15 साल, 14 किरदार और छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा SRC NGO स्कैम। सत्ता के गलियारों से लेकर अफसरशाही साठगांठ तक। सैकड़ों करोड़ के स्कैम में पूर्व मंत्री, IAS अफसर का नाम है। हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब इस केस में CBI की एंट्री हो गई है। BJP विधायक, 7 रिटायर्ड IAS और 6 अधिकारी रडार पर हैं। समाज कल्याण विभाग से जुड़े इस स्कैम में सबसे बड़ा किरदार NGO के डिप्टी डायरेक्टर राजेश तिवारी का है। तिवारी के सिग्नेचर से NGO के खाते में बिना रोक-टोक सैकड़ों करोड़ ट्रांसफर हुए। BJP सरकार में 2004 से 2018 तक महिला एंव बाल विकास विभाग के 3 मंत्री बदले। इनमें रेणुका सिंह, लता उसेंडी और रमशीला साहू का नाम शामिल है। बताया जा रहा है कि इस स्कैम के बारे में मंत्रियों को 15 साल भनक तक नहीं लगी। हालांकि स्कैम में पूर्व मंत्री रेणुका सिंह का नाम NGO फाउंडर के रोल में उछला है। बताया जा रहा है कि CBI की टीम स्कैम केस में जल्द स्कैम से जुड़े लोगों के ठिकाने पर छापेमारी कर सकती है। NGO के डिप्टी डायरेक्टर राजेश तिवारी को संविदा पर रहते हुए भी कई अहम पद मिले। इसी का फायदा उठाकर केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं के करोड़ों रुपए NGO के खाते में डायवर्ट किया। राजेश तिवारी की पकड़ इतनी मजबूत रही कि 32 साल की पेंशन भी हथिया ली। दैनिक भास्कर की इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट में NGO स्कैम के बारे में आप पार्ट-1 में पहले ही जान ही चुके हैं। आज पार्ट-2 में आगे की कहानी में किसकी क्या भूमिका रही, कैसे पैसे ट्रांसफर हुए, कैसे मंत्रियों तक फाइल नहीं पहुंची विस्तार से पढ़िए… सबसे पहले समझिए स्कैम में किसकी क्या भूमिका रही ? दस्तावेजों के मुताबिक SRC NGO में पूर्व मंत्री समेत 7 रिटायर्ड IAS अफसर फाउंडर मेंबर थे, लेकिन आर्थिक अनियमितताओं में विभाग के कई और अधिकारियों के नाम सामने आए हैं। इनमें राजेश तिवारी, सतीश पांडे, अशोक तिवारी, हरमन खलखो, एमएल पांडे और पंकज वर्मा शामिल हैं। अब जानिए NGO स्कैम में एडहॉक कर्मचारी कैसे आया लीड रोल में ? राजेश तिवारी ने NGO के लिए बिना अनुमति के SBI में खाता खुलवाया राजेश तिवारी 13 साल तक SRC NGO के कार्यकारी निदेशक रहे। राजेश तिवारी ने NGO के लिए बिना अनुमति के SBI में खाता खुलवाया। कैशबुक, स्टॉक पंजीयन और वित्तीय दस्तावेज नहीं रखे। इस दौरान 1 करोड़ 35 लाख की गड़बड़ी पाई गई। इनके खिलाफ समाज कल्याण विभाग ने 2019 में नोटिस जारी किया था। मई 2018 में जब लगातार शिकायतें आने लगीं, तब समाज कल्याण विभाग के तत्कालीन सचिव आर. प्रसन्ना ने SRC के निदेशक रहे राजेश तिवारी को कारण बताओ नोटिस भेजा। नोटिस के बाद राजेश तिवारी ने 14 साल का ऑडिट एक साथ करवाया, जबकि नियम के मुताबिक हर साल ऑडिट होना जरूरी था। इस गड़बड़ी पर विभाग ने जांच के आदेश भी दिए। घोटाले की फाइल में सबसे ज्यादा तिवारी के सिग्नेचर घोटाले में सबसे ज्यादा फंड जिस खाते में पहुंचे, उसके दस्तावेजों पर ज्यादातर दस्तखत समाज कल्याण विभाग के तत्कालीन उपसंचालक राजेश तिवारी के थे। हैरानी की बात ये है कि तिवारी शुरू से ही संविदा पर थे, लेकिन फिर भी उन्हें विभाग के कई अहम पदों पर बैठाया