छत्तीसगढ़ के 14 गांवों में पास्टर-पादरियों पर बैन:कफन-दफन, चूड़ी-बिंदी नहीं लगाने से बढ़ा विवाद, ईसाई समुदाय बोला- रिश्तेदारों से नहीं मिल पा रहे

0
7

कांकेर जिले में धर्म परिवर्तन की घटनाओं के बाद अब 14 गांवों में पास्टर और पादरियों के प्रवेश पर बैन लगा दिया गया है। ग्रामीणों के मुताबिक यह कदम उन्होंने अपनी परंपरा और संस्कृति की रक्षा के लिए उठाया है। करीब सात हजार की आबादी वाले इस इलाके में 14-15 परिवारों ने अघोषित रूप से ईसाई धर्म अपना लिया है। इसी वजह से आदिवासी समुदाय और धर्म परिवर्तन कर चुके परिवारों के बीच दूरी बढ़ गई है। वहीं, ईसाई समुदाय के लोगों का कहना है कि उनके रिश्तेदार भी अब मिलने नहीं आ पाते, क्योंकि जिन गांवों में वे रहते हैं, वहां भी इसी तरह के बोर्ड लगे हैं। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी इन ग्राम सभाओं के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने माना कि जबरन या प्रलोभन देकर धर्मांतरण रोकने के लिए लगाए गए ये बोर्ड असंवैधानिक नहीं हैं, बल्कि स्थानीय संस्कृति की रक्षा के लिए ग्राम सभा का एहतियाती कदम हैं। याचिका खारिज होने के बाद भास्कर की टीम ने कांकेर के उन्हीं गांवों में जाकर जमीनी हकीकत की पड़ताल की। पढ़िए इस रिपोर्ट में, कैसे कांकेर के गांवों में परंपरा और आस्था की जंग ने दो समुदायों के बीच नई सीमाएं खड़ी कर दीं:- महिलाओं के चूड़ी-बिंदी नहीं लगाने से शुरू हुआ था विवाद जामगांव की सरपंच भगवती उइके कहती हैं गांव में लगातार धर्मांतरण हो रहा है। पहले पति के जीवित रहते महिलाएं बिंदी लगाती थीं, हाथों में चूड़ियां पहनती थीं। ये सब हमारी परंपरा का हिस्सा है। लेकिन कुछ सालों में गांव की कुछ महिलाएं यह सब छोड़ने लगीं हैं। तब हमें पता चला कि इन महिलाओं ने ईसाई धर्म को मानना शुरू कर दिया है। गांव में कुछ अनजान लोगों का आना जाना था। जो यीशु मसीह की प्रार्थना के बाद दुआ पानी और तेल देकर बीमारी ठीक करने का दावा करते थे। पहले गांव के कुछ परिवारों ने उन पर भरोसा किया। उनका कहना था कि प्रभु के चमत्कार से वे ठीक हो गए। अचानक कुछ दिनों बाद उन्होंने गांव के देवता, तीज-त्यौहारों को भी मानना बंद कर दिया। महिलाएं ना माथे पर बिंदी लगाती थी और ना सिंदूर। और इसके बाद कई अनजान लोगों के गांव आने का सिलसिला भी बढ़ गया लेकिन जब ऐसे लोगों की संख्या बढ़ने लगी तो हमने गांव में एक बैठक बुलाई। सबने एक स्वर में कहा कि हमारी परंपरा खतरे में है। एक रास्ते पर दो बोर्ड, आस्था और विरोध आमने-सामने भास्कर की टीम जब जामगांव पहुंची तो गांव की सीमा पर दो बोर्ड लगे मिले। पहले बोर्ड पर लिखा है- ‘यह पांचवीं अनुसूची क्षेत्र है, पास्टर, पादरी और धर्मांतरित व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित है।’ वहीं, दूसरा बोर्ड ईसाई धर्म के प्रार्थना भवन का है, जिस पर लिखा है- ‘डायोसिस ऑफ चर्च ऑफ गॉड।’ दोनों बोर्ड एक-दूसरे के पास लगे हैं, लेकिन अब उनका अर्थ बिल्कुल अलग हो गया है। ईसाई धर्म मानने वाले बोले – अब रिश्तेदार भी नहीं आते भास्कर की टीम जामगांव में बने चर्च पहुंची। यह चर्च लगभग 2 साल पहले ही शुरू हुआ है। गांव वालों ने सामूहिक निर्णय लेकर चर्च के सामने बैन का पोस्टर लगा रखा है। चर्च के पास्टर पतिराम नेताम ने बताया अब हमारे अपने रिश्तेदार भी हमसे मुलाकात करने नहीं आ पाते..