इंदिरा गांधी इस्तीफा दो…ये नारा लगाते हुए रायपुर की सड़कों पर 15 साल का बच्चा दौड़ लगा रहा था। उसे देखते ही पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, जेल में डाल दिया। रायपुर में इसी तरह दूसरे प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने पकड़ा और मुंह में डंडे ठूंस दिए। पहली बार रायपुर की जेल के भीतर लाठीचार्ज हुआ। ये हालात थे आज की राजधानी रायपुर की, जब देश में आपातकाल लगा था। आज 25 जून को एमरजेंसी के 50 साल पूरे हो रहे हैं। पढ़िए आपातकाल में जेल गए छत्तीसगढ़ के सबसे छोटे प्रदर्शनकारी जयंत तापस और कैदियों पर हुए निर्मम लाठीचार्ज के गवाह सुहास देशपांडेय की कहानी,उन्हीं के शब्दों में। सबसे छोटे मीसाबंदी तापस रायपुर के जवाहर नगर इलाके के रहने वाले जयंत तापस का परिवार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा है। 26 जून 1975 को जब आपातकाल लगा वो साढ़े 15 साल के थे। इस उम्र में एमरजेंसी में जेल जाने वाले वो छत्तीसगढ़ के सबसे छोटे मीसाबंदी हैं, उन्होंने अपनी गिरफ्तारी के बारे में बताया- मैंने हाथों में इंदिरा सरकार के खिलाफ पोस्टर ले रखे थे। संघ के लोगों को जेल में बंद किया गया था। हम इसका विरोध कर रहे थे, हमने उन लोगों की रिहाई की मांग करते हुए पैदल मार्च किया। जेल में कैदियों का खाना फेंक दिया गया तापस बोले- मैंने तब नयापारा में दुर्गा मंदिर से पूजा की और निकल पड़ा। मालवीय रोड पर बैजनाथपारा के पास पुलिस ने मुझे पकड़ा। सिटी कोतवाली थाने ले जाया गया। एक रात वहां रखा गया फिर सेंट्रल जेल में डाल दिया गया। डर लग रहा था समझ नहीं आ रहा था क्या होगा,यहां कब तक रहना होगा पता नहीं था। एक दिन जेल में कैदियों का खाना फेंक दिया गया, उन्हें पीटा गया, उस रात किसी ने खाना नहीं खाया, मैं 35 दिन तक जेल में था। तब कोर्ट ने मेरी उम्र देखते हुए मुझे छोड़ने को कहा। जब बाहर आए थे ऐसा था माहौल जयंत बताते हैं शहर में माहौल दहशत का होता था, हर किसी को डर था कि पता नहीं कब किसे जेल में डाल दिया जाए। कोई सरकार की नीतियों पर बात नहीं कर सकता था। तब चाय की दुकानों पर लोगों का बैठना राजनीति पर बात करना बंद हो गया था। मैंने देखा है कि किसी को भी पकड़कर ले जाते थे, नसबंदी कर देते थे। तब सरकार ने आबादी पर कंट्रोल करने के लिए ये शुरू किया था, ये भी नहीं देखते थे कि किसी की शादी हुई कि नहीं कोई 70 साल का है, उसे भी पकड़कर ले जाते और नसबंदी कर देते थे। महात्मा गांधी की हत्या के बाद पिता को जेल हुई थी जयंत ने बताया कि हमारे परिवार में संघ के लोगों का आना-जाना था। जब महात्मा गांधी की हत्या हुई, संघ पर प्रतिबंध लगा। मेरे पिता दिनकर पुरुषोत्तम तापस को भी जेल भेजा गया था। वो भी तब 15 साल के थे और मेरी ही तरह 10वीं के स्टूडेंट थे। संघ के काम को लेकर मैं उन्हीं से प्रेरित था, इसलिए जब आपातकाल लगा तो विरोध जमकर किया। कैदियों को पीटकर हाथ-पैर तोड़े गए रायपुर के डंगनिया इलाके में रहने वाले सुहास देशपांडे को अब भी वो मंजर याद है। वो कहते हैं- 1 जनवरी की तारीख थी, रायपुर की जेल के भीतर पहली बार क्रूर लाठीचार्ज किया गया था। सभी को सिर्फ इस वजह से पीटा गया क्योंकि वो इमरजेंसी का विरोध कर रहे थे। सब जेल में ही