गया। NGO में पंकज वर्मा का क्या रोल रहा ? पंकज वर्मा SRC NGO के कार्यकारी निदेशक रहे। इन्होंने NGO में वित्तीय लेन-देन की 2 साल का ऑडिट नहीं करवाया। समाज कल्याण विभाग की आपत्तियों का जवाब नहीं दिया। कैशबुक का मेंटेनेंस नहीं किया। अधिकारियों को 2019 में तत्कालीन विशेष सचिव आर प्रसन्ना ने नोटिस जारी किया था। हरमन खलखो किस किरदार में थे ? पंकज वर्मा NGO रजिस्ट्रेशन के बाद से कार्यकारी निदेशक थे। इन पर 10 करोड़ 80 लाख रुपए की गड़बड़ी के आरोप लगे हैं। इन तीनों अफसरों को समाज कल्याण विभाग के विशेष सचिव आर प्रसन्ना ने 2019 में नोटिस दिया था, लेकिन जवाब नहीं दिया गया। कुछ ठोस कार्रवाई भी नहीं हुई। कैसे ट्रांसफर होता था NGO के खाते में पैसा ? दस्तावेजों के अनुसार, समाज कल्याण विभाग से अलग-अलग मदों की राशि सीधे एसआरसी एनजीओ के खाते में ट्रांसफर की गई। इसमें त्रि-स्तरीय पंचायती राज संस्थाओं को सहायता, सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याण निधि, ग्राम पंचायतों को सहायता, अतिरिक्त केंद्रीय सहायता, राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना और अन्य योजनाओं की राशि शामिल थीं। SRC NGO को कब-कब दिए गए पैसे ? इसके अलावा 29 लाख, 20 लाख, 7 लाख, 9 लाख, 8 लाख, 9 लाख, 6 लाख और 4 लाख रुपए जैसी राशि भी अलग-अलग मदों ट्रांसफर होती रही। हैरानी की बात ये है कि ये रकम पहले समाज कल्याण विभाग से शासकीय दृष्टिबाधित एवं श्रवण बाधितार्थ विद्यालय को भेजी जाती थी। वहां से सीधे SRC के खाते में डाल दी जाती थी। अब जानिए 15 साल में मंत्रियों तक क्यों नहीं पहुंची फाइल ? NGO स्कैम में सबसे बड़ा सवाल यही है कि 15 साल में 3 मंत्री बदले, लेकिन कैसे मंत्रियों तक फाइल नहीं पहुंची। मंत्रियों को भनक तक नहीं लगी। किसी भी विभाग की स्कीम, बजट या खर्च का अंतिम अनुमोदन मंत्री स्तर पर होता है, लेकिन यहां अफसरों ने पूरी तरह बंद दरवाजे का खेल खेला। दस्तावेजों के मुताबिक 2004 से 2018 तक न तो प्रबंध समिति की कोई बैठक हुई, न ही किसी मंत्री के पास इसका फाइल रिकॉर्ड पहुंचा। अंदरखाने से काम करने वाले अफसर हर बार छोटे-छोटे नोटशीट पर दस्तखत करवाकर फाइलें वापस दबा देते थे। नतीजा ये हुआ कि 15 साल तक मंत्री अनजान रहे। इनमें रेणुका सिंह, लता उसेंडी और रमशीला साहू को भनक तक नहीं लगी। IAS अफसरों के इस NGO को बिना रोक-टोक करोड़ों की फंडिंग मिलती रही। CBI की नजर अब इन पर CBI की जांच अभी शुरुआती स्टेज में है। 15 दिन के भीतर सभी दस्तावेज जब्त करने का काम जारी है। अब जांच की आंच NGO के फाउंडर, RAS अफसर, जिला स्तर के अधिकारी, ऑडिट रोकने वाले अधिकारियों पर पड़ सकती है। ………………………………… इससे संबंधित पार्ट-1 की यह खबर भी पढ़ें… मंत्री, 7 IAS ने बनाया सरकारी विभाग जैसा NGO: दफ्तर-कर्मचारी सब कागजों पर, लेकिन सैलरी-डबल निकाली, 15 साल चला करोड़ों का भ्रष्टाचार, CBI करेगी जांच तारीख 16 नवंबर 2004… यही वह तारीख और साल है, जब एक मंत्री और 7 IAS समेत कुल 14 लोगों ने सरकारी विभाग जैसा एक NGO बनाया। NGO का नाम रखा गया स्टेट रिसोर्स सेंटर (SRC) और फिजिकल रेफरल रिहैबिलिटेशन सेंटर (PRRC)। न मान्यता, न दफ्तर, न कर्मचारी सब कुछ सिर्फ कागजों पर तैयार किया गया। पढ़ें पूरी खबर…