अमेरिका ईरानी चाबहार पोर्ट से जुड़ी कंपनियों पर जुर्माना लगाएगा:10 दिन में पोर्ट को मिली छूट खत्म होगी; ये भारत के पास 10 साल लीज पर

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अमेरिका ने ईरान के चाबहार बंदरगाह को दी गई खास छूट गुरुवार को रद्द कर दी। यह भारत के लिए बड़ा झटका है, क्योंकि यह बंदरगाह भारत का बहुत जरूरी प्रोजेक्ट है। 29 सितंबर 2025 से इस बंदरगाह को चलाने, पैसे देने या उससे जुड़े किसी काम में शामिल कंपनियों पर अमेरिका जुर्माना लगा सकता है। इसकी जानकारी अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने दी है। अमेरिका ने कहा- हम ईरान की गलत हरकतों को रोकना चाहते हैं। जब तक ईरान हमले, आतंकवाद और अशांति फैलाने में पैसा लगाएगा, हम उसे रोकने के लिए हर कदम उठाएंगे। यह फैसला राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की “मैक्सिमम प्रेशर” पॉलिसी का हिस्सा है, जो फरवरी 2025 में शुरू हुई थी। चाबहार को 2018 में अफगानिस्तान की मदद और विकास के लिए छूट मिली थी। अब इसे खत्म कर दिया गया है। भारत इस बंदरगाह को अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया तक पहुंचने के लिए इस्तेमाल करता है, ताकि पाकिस्तान से न गुजरना पड़े। भारत ने 2024 में चाबहार को 10 साल के लिए लीज पर लिया है। इसके तहत भारत यहां 120 मिलियन डॉलर निवेश करेगा और 250 मिलियन डॉलर का क्रेडिट लाइन (सस्ता कर्ज) देगा। अफगानिस्तान की मदद के लिए चाबहार को छूट मिली थी अमेरिका का कहना है कि अब हालात बदल गए हैं। पहले अफगानिस्तान में चुनी हुई सरकार थी और चाबहार खाने-पीने की चीजें और सामान भेजने का रास्ता था। लेकिन 2021 में तालिबान के आने और भारत के इस पोर्ट को लेकर हुए समझौते को 10 साल तक बढ़ाने के बाद अमेरिका को लगता है कि इससे ईरान को फायदा हो सकता है। इस छूट के खत्म होने से भारत की कंपनियों को पैसे का नुकसान या कानूनी परेशानी हो सकती है। इससे भारत के इस अहम प्रोजेक्ट पर खतरा बढ़ गया है। क्या है चाबहार पोर्ट और भारत के लिए क्यों जरूरी है चाबहार बंदरगाह ईरान में स्थित भारत का एक अहम प्रोजेक्ट है। यह भारत को अफगानिस्तान, मध्य एशिया, रूस और यूरोप से सीधे व्यापार करने में मदद करता है। पहले भारत को अफगानिस्तान माल भेजने के लिए पाकिस्तान से गुजरना पड़ता था, लेकिन सीमा विवाद के कारण यह मुश्किल था। चाबहार ने यह रास्ता आसान बनाया। भारत इस बंदरगाह से अफगानिस्तान को गेहूं भेजता है और मध्य एशिया से गैस-तेल ला सकता है। 2018 में भारत और ईरान ने चाबहार विकसित करने का समझौता किया था। अमेरिका ने इस प्रोजेक्ट के लिए भारत को कुछ प्रतिबंधों में छूट दी थी। यह बंदरगाह पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट, जिसे चीन बना रहा है, के मुकाबले भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। पोर्ट के लिए भारत ने अब तक क्या-क्या किया भारत ने चाबहार बंदरगाह के लिए 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय ईरान से बात शुरू की थी। अमेरिका-ईरान तनाव के कारण यह रुक गया। 2013 में मनमोहन सिंह ने 800 करोड़ रुपए निवेश की बात कही थी। 2016 में पीएम नरेंद्र मोदी ने ईरान और अफगानिस्तान के नेताओं के साथ समझौता किया, जिसमें भारत ने एक टर्मिनल के लिए 700 करोड़ रुपए और बंदरगाह के विकास के लिए 1250 करोड़ रुपए का कर्ज देने की घोषणा की। 2024 में विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने ईरान के विदेश मंत्री से कनेक्टिविटी पर चर्चा की। भारतीय कंपनी IPGL के मुताबिक, बंदरगाह पूरा होने पर इसकी क्षमता 82 मिलियन टन होगी। ————————————————– यह खबर भी पढ़ें… 6 भारतीय कंपनियों पर ट्रम्प ने बैन लगाया:कहा- ईरान से चोरी-छिपे कारोबार किया; ईरान बोला- अमेरिका इकोनॉमी को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बुधवार देर रात ईरान से प्रतिबंधित रसायन और पेट्रोकेमिकल उत्पादों की खरीद करने वाली 24 कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया। इनमें 6 भारतीय कंपनियां भी हैं। इसके अलावा चीन की 7, UAE की 6, हॉन्गकॉन्ग की 3, तुर्किये और रूस की 1-1 कंपनी शामिल हैं। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने इन प्रतिबंधों की घोषणा की। यहां पढ़ें पूरी खबर…

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