लेजेंडरी गायिका आशा भोसले आज अपना 91 वां बर्थडे सेलिब्रेट कर रही हैं। आशा भोसले 10 वर्ष की उम्र से गा रही है। भले ही आज उम्र के इस पड़ाव पर पहुंच गई हों, लेकिन दिल से 20 साल की ही हैं। आज भी खुद खाना बनाती हैं। आशा भोसले मानती है कि उम्र तो महज एक आंकड़ा होता है। आज आशा भोसले के जन्मदिन पर पद्मश्री भजन सम्राट अनूप जलोटा और संगीतकार आनंदजी भाई (कल्याणजी-आनंदजी) ने दैनिक भास्कर से बातचीत की। अनूप जलोटा ने कहा कि आशा जी की आवाज कभी बूढ़ी नहीं हो सकती। आज भी उनका शो हाउसफुल रहता है। आशा जी के स्टाइल में गाना दूसरों के बस की बात नहीं भजन सम्राट अनूप जलोटा कहते हैं- आशा भोसले जी ने प्लेबैक सिंगिंग में इतने सालों तक राज किया है। उन्होंने जिस स्टाइल के गाने गाए हैं वह दूसरों के बस की बात नहीं है। उनके साथ मैंने एक गाना फिल्म ‘पत्तों की बाजी’ के लिए रिकॉर्ड किया था। मैंने उसमें संगीत दिया था और आशा जी के साथ गाया भी था। आशा जी बहुत खुश थीं कि म्यूजिक में एक ताजगी मिल रही है। गाने को अच्छी तरह से समझकर सीखकर गाती हैं। उन्होंने कभी जल्दबाजी नहीं की। गाने को अच्छी तरह से समझने के बाद कहती थीं कि चलों अब रिकॉर्डिंग करते हैं। आशा जी का गाना चलता रहेगा उम्र के एक पड़ाव पर आने के बाद लता मंगेशकर ने गीत गाना बंद कर दिया था। अनूप जलोटा कहते हैं- आशा जी कभी भी बूढ़ी नहीं हो सकती हैं। और, ना ही उनकी आवाज बूढ़ी हो सकती है, क्योंकि उन्होंने हमेशा एक-दूसरे से मिलना जुलना जारी रखा है। वो ऐसे मिलती हैं जैसे कोई 30-35 साल की शख्सियत हों। सबसे प्यार से मिलती हैं। उनके पास संगीत की एक शक्ति है। उनके अंदर संगीत की यूथ फीलिंग होती है। अभी तो पिछले साल 90 की उम्र में दुबई में हाउसफुल शो किया है। वो कभी गाना बंद नहीं करेंगी, हमेशा गाएंगी। लता जी ने तो कुछ वर्षों से गाना बंद कर दिया था, लेकिन आशा जी का गाना चलता ही रहेगा। स्पष्ट वक्ता और निष्पक्ष हैं दादा साहब फाल्के अवॉर्ड की एक कमेटी सरकार ने बनाई थी। उस कमेटी में मुझे, आशा जी, सलीम खान और नितिन मुकेश को चुना गया था। हमने दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड के लिए मनोज कुमार के नाम का सुझाव दिया था। इस चयन में आशा जी ने बहुत ध्यान दिया था। कई नाम सामने थे, वो एक-एक चीज सोच रही थीं। वो बड़ी स्पष्ट वक्ता और निष्पक्ष हैं। बेहतरीन गायिका के साथ बेहतरीन कुक भी आशा भोसले जितनी बेहतरीन गायिका हैं, उतनी ही बेहतरीन कुक भी हैं। उनको बचपन से ही खाना बनाने का बहुत शौक रहा है, इसी शौक ने उन्हें एक सफल रेस्टोरेंट व्यवसायी के रूप में पहचान दिलाई है। ‘आशा’ नाम से आशा भोसले की दुबई, कुवैत, बर्मिंघम, दोहा, बहरीन जैसे कई देशों में रेस्टोरेंट हैं। इन रेस्टोरेंट का संचालन वाफी ग्रुप द्वारा किया जाता है, जिसमें आशा भोसले की 20 प्रतिशत भागीदारी है। इन रेस्टोरेंट में उत्तर पश्चिम भारतीय व्यंजन परोसा जाता है खुद को 20 साल की समझती हैं आशा भोसले ने पिछले साल अपने जन्मदिन पर दुबई में म्यूजिक कॉन्सर्ट में परफॉर्म किया था। इस कार्यक्रम को लेकर हुए प्रेस कॉन्फ्रेस के दौरान उन्होंने कहा था- 10 वर्ष की उम्र से गा रही हूं। भले ही 90 साल की हो गई हूं, लेकिन दिल से 20 साल की ही हूं। यही वजह है कि वह आज तक गा रही हैं। म्यूजिक कॉन्सर्ट के दौरान कभी भी थकान नहीं होती है। उम्र तो महज एक आंकड़ा होता है आशा भोसले कहती हैं कि उम्र तो महज एक नंबर है। उम्र तो बढ़ती है, लेकिन दिल हमेशा जवान रहता है। अभी भी खड़ी हूं, गाना गा रही हूं और अपने बच्चों के लिए अभी भी खानी पकाती हूं। शुरू से ही काम के साथ-साथ मेरा परिवार मेरी पहली प्राथमिकता थी। मैने जिंदगी में बहुत तकलीफें उठाई हैं। तीन बच्चों की अकेले परवरिश करके उनकी शादियां कीं। काम से भाग कर घर पर आकर खाना बनाती थी। लेकिन इससे मेरा काम कभी प्रभावित नहीं हुआ। प्लेबैक सिंगर बनने के बारे में नहीं सोचा था अब तक सब भाषाओं में मिलाकर 12,000 गाने गा चुकी आशा भोसले कहती हैं, ‘मैंने पिताजी से गाना बचपन में सुना, तभी से गा रही हूं। सोचा नहीं था कि एक दिन प्लेबैक सिंगर बनूंगी, लेकिन जिंदगी में कुछ ऐसा मोड़ आया कि मैं प्लेबैक सिंगर बन गई। संगीत की दुनिया की आखिरी मुगल हूं।’ ओ पी नैय्यर की फिल्मों में सिर्फ आशा भोसले ही गा सकती थीं बताया जाता है कि किसी वजह से ओ पी नैय्यर की लता मंगेशकर से अनबन हो गई थी। ऐसे में उन्होंने आशा भोसले से अपनी फिल्मों में गाने गवाए। ओ पी नैय्यर के म्यूजिक डायरेक्शन में आशा भोसले ने एक से बढ़ कर एक हिट गाने गाए। लता मंगेशकर के बाद आशा भोसले दूसरे नंबर की फेमस गायिका बन गई थीं। अनूप जलोटा कहते हैं- ऐसा नहीं था कि ओपी नैय्यर की लता जी से किसी बात को लेकर कोई अनबन थी। बल्कि उनकी फिल्मों के गाने का स्टाइल ही ऐसा होता था जिसमें आशा जी गा सकती थीं। ओ पी नैय्यर खुद कहते थे कि वो जो कम्पोजिशन बनाते थे, वह आशा जी के लिए ही होती थी।