एक्टिंग की वजह से घर से निकाले गए:कभी अकाउंट में सिर्फ 18 रुपए थे,’गली बॉय’, ‘मिर्जापुर’ के बाद विजय वर्मा की चमकी किस्मत

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विजय वर्मा ने भारतीय सिनेमा में अपनी बेमिसाल प्रतिभा और सजीव अभिनय के दम पर एक मजबूत पहचान बनाई है। उनकी सफलता उनकी मेहनत, समर्पण और अलग-अलग प्रकार के किरदार निभाने की क्षमता का नतीजा है। उन्होंने अपने करियर में कई चुनौतीपूर्ण और विविध भूमिकाएं निभाईं, जिनमें उनकी गहराई और भावपूर्ण अभिव्यक्ति साफ झलकती है। विजय न केवल फिल्मी सेट पर बल्कि थिएटर और वेब सीरीज में भी अपनी कला का लोहा मनवा चुके हैं। उनकी संवेदनशील और स्वाभाविक एक्टिंग दर्शकों के बीच गहरा प्रभाव छोड़ती है, जिससे वे तेजी से इंडस्ट्री के प्रमुख कलाकारों में शुमार हो गए हैं। विजय वर्मा की रचनात्मकता और लगातार बढ़ती लोकप्रियता उन्हें भारतीय सिनेमा की नई पीढ़ी के सबसे भरोसेमंद और पसंदीदा कलाकारों में एक बनाती है। उनके संघर्ष, मेहनत और कला के प्रति समर्पण ने उन्हें सफलता के शिखर पर पहुंचाया है। जबकि एक्टिंग की वजह से उनके पापा ने घर से निकाल दिया था। स्ट्रगल ऐसा था कि कभी अकाउंट में सिर्फ 18 रुपए थे, लेकिन ‘गली बॉय’, ‘मिर्जापुर के बाद विजय वर्मा की किस्मत चमक गई। आज की सक्सेस स्टोरी में में जानिए विजय वर्मा के करियर और निजी जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें। नेशनल अवॉर्ड विनिंग फिल्म से डेब्यू विजय वर्मा की एक्टिंग की शुरुआत थिएटर से हुई। 10वीं कक्षा में अभिनय की रुचि उन्हें लगी और कॉलेज पूरा करने के बाद वे थिएटर में सक्रिय हो गए। उन्होंने फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) से अभिनय में औपचारिक शिक्षा लेने के बाद कई साल थिएटर में बिताए और फिर राज एंड डीके की शॉर्ट फिल्म ‘शोर’ से फिल्मी करियर की शुरुआत की। इसके बाद 2012 में विजय ने नेशनल अवॉर्ड विनिंग फिल्म ‘चिट्टागॉन्ग’ से फीचर फिल्म डेब्यू किया। इस फिल्म में विजय वर्मा ने युवा क्रांतिकारी झुनकू रॉय की भूमिका निभाई थी। जो 1940 के दशक के विद्रोह के दौरान सूर्य सेन के साथ काम करता है। ‘गली बॉय’ बना करियर का टर्निंग प्वाइंट उनका करियर टर्निंग प्वाइंट फिल्म ‘गली बॉय’ थी, जिसमें उन्हें काफी सराहना मिली। इस फिल्म में विजय वर्मा ने मोईन आरिफ (मोईन) नामक किरदार निभाया, जो एक महत्वपूर्ण सहायक भूमिका थी।​ इस किरदार के लिए विजय वर्मा को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार सहित कई सम्मान मिले थे। इस फिल्म के बाद बाद उनके लिए कई नए दरवाजे खुले। हालांकि एक्टिंग की राह चुनने से पहले वे कॉल सेंटर में भी काम कर चुके थे, लेकिन एक्टिंग में जाने की ठानी। मेहनत के बाद वे अपने उद्योग में अपनी खास पहचान बनाने में सफल हुए। ऐसा भी दौर रहा जब सेट पर सम्मान नहीं मिलता था उनके करियर का सबसे बड़ा संघर्ष आर्थिक तंगी का दौर था, जब वे लगभग पूरी तरह से संघर्षरत थे और बैंक अकाउंट में सिर्फ 18 रुपए बचे थे। इस कठिन समय में जीविका चलाने के लिए छोटे-मोटे रोल स्वीकार करने पड़े। ऐसे ही एक मौका उन्हें एक रिपोर्टर का छोटा