बस्तर गोंचा पर्व…200 साल पहले जला था जगन्नाथ मंदिर:7 रथों से परिक्रमा, तुपकी से सलामी; पहला मंदिर जहां जगन्नाथ-सुभद्रा-बलभद्र के 22 विग्रह की पूजा

0
3

छत्तीसगढ़ के बस्तर का गोंचा पर्व देशभर में प्रसिद्ध है। इसकी प्रसिद्धि का सबसे बड़ा कारण जगदलपुर स्थित भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र के 22 देव विग्रहों की पूजा है। वहीं तुपकी (बांस की बंदूक) से सलामी देनी की परंपरा है। समिति के सदस्यों के मुताबिक बस्तर में राजा ने पुरी से आरण्यक ब्राह्मणों को लाकर 360 घर बसाए थे। बस्तर गोंचा पर्व समिति के सदस्य विवेक पांडेय के मुताबिक करीब 150 से 200 साल पहले जगन्नाथ मंदिर जला था। एक समय था जब बस्तर में गोंचा पर्व पर 7 रथों से परिक्रमा होती थी। क्या है गोंचा पर्व है और बस्तर में इसे क्यों मनाया जाता है, पर्व से जुड़ी कई अनसुनी कहानी और मान्यताएं इस रिपोर्ट में पढ़िए:- गोंचा पर्व से जुड़ी मान्यताएं करीब 618 साल पहले बस्तर के तत्कालीन राजा पुरुषोत्तम देव दंडवत करते हुए पुरी के जगन्नाथ मंदिर गए थे। वहां उन्हें रथपति की उपाधि दी गई थी। उन्हें 16 चक्कों का एक विशाल रथ भी भेंट किया गया था। 16 पहियों वाले रथ को तेजी से खींचकर बस्तर लाना मुश्किल था। इसलिए जब राजा इस रथ को लेकर बस्तर आए तो उन्होंने इस रथ के 3 हिस्से कर दिए थे। जिसमें एक 8 का और 2 रथ 4-4 चक्के में बांट दिया था। ऐसे बंटा रथ और शुरुआत हुई गोंचा पर्व की 8 चक्के का एक और 4 चक्के का एक रथ बस्तर दशहरा और एक अन्य 4 चक्के का रथ बस्तर गोंचा के लिए दिया गया। जिसके बाद से ही बस्तर में गोंचा पर्व की शुरुआत हुई थी। उस समय के रियासत के लोगों ने आरण्यक ब्राह्मण समाज के लोगों को भी यहां लाया था। साथ ही भगवान जगन्नाथ के देव विग्रह भी लाए गए थे। पुराना मंदिर जला, फिर नया मंदिर बनवाया तब जगदलपुर में तिवारी बिल्डिंग के पास में मंदिर की स्थापना की गई थी, वो मंदिर पक्का नहीं था, कच्चा था। मंदिर स्थापना के कुछ साल बाद किसी वजह से मंदिर में आग लग गई थी। जिसके बाद 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज ने राजा से नया मंदिर स्थापित करने के लिए कहा था। फिर राजा ने सिरहासार भवन के पास पक्का मंदिर बनवाया। 7 खंड बनवाए, 22 देव विग्रहों को स्थापित किया गया आस-पास के गांवों में भी ब्राम्हण भगवान जगन्नाथ की पूजा-अर्चना करते थे। सभी जगह गोंचा पर्व मनाना भी थोड़ा मुश्किल था। इसलिए सभी ने एक देव विग्रहों को एक ही जगह रख कर पूजा करने की मंशा बनाई थी। वहीं इसके बाद राजा ने 7 खंड बनाए और 7 खंडों में भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र के 22 देव विग्रहों को स्थापित किया था। शुरुआत में बस्तर दशहरा में कुल 7 रथ चलते थे। 7 में 6 रथों में कुल 22 देव विग्रहों को रखा जाता था। यानी हर एक रथ में भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र के तीन-तीन देव विग्रहों को रखा जाता था। जबकि एक रथ में भगवान रामचंद्र के विग्रह को रख कर शहर की परिक्रमा करवाई जाती थी। लेकिन वर्तमान में सिर्फ 3 रथ से ही परिक्रमा करवाई जाती है। जिसमें हर एक में एक विग्रह होते हैं। तुपकी से सलामी देनी की भी प्रथा बस्तर गोंचा में तुपकी से सलामी देने की भी परंपरा है। ये तुपकी क्या है? कैसे बनती है? इसकी कितनी महत्ता है? इन सारे सवालों का जवाब जानने के लिए हमने बस्तर के वरिष्ठ पत्रकार और बस्तर की कला, संस्कृति के जानकार अविनाश प्रसाद से बातचीत की। रथ यात्रा के दिन इसी तुपकी से हर वर्ग के लोग भगवान भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और बलभद्र को सलामी देते हैं। इस रथ यात्रा को विश्वभर में और प्रसिद्ध बना देते हैं। अब ऐसे होता है आयोजन इस साल 11 जून को देव स्नान पूर्णिमा के दिन से गोंचा पर्व शुरू हो चुका है। 12 से 25 जून तक भगवान अनसर काल में थे। इस बीच भगवान के दर्शन वर्जित थे। पुजारी भगवान को काढ़ा समेत अन्य भोग लगाते हैं। जिससे भगवान जल्दी स्वस्थ हो जाएं और फिर अपने भक्तों को जल्दी दर्शन दे सकें। आज यानी 26 जून को नेत्रोत्सव हुआ। वहीं कल यानी 27 जून को गोंचा की रथ यात्रा होगी। भगवान अपनी मौसी के बीच जनकपुरी जाएंगे, फिर सिरहासार में देव विग्रहों को स्थापित किया जाता है। इन 9 दिनों में कई श्रद्धालु अपने बच्चों का मुंडन करवाते हैं, तो कई भक्त मन्नत लेकर पहुंचते हैं। जगन्नाथ मंदिर और रथयात्रा से जुड़ी तैयारियों की तस्वीर देखिए-

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here