छत्तीसगढ़ के उत्तर-मध्य क्षेत्र से मानसून की विदाई जल्द:रायपुर में हल्की ठंड का एहसास; बस्तर में गरज-चमक के साथ बारिश की आशंका

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छत्तीसगढ़ के दक्षिण क्षेत्र यानी बस्तर संभाग में अगले 2 दिन तक गरज-चमक के साथ बारिश की आशंका है। इसके अलावा अगले 2 से 3 दिनों में उत्तर और मध्य छत्तीसगढ़ से मानसून की वापसी शुरू हो सकती है। मौसम विभाग के अनुसार उत्तरी छत्तीसगढ़ से दक्षिणी-पश्चिम मानसून की विदाई के लिए परिस्थितियां अनुकूल बन रही हैं। पिछले 24 घंटों की बात करें तो प्रदेश के कुछ जगहों पर हल्की से मध्यम बारिश दर्ज की गई है। बिलासपुर में शनिवार दोपहर अचानक मौसम बदला और तेज बारिश हुई। सबसे ज्यादा 90 मिमी बारिश अंतागढ़ में हुई है। वहीं राजधानी रायपुर में हल्की ठंड का एहसास होने लगा है। रविवार को भी बारिश हो सकती है। अधिकतम तापमान 32.01 डिग्री सेल्सियस जगदलपुर और न्यूनतम तापमान 18.0 डिग्री पेंड्रारोड में रिकॉर्ड किया गया है। रविवार के लिए मौसम विभाग ने किसी भी जिले में अलर्ट जारी नहीं किया है। अक्टूबर में अब तक 109% ज्यादा बरसा पानी इस बार अक्टूबर में अब तक सामान्य से 109% अधिक बारिश दर्ज की गई है। आमतौर पर 8 अक्टूबर तक राज्य में औसतन 28.3 मिमी वर्षा होती है और मानसून लौट चुका होता है, लेकिन इस बार अब तक 59.1 मिमी से ज्यादा बारिश हो चुकी है। 10 दिन देरी से लौटेगा मानसून मौसम विभाग के मुताबिक, 30 सितंबर तक हुई बारिश को मानसून की बारिश माना जाता है, जबकि इसके बाद की बारिश को ‘पोस्ट मानसून’ यानी मानसून के बाद की बारिश माना जाता है। फिलहाल देश के कई हिस्सों से मानसून की वापसी शुरू हो चुकी है। छत्तीसगढ़ में आमतौर पर 5 अक्टूबर के आसपास सरगुजा की तरफ से मानसून लौटना शुरू होता है, लेकिन इस बार वापसी में देरी हो रही है। मौसम वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इस बार प्रदेश में मानसून करीब 15 अक्टूबर के बाद लौटेगा, यानी सामान्य से करीब 10 दिन देरी से। बलरामपुर में सामान्य से 52% ज्यादा बारिश प्रदेश में अब तक 1167.4 मिमी औसत बारिश हुई है। बेमेतरा जिले में अब तक 524.5 मिमी पानी बरसा है, जो सामान्य से 50% कम है। अन्य जिलों जैसे बस्तर, राजनांदगांव, रायगढ़ में वर्षा सामान्य के आसपास हुई है। जबकि बलरामपुर में 1520.9 मिमी बारिश हुई है, जो सामान्य से 52% ज्यादा है। ये आंकड़े 30 सितंबर तक के हैं। जानिए क्यों गिरती है बिजली बादलों में मौजूद पानी की बूंदें और बर्फ के कण हवा से रगड़ खाते हैं, जिससे उनमें बिजली जैसा चार्ज पैदा होता है। कुछ बादलों में पॉजिटिव और कुछ में नेगेटिव चार्ज जमा हो जाता है। जब ये विपरीत चार्ज वाले बादल आपस में टकराते हैं तो बिजली बनती है। आमतौर पर यह बिजली बादलों के भीतर ही रहती है, लेकिन कभी-कभी यह इतनी तेज होती है कि धरती तक पहुंच जाती है। बिजली को धरती तक पहुंचने के लिए कंडक्टर की जरूरत होती है। पेड़, पानी, बिजली के खंभे और धातु के सामान ऐसे कंडक्टर बनते हैं। अगर कोई व्यक्ति इनके पास या संपर्क में होता है तो वह बिजली की चपेट में आ सकता है।

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