थे पुलिस की लाठी से बचकर कहां जाते, वहां सभी एक जगह इकट्ठा कर लाठियों से जेल के स्टाफ ने खूब पीटा। मुझे भी मारा था। सुहास कहते हैं- मैंने तब देखा इतनी बुरी तरह से मारा जा रहा था कि किसी का हाथ टूट गया किसी का पैर। भिलाई के कल्याण सिंह को तब तक मारा गया जब तक उनके दोनों पैर न टूट गए। रायपुर के प्रभाकर राव देवस्थले जी का सिर फूट गया। तब इसकी जानकारी बाहर नहीं आ सकी। मीडिया पर बैन लगा हुआ था, सरकार के खिलाफ कहीं कुछ न लिखा जा सकता था, न बोला जा सकता था। भेष बदलकर घूमते थे नेता सुहास ने बताया- जेल में हमें बाहर की खबर तब लगती थी, जब कोई स्वयं सेवक संघ का आदमी जेल आता था। संघ के नेताओं की बैठक चोरी-छिपे होती थी। परिवार के लोगों से आकर दूसरे नेता मिलते थे। मुझे याद है सब भेष बदलकर आते थे। क्योंकि इंटेलिजेंस के लोग हमारे घरों के बाहर घूमा करते थे। कोई बाल बढ़ा लेता था, कोई कुर्ते की जगह शर्ट पेंट पहन लेता था। बिलासपुर के संघ के नेता केशवलाल गोरे, उन्होंने अपना नाम रख लिया था गोरेलाल सोनी। वो सोने की चेन पहनते थे, टोपी भी सुनार की तरह पहन थे। वो व्यापारी बनकर आना-जाना करते थे और संघ की बैठकें लिया करते थे। इसी तरह मोरेश्वर राव गद्रे भी उन सभी लोगों के परिवारों से मिलते थे, जिनके लोग जेलों में डाल दिए गए थे।
फिर मीसाबंदियों का क्या हुआ सुहास कहते हैं जेल से आने के बाद हमें जो तवज्जो मिलनी थी नहीं मिली। हालांकि मुझे कोई पद मिले ऐसी इच्छा भी नहीं थी। मैं संघ के काम में लगा रहा। अब मीसा बंदियों को सहायता राशि दी जाती है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने हमें भोज पर बुलाया है। भाजपा की सरकार संविधान हत्या दिवस मना रही है, तो हमें बुलाया जाता है। हम आने वाली पीढ़ियों को आपातकाल के बारे में पता हो, इसके लिए निबंध प्रतियोगिताएं करवा रहे हैं। राज्य सरकार से मांग करेंगे कि इसे सिलेबस में जोड़ें। जब लागू हुआ देश में आपातकाल 26 जून 1975 की सुबह। ऑल इंडिया रेडियो पर जो सबसे पहली आवाज आई वो देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की थी। उनके शब्द थे, ‘राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा कर दी है। इसमें घबराने की कोई बात नहीं है।’ इमरजेंसी की पटकथा लिखी गई थी 12 जून 1975 को। इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इस दिन इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव को रद्द कर दिया था। आरोप लगाया था कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया है। कैथरीन फ्रैंक इंदिरा गांधी की जीवनी में लिखती हैं कि यह फैसला ना ही इंदिरा गांधी को रास आया ना ही उनके समर्थकों को। 25 जून 1975 से 19 जनवरी 1977 तक भारत में इमरजेंसी लागू रही। मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट यानी मीसा कानून और डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट के तहत करीब एक लाख से ज्यादा लोगों को जेल में डाला गया। 18 जनवरी 1977 को इंदिरा गांधी ने अचानक ही मार्च में लोकसभा चुनाव कराने का ऐलान किया। 16 मार्च को हुए चुनाव में इंदिरा और संजय दोनों हार गए। 21 मार्च को आपातकाल खत्म हो गया और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।