सा रोल मिला, जिसके लिए केवल 3,000 रुपए मिले। यह रोल उन्होंने फिल्म ‘ए हिट मैन’ में निभाया। हालांकि यह रोल अपनी प्रतिभा के लिहाज से मामूली था, पर स्थिति ऐसी थी कि इसे लेना ही पड़ा। विजय ने बाद में इस अनुभव को बेहद खराब बताया क्योंकि सेट पर सम्मान नहीं मिला और वे अपनी योग्यता की तुलना में इसे छोटा महसूस करते थे। उन्होंने उस दौर की आर्थिक तंगी और संघर्ष को अपने करियर का महत्वपूर्ण मुकाबला बताया, जिसने उनकी हिम्मत और धैर्य को परखा। हार नहीं मानते हुए उन्होंने लगातार मेहनत की। पिता एक्टिंग करियर के खिलाफ थे विजय के पिता उनके एक्टिंग करियर के खिलाफ थे और इस बात को लेकर घर में बहुत तनाव था। उन्होंने इतना गंभीर रूप से नाराजगी जताई कि कहा था, “मेरे आने से पहले निकल जाना,” यानी अगर तुम एक्टिंग को अपना करियर बनाना चाहते हो तो मुझसे पहले घर छोड़ दो। इस निर्णय ने पारिवारिक रिश्तों को तनावपूर्ण बना दिया। विजय कहते हैं- मेरे ख्याल से, जैसे जो भी माहौल मिलता है, वो अपने आप एक सपोर्ट होता है आर्टिस्ट के लिए। कुछ दोस्तों के माता-पिता बहुत सपोर्टिव हैं, उनसे ज्यादा उम्मीद होती है। और कुछ जैसे मेरे जैसे लोग होते हैं जिन्हें कोई सपोर्ट या प्रोत्साहन नहीं मिलता। तब खुद से ही रास्ता निकालना पड़ता है, अंदर से आग जलानी पड़ती है, अपने गोल सेट करने पड़ते हैं, अकेले इस सफर को तय करना पड़ता है। मैं इसे बेहतर मानता हूं बजाए पेरेंट्स के प्रेशर के। सपने को पूरा करने के लिए घर छोड़ा विजय ने अपने सपने को पूरा करने के लिए घर छोड़ दिया और पुणे FTII में दाखिला लिया। हालांकि यह फैसला उनके लिए बड़ा था क्योंकि परिवार का समर्थन नहीं था, फिर भी जुनून के चलते वे दृढ़ थे। वहां से उन्होंने थिएटर से एक्टिंग शुरू की। शुरुआत में कोई बड़ी सफलता नहीं मिली, लेकिन कई सालों तक छोटे रोल्स और थिएटर में काम कर मेहनत की, अपनी कला निखारी। विजय वर्मा कहते हैं- सिनेमा के साथ मेरा गहरा रोमांस रहा है। उस वक्त मुझे सिनेमा और एक्टर्स के बारे में बहुत कुछ सीखने की जरूरत थी। मुझे पता नहीं था कि मार्लों ब्रांडो, रॉबर्ट डी नीरो जैसे कौन हैं। मेरे घर में फिल्मों का माहौल नहीं था। अगर टीवी पर फिल्म आती भी, तो पापा तुरंत उसे बंद कर देते थे। उनका कहना था कि अगर टाइम खराब करना है तो 30 मिनट का सीरियल देखो, 3 घंटे की फिल्म मत देखो। इसलिए मैंने बचपन बिताया बिना सिनेमा के। फिल्म स्कूल गया तब समझ आया कि बाकी सब मुझसे ज्यादा सिनेमा जानते हैं। धीरे-धीरे बंगाली फिल्मों के सीडीज देखने लगा, महसूस हुआ कि ये एक अलग दुनिया है, बड़ा खजाना है। स्कूल या कॉलेज में जो पढ़ाया गया था, वो ज्यादा याद नहीं रहता था, लेकिन सिनेमा या नाटकों की चीजें बहुत याद रहती थीं। ये मेरे लिए जिंदगी बदलने वाला दौर था। वहां मैं दिन में दो-तीन फिल्में देखता था। मेरा एक ही मंत्र था, “एक फिल्म रोज”। ऑडिशन्स में टॉप लिस्ट पर होने के बावजूद रोल नहीं मिला हालांकि फिल्म ‘गली बॉय’ के बाद विजय ‘सेक्रेड गेम्स’ जैसे कई प्रोजेक्ट्स के कास्टिंग से ड्रॉप हो गए, यहां तक कि कॉस्ट्यूम मेजरमेंट तक करा चुके थे। कई ऑडिशन्स में टॉप लिस्ट पर होने के