अमेरिकी पासपोर्ट पहली बार दुनिया के सबसे ताकतवर पासपोर्टों की टॉप 10 लिस्ट से बाहर हो गया है। हेनली पासपोर्ट इंडेक्स 2025 के मुताबिक, 20 साल में ऐसा पहली बार हुआ है। अब अमेरिकी पासपोर्ट 12वें नंबर पर है, जो मलेशिया के बराबर है। इस पासपोर्ट से 227 में से 180 देशों में बिना वीजा के जा सकते हैं। दूसरी ओर, सिंगापुर का पासपोर्ट सबसे ताकतवर है, जो 193 देशों में बिना वीजा प्रवेश देता है। इसके बाद दक्षिण कोरिया (190) और जापान (189) हैं। इंडेक्स के मुताबिक, भारतीय पासपोर्ट 77वें स्थान पर है। भारत की रैंकिंग 8 पायदान का सुधार हुआ है। भारतीय पासपोर्ट के साथ 59 देशों में वीजा-फ्री या वीजा-ऑन-अराइवल एक्सेस मिलता है। क्यों कमजोर हुआ अमेरिकी पासपोर्ट? कई देशों ने अमेरिकियों के लिए वीजा नियम सख्त कर दिए। ब्राजील ने अप्रैल में वीजा-फ्री एंट्री खत्म कर दी है। चीन ने अपने वीजा-फ्री प्रोग्राम में अमेरिका को शामिल नहीं किया। पापुआ न्यू गिनी, म्यांमार, सोमालिया और वियतनाम के नए नियमों ने भी अमेरिकी पासपोर्ट की ताकत पर असर डाला है। हेनली एंड पार्टनर्स के चेयरमैन क्रिश्चियन केलिन ने कहा- अमेरिकी पासपोर्ट की ताकत में कमी सिर्फ रैंकिंग की बात नहीं है। यह दिखाता है कि दुनिया में ताकत का खेल बदल रहा है। जो देश खुलापन अपनाते हैं, वे आगे बढ़ रहे हैं, और जो पुरानी सोच पर टिके हैं, वे पीछे रह रहे हैं।
एनी फोर्जहाइमर नाम की एक्सपर्ट ने कहा कि अमेरिका की सख्त नीतियां वाली सोच उनके पासपोर्ट की ताकत में कमी के रूप में दिख रही है। भारत की बढ़ती ताकत से रैंकिंग में सुधार ग्लोबल लेवल पर भारत की बढ़ती ताकत का असर उसकी पासपोर्ट रैंकिंग पर भी पढ़ा है। इसके अलावा डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल और नए समझौतों ने भी खास रोल निभाया है। भारतीय पासपोर्ट में सुधार की वजह… ब्रिटेन का पासपोर्ट भी कमजोर हुआ ब्रिटिश पासपोर्ट भी नीचे खिसककर 6 से 8वें नंबर पर आ गया। 2015 में यह पहले नंबर पर था। वहीं, चीन का पासपोर्ट 2015 में 94वें स्थान पर था, जो अब 64वें स्थान पर पहुंच गया। इसे 37 नए देशों में बिना वीजा फ्री एंट्री मिली है। चीन 76 देशों को बिना वीजा अपने यहां आने देता है, जो अमेरिका से 30 ज्यादा है। चीन ने रूस, खाड़ी देशों, दक्षिण अमेरिका और यूरोप के कई देशों के साथ वीजा-फ्री समझौते किए हैं।