एक्ट्रेस तिलोत्तमा शोम अपनी अलग-अलग भूमिकाओं के लिए जानी जाती हैं। हाल ही में नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई सीरीज ‘त्रिभुवन मिश्रा सीए टॉपर’ में एक्ट्रेस बिंदी जैन की भूमिका में दिखी हैं। पिछले दिनों दैनिक भास्कर से बातचीत के दौरान तिलोत्तमा ने बताया कि लोगों को उनके बारे में यह धारणा थी कि वे मेनस्ट्रीम सिनेमा की एक्ट्रेस नहीं बन सकती हैं। लेकिन 40 के बाद फिल्म ‘सर’ के लिए बेस्ट एक्ट्रेस क्रिटिक्स चॉइस अवॉर्ड हासिल करके साबित कर दिया कि उम्र कोई मायने नहीं रखता है। सवाल-जवाब के दौरान एक्ट्रेस ने अपने करियर से जुड़े कुछ और किस्से उजागर किए। सवाल- एक कलाकार को उम्र की सीमा में बांधकर क्यों रख दिया जाता है? जवाब- लोगों की यह अपनी सोच है, जो ऐसी धारणा बना लेते हैं। मेरे बारे में अक्सर कहा जाता था कि मेनस्ट्रीम सिनेमा की एक्ट्रेस नहीं बन सकती। लोग यह सोच लेते हैं कि अगर 20 साल की उम्र में ब्रेक नहीं मिला तो 30 साल की उम्र में ब्रेक मिलना मुश्किल है। 40 साल की उम्र में तो भूल ही जाओ कि ब्रेक मिलेगा। यह दबाव हमेशा बना रहता था। लेकिन मुझे 40 में ही सबसे ज्यादा काम मिला। सवाल- वैसे तो आपको सबसे पहला मौका ‘मानसून वेडिंग’ में मिल चुका था? जवाब- ‘मानसून वेडिंग’ तो मुझे 20 साल की उम्र में अचानक ही मिल गई थी। लेकिन मुझे अपनी पढ़ाई पूरी करनी थी। उस समय मुझे बताया गया था कि एक्टर की लाइफ बहुत छोटी होती है। अगर अभी से एक्टिंग पर फोकस नहीं करोगी, तो हीरोइन नहीं बन पाओगी। लेकिन मैंने अपने दिल की सुनी। मैंने अपने करियर को लेकर जो प्लान किया था। उस पर आगे बढ़ने की सोची। मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की और ड्रामा थेरेपी का कोर्स पूरा किया। सवाल- ‘मानसून वेडिंग’ के बाद फिर आपकी वापसी कब हुई? जवाब- मानसून वेडिंग के आठ साल के बाद इंडस्ट्री में वापस आई। समझ में नहीं आया कि शुरुआत कहां से और कैसे करें। उस समय लोग तरह-तरह के सुझाव दे रहे थे। कोई कहता था कि दांत सीधा करवा लो। एज ग्रुप को भी लेकर लोग कमेंट्स कर रहे थे। मैंने किसी और की कहानी पढ़कर अपनी जिंदगी डील नहीं की। उस वक्त भले ही काम कम था, लेकिन उसके अपने मजे थे। फ्रेंड्स और फैमिली के लिए वक्त होता था। उन्हें मैंने पूरा समय दिया। सवाल- लोगों ने आपके बारे में जो धारणा बना रखी थी, उससे निकलने के लिए क्या किया? जवाब- किसी के बारे में अपनी राय रखना लोगों को बहुत सहज लगता है। लेकिन यह अपने ऊपर निर्भर करता है कि उससे कैसे बाहर निकलना है। मैं समझ चुकी थी कि यहां सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता है। इस चीज को वक्त ने समझा दिया था। मैंने वही रास्ता चुना जिसमें खुद को सहज महसूस की। सवाल- जब आप इंडस्ट्री में आईं तो आपके लिए सबसे मुश्किल क्या रहा? जवाब- हमने खुद इस इंडस्ट्री को यह जानते हुए चुना है कि यहां बहुत मुश्किल है। तीन साल में एक बार भी काम के लिए फोन की घंटी नहीं बजी। ऐसा लगता था कि समय हाथ से निकल रहा है। उस समय किताबें मेरी दोस्त थीं। मेरे पेरेंट्स का बहुत ही इमोशनल सपोर्ट रहा। पैसे के लिए कभी गलत काम नहीं किया। सवाल- सक्सेस और फेलियर को किस तरह से देखती हैं? जवाब- पहले की तुलना में अभी काम ज्यादा मिल रहा है, लेकिन संघर्ष तो अभी भी करना पड़ रहा है। मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि फेलियर हूं। मैं तब भी सक्सेस थी और आज भी हूं। मेरी लिए सक्सेस यही है कि अपने सपने को पूरा कर रही हूं। मैं आर्थिक रूप से किसी पर निर्भर नहीं हूं। मेरी जरूरतें बहुत कम हैं। इसलिए पहले कम काम मिल रहा था तब भी ज्यादा तकलीफ नहीं