क्योंकि उनके गांवों में भी यही बोर्ड लगा है। कुड़ाल से शुरू हुआ विरोध, अब 14 गांवों तक फैला इस पूरे घटनाक्रम की शुरुआत इसी जिले के कुड़ाल गांव से हुई थी। अगस्त 2025 में यहां ग्राम सभा बुलाई गई थी, जिसमें यह प्रस्ताव पारित हुआ कि गांव की सीमा पर पास्टर और पादरियों के प्रवेश पर रोक लगाई जाएगी। इसके बाद ये अभियान तेजी से 14 अन्य गांवों – परवी, जनकपुर, भीरागांव, घोडागांव, जुनवानी, हवेचुर, घोटा, घोटिया, सुलंगी, टेकाठोडा, बांसला, जामगांव, चारभाठा और मुसुरपुट्टा तक फैल गया। हर गांव की सीमा पर अब एक समान बोर्ड लगे हैं, जिन पर लिखा है कि ये बस्तर की परंपरा का गांव है, पेशा अधिनियम 1996 के तहत ग्राम सभा को अपनी संस्कृति की रक्षा का अधिकार है। कफन-दफन विवाद से भड़की थी आग 26 जुलाई 2025 को जामगांव निवासी सोमलाल राठौर (40) की मौत हो गई थी। परिवार वालों ने 27 जुलाई को ईसाई रीति-रिवाज से गांव में अपनी जमीन पर शव दफन कर अंतिम संस्कार कर दिया। जब ग्रामीणों को पता चला कि ईसाई रीति-रिवाज से शव को गांव में दफनाया गया है, तो विरोध शुरू हो गया। अगले दिन 500-1000 की भीड़ जामगांव में मौजूद चर्च पहुंची। चर्च में जमकर तोड़फोड़ की गई थी। जिसके बाद ग्रामीणों ने इसका विरोध किया और फिर ग्राम सभा में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास हुआ कि गांव में कोई पास्टर या पादरी नहीं आएगा। ईसाई समाज जाएगा सुप्रीम कोर्ट पादरियों और धर्मांतरित ईसाइयों के बैन लगाने के विरोध में कांकेर मसीही समाज प्रमुख दिग्बल तांडी और नरेंद्र भवानी ने ग्राम सभा के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। पीआईएल खारिज होने के बाद तांडी ने कहा है कि वे इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं। पेसा अधिनियम के तहत ग्रामीणों ने ऐसा किया हर एक बोर्ड पर यह लिखा गया है कि बस्तर पांचवीं अनुसूची क्षेत्र है और पेसा अधिनियम 1996 के तहत गांवों को अपनी परंपराओं और रूढ़िवादी संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार है। बोर्डों पर स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि गांवों में मसीही समाज का धार्मिक आयोजन वर्जित है। ये तस्वीरें भी देखिए… …………………………… इससे जुड़ी खबर भी पढ़ें… हाईकोर्ट का धर्मांतरण रोकने वाले होर्डिंग्स हटाने से इनकार: कहा- धर्म परिवर्तन रोकने पोस्टर लगाना असंवैधानिक नहीं; गांव में पादरी एंट्री-बैन पर PIL खारिज छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कांकेर जिले के कई गांवों में पादरियों और धर्मांतरित ईसाइयों के प्रवेश पर बैन के खिलाफ दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया है। चीफ जस्टिस रमेश कुमार सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने कहा कि प्रलोभन या गुमराह कर जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए होर्डिंग्स लगाना असंवैधानिक नहीं है। पढ़ें पूरी खबर…

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here