगे कहा कि, ठीक होने के बाद पति ने कोर्ट केस में रुपए की जरूरत बताई। कहा, मामला कोर्ट में चल रहा है और मायके से आया साढ़े 22 तोला सोना और 40 तोला चांदी खुद रख लिया। इसके बाद दबाव बनाने लगा कि उसे और भी पैसे चाहिए। मायके में भाइयों से पैसे लेकर आने का भी दबाव बनाया गया। मना करने पर मुझसे मारपीट भी की गई। शमीना ने बताया कि इस बीच उनके घर वालों को पता चला कि पति का दूसरी औरत के साथ चक्कर है। उसने गहने जेवर उसी औरत को दे दिए हैं। घर से बाहर निकाला, तीन बार तलाक कहा शमीना ने जब बातों का विरोध किया तो उसे घर से बाहर निकाल दिया। इसके बाद वह अपने मायके आ गई। इस बीच उसके पति ने घर बेच दिया और खुद किराये में जाकर रहने लगा। इस घटना के बाद शमीना के परिवार वाले उसके पति से मिलने पहुंचे तो वह भड़क गया। इस दौरान उसने तीन बार तलाक कह दिया। पुलिस नहीं कर रही कोई सुनवाई इस घटना को लेकर शमीना के वकील साजिद खान ने बताया कि 2023 के मई और दिसम्बर महीने में महिला थाना और टिकरापारा पुलिस को शिकायत दी थी। महिला थाने में उसकी काउंसिलिंग भी कराई गई। समझौता नहीं हो पाया। उसने तीन तलाक के खिलाफ रायपुर SSP संतोष सिंह को भी 14 अक्टूबर को FIR दर्ज करवाने का निवेदन किया। वहीं महिला थाना प्रभारी का कहना है कि, ये 2 साल पुराना आपसी विवाद का मामला है। महिला की शिकायत पर जांच के बाद कानून के मुताबिक कार्रवाई की जाएगी। पति बोला- झूठी शिकायतें है इस मामले में महिला के पति का पक्ष भी जाना गया, उसने कहा कि, पत्नी खुद उसके साथ नहीं रहना चाहती। उसने कभी घर से नहीं भगाया है। इसके अलावा तीन तलाक देने का आरोप गलत है। ये सिर्फ आपसी विवाद का मामला है। पति का दावा है कि यह मामला फिलहाल फैमिली कोर्ट में चल रहा है। जहां से न्याय होगा। तीन तलाक को लेकर केंद्र और सुप्रीम कोर्ट केंद्र के मुताबिक- यह प्रथा मुस्लिम महिलाओं से भेदभाव करती है केंद्र सरकार ने तीन तलाक के खिलाफ लाए कानून के बचाव में कहा- यह ऐसी प्रथा को गैर-जमानती अपराध बनाता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने ही मनमाना कहा था। यह प्रथा शादीशुदा मुस्लिम महिलाओं से भेदभाव करती है। केंद्र ने तर्क दिया कि यह कानून शादीशुदा मुस्लिम महिलाओं के लिए न्याय और समानता के अधिकार को सुनिश्चित करने में मदद करता है। इसके साथ ही यह गैर-भेदभाव और सशक्तिकरण के मौलिक अधिकार की रक्षा करने में भी मदद करता है। जमीयत का दावा- कानून संविधान के खिलाफ है सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2017 को तत्काल तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) असंवैधानिक घोषित किया था। वहीं, केंद्र सरकार ने 30 जुलाई 2019 को तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाया था। इसमें तीन तलाक को अपराध घोषित करके 3 साल की सजा का प्रावधान किया गया। कानून के खिलाफ दो मुस्लिम संगठनों- जमीयत उलेमा-ए-हिंद और समस्त केरल जमीयतुल उलेमा ने याचिका लगाई थी। इसमें कानून को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है। याचिका में मुस्लिम संगठनों का दावा है कि एक धर्म में तलाक के तरीके को अपराध बताया गया है, जबकि अन्य धर्मों में शादी और तलाक सिविल लॉ के अंतर्गत आता है। यह आर्टिकल 15 के खिलाफ है। केंद्र ने कहा-मुस्लिम महिलाओं के अधिकार बचाने के लिए यह कानून बनाया तीन तलाक कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं पर केंद्र सरकार ने 19 अगस्त को 433 पेज का जवाब दाखिल किया। केंद्र ने हलफनामे में कहा- तीन तलाक की प्रथा शादी जैसी सामाजिक संस्था के लिए घातक है। सरकार ने ये भी कहा कि यह (तीन तलाक) न तो इस्लामी है और न ही कानूनी। तीन तलाक किसी एक महिला के साथ किया गया निजी अपराध नहीं, बल्कि सामाजिक अपराध है। यह महिलाओं के अधिकारों और शादी जैसी सामाजिक संस्था के खिलाफ है। केंद्र ने कहा- शीर्ष कोर्ट से इस प्रथा को असंवैधानिक घोषित किए जाने के बावजूद मुस्लिम समुदाय ने इसे खत्म करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए। इसलिए संसद ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकार बचाने के लिए यह कानून बनाया।

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