बावजूद रोल नहीं मिले। विजय कहते हैं- मैंने बहुत इंतजार और असफलता देखी है। कई बार टूटा और संभला भी। बहुत हिम्मत लगती है आगे बढ़ने के लिए। सफलता बदलती रहती है। कभी लगती है आएगी, कभी नहीं। जब लोग आपकी चीजें पसंद करते हैं तो अच्छी फीलिंग होती है, लेकिन मैं उसका नशा नहीं बनाता। मैंने बहुत कुछ देखा है। जो होगा, देखते रहूंगा और आगे बढ़ता रहूंगा। डिप्रेशन और एंग्जायटी के शिकार भी हुए विजय वर्मा ने मानसिक स्वास्थ्य के अपने संघर्षों के बारे में भी खुलासा किया। एक दशक से अधिक समय तक घर छोड़कर अकेले संघर्ष के कारण उन्हें गंभीर डिप्रेशन और एंग्जायटी हुई। कोविड-19 के लॉकडाउन में यह और भी गहरा हो गया। इस दौरान थेरेपी और योग का सहारा लिया, जिसमें पुराने दबे हुए दर्द और भावनाएं सतह पर आईं और टूटने के कगार पर ले गईं। योग करते हुए वे कई बार घंटों बिना किसी स्पष्ट वजह के रोते थे, जो उन्होंने गहरे डिप्रेशन का हिस्सा बताया। पिता के साथ संबंधों में जटिलताएं और सामाजिक अपेक्षाओं ने मानसिक स्वास्थ्य पर बोझ डाला। लॉकडाउन में अकेले मुंबई में रहना अकेलेपन को बढ़ा गया। आमिर खान की बेटी आइरा खान और गुलशन देवैया ने उनका ध्यान लक्षणों की ओर दिलाया और चिकित्सक से परामर्श लेने प्रेरित किया। उन्होंने जूम पर थेरेपी शुरू की, जिसमें तनाव और डिप्रेशन के गहरे स्तर का एहसास हुआ। थेरेपी और योग ने दबे दर्द को बाहर निकाला, लेकिन यह प्रक्रिया बेहद कठिन थी। अब थोड़ा बहुत बदल गया हूं बिना सपोर्ट के विजय वर्मा आज ऐसे मुकाम पर हैं जिससे तमाम लोगों को प्रेरणा मिलती है। वह कहते हैं- मैं रोज कहीं न कहीं अपने आप को किसी सीन या किरदार में ढूंढता हूं। लेकिन मैं खुद जो कल था, आज वह नहीं हूं। थोड़ा बहुत बदल गया हूं, अपने पुराने ईमेल्स के शब्द भी अब इस्तेमाल नहीं करता। यही जिंदगी की सच्चाई है। कुछ सीन ऐसे होते हैं जब मैं बहुत इमोशनल हो जाता हूं। शूटिंग के आखिरी दिनों में, जब दोस्तों से लगाव हो जाता है, तो उनका छुट जाना दुख देता है। फिर भी ये आदत बन गई है।” टूटते पर अंदर से मंथन होता है खुद को मिली इंस्पिरेशन के बारे में बात करते हुए विजय वर्मा कहते हैं- जब टूटते हैं, तभी अंदर मंथन होता है। टूटे बिना ये चीजें दिखती नहीं। जैसे पानी के ग्लास में थोड़ी मिट्टी डालो तो लगता है साफ, लेकिन वह नीचे बैठ जाती है। जिंदगी भी वैसी ही है, लेकिन थोड़ी हलचल से सब रंग बदल जाते हैं। फिर ये रंग कुछ समय बाद फिर से जम जाते हैं। _________________________________________________ पिछले हफ्ते की सक्सेस स्टोरी पढ़िए… कपड़े उधार लेकर ऑडिशन देती थीं:पहली फिल्म से 3000 रुपए मिले, रसिका दुग्गल बोलीं- दिल्ली क्राइम और मिर्जापुर ने ब्लॉकबस्टर जैसा अनुभव दिया रसिका दुग्गल बॉलीवुड की उन अभिनेत्रियों में से हैं, जिन्होंने अपनी बेहतरीन एक्टिंग से दर्शकों का दिल जीता है। छोटे शहर जमशेदपुर से बड़े पर्दे तक उनका सफर मेहनत, लगन और हिम्मत की कहानी है। ‘मिर्जापुर’, ‘मंटो’ और ‘दिल्ली क्राइम’ जैसे प्रोजेक्ट्स में उनके दमदार किरदारों ने उन्हें अलग पहचान दी।पूरी खबर पढ़ें….

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