हुई। मुंबई आने से पहले मैंने इतनी सेविंग कर ली थी कि एक साल तक खर्च चला सकूं। कम पैसे में कैसे जी सकते हैं, इस मामले तो हमलोग पूरी तरह से एक्सपर्ट हैं। मुझे किसी से पैसे उधार नहीं लेने पड़े। सवाल- अच्छा यह बताइए, एक्टिंग की तरह रुझान कैसे हुआ आपका? जवाब- मैं पढ़ाई में बिल्कुल भी अच्छी नहीं थी। लेकिन मेहनती बहुत थी। दिल्ली में लेडी श्रीराम कॉलेज में पढ़ रही थी। एक दिन पीयूष मिश्रा एक नाटक करने आए। वह नाटक देखकर सोची कि कौन इंसान है। मैं इतना प्रभावित हुई कि वहां से मेरा भी झुकाव नाटकों की तरफ हुआ। मैंने कॉलेज में नाटक करने शुरू किए। इससे फायदा यह हुआ कि मेरी हकलाहट दूर हो गई। उसके बाद अरविंद गौड़ के अस्मिता थिएटर ग्रुप में शामिल हो गई। फिर ड्रामा थेरेपी में मास्टर करने न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी चली गई। सवाल- वहां पर आपने जेल में हत्या के दोषियों को ड्रामा थेरेपी सिखाई, उसके बारे में कुछ बताएं? जवाब- न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी से ड्रामा थेरेपी करने के बाद मैंने राइकर आइलैंड की जेल में दो साल तक काम किया था। वो महिलाओं और पुरुषों की एक हाई सिक्योरिटी जेल है। वहां हफ्ते में दो बार पढ़ाने जाती थी। वहां स्टूडेंट्स और कैदियों के साथ काम करने पर मैंने क्राइम और उसकी सजा की पेचीदगी को समझा। वहां मुझे एक्टिंग में बहुत हेल्प मिली। मुझे तो कभी लगा ही नहीं था कि एक्टिंग में वापस आऊंगी। लेकिन वहां से 2008 में मुंबई आ गई। सवाल- मुंबई आने के बाद आपने कई फिल्में की, लेकिन ‘सर’ आपके करियर की टर्निंग पॉइंट फिल्म रही है, इसमें कैसे मौका मिला था? जवाब- फिल्म की डायरेक्टर रोहेना गेरा के पति प्रेस्टीज बनाते थे। मेरे पति ने कॉफी की कंपनी शुरू की थी। एक मार्केट में दोनों का स्टॉल लगा हुआ था। रोहेना वहां अपने पति की मदद करने आई थी। मैं भी कुणाल की हेल्प करने गई थी। रोहेना ने मेरी फिल्म ‘मानसून वेडिंग’ देखी थी। उसने ‘सर’ के बारे में बताया था। दो साल के बाद जब कोंकणा की फिल्म ‘ए डेथ इन द गंज’ कर रही थी। तब रोहेना ने फिल्म की स्क्रिप्ट भेजी थी। मेरे लिए वह बहुत ही रोमांचक क्षण था। सवाल- इस फिल्म के लिए आपको बेस्ट एक्ट्रेस क्रिटिक्स चॉइस का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला, तब आपको ऐसा लगा कि इतने सालों के बाद का फल अब जाकर मिला है? जवाब- मेरे लिए सबसे बड़ी बात यह थी कि इतने सालों के बाद मेहनत करके अच्छा काम मिला। इस फिल्म के बाद अच्छे काम मिलने लगे। ‘त्रिभुवन मिश्रा सीए टॉपर’ में बिना ऑडिशन के काम मिला था। डायरेक्टर पुनीत कृष्णा ने फिल्म देखी थी और उन्हें विश्वास था कि बिंदी जैन की भूमिका कर पाऊंगी। सवाल- इससे पहले आपने इरफान खान के साथ ‘किस्सा’ में कमाल का अभिनय किया था। उनके साथ ‘हिंदी मीडियम’ जैसी फिल्में की। कैसा रहा उनके साथ काम करने का अनुभव? जवाब- ‘किस्सा’ के बाद भी काफी समय तक अच्छे काम का इंतजार करना पड़ा था। इसका मुझे पछतावा नहीं है, क्योंकि उस फिल्म से मुझे काफी कुछ सीखने को मिला है। इरफान भाई कहा करते थे कि अपने काम पर ध्यान दो। दूसरे क्या सोचते हैं, यह बात मायने नहीं रखती है। आज भी उनकी वह बात फॉलो करती हूं। सवाल- आपकी कुणाल रॉस के साथ लव स्टोरी की शुरुआत कैसे हुई थी? जवाब- मेरे कजिन के घर एक कॉमन फ्रेंड के जरिए पहली बार लंच पर मिले थे। वो दुबई से आए थे। पहली नजर मुझे अच्छे लगे, लेकिन उस समय ऐसा कुछ सोचा नहीं था। वो दुबई चले गए वहां से ईमेल भेजा, मैंने जवाब दिया। महीनों हमारी ईमेल पर ही बातें होती रही। हमने एक दूसरे को समझने की कोशिश की और 2015 में शादी कर ली।