ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने रविवार को फिलिस्तीन को एक आजाद देश की मान्यता देने का ऐलान किया। इसके साथ ही कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने भी फिलिस्तीन को स्वतंत्र देश की मान्यता देने की घोषणा की है। स्टार्मर ने कहा कि यह कदम इजराइल के अवैध कब्जे को खत्म करने और शांति लाने में मदद करेगा। इसके तहत एक नई फिलिस्तीनी सरकार इजराइल के साथ मिलकर काम करेगी। इसमें हमास की कोई भूमिका नहीं होगी। भारत-चीन समेत अब तक 140 से ज्यादा देश फिलिस्तीन को देश की मान्यता दे चुके हैं। ब्रिटेन ने क्यों लिया फैसला? ब्रिटिश पीएम ने कहा कि यह फैसला इजराइल को सजा देने के लिए नहीं लिया गया है, लेकिन अगर इजराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने गाजा में सैन्य कार्रवाई को कम हिंसक तरीके से और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन करते हुए किया होता, तो शायद यह कदम न उठाया जाता। इससे पहले ब्रिटिश डिप्टी पीएम डेविड लैमी ने कहा था कि अगर ब्रिटेन फिलिस्तीन को मान्यता देता है, तो इसका मतलब यह नहीं होगा कि कोई नया देश तुरंत बन जाएगा। उन्होंने कहा कि मान्यता सिर्फ एक शांति प्रक्रिया का हिस्सा है। लैमी ने बताया कि ऐसा कदम इसलिए उठाया जा रहा है ताकि ‘टू स्टेट सॉल्यूशन’ की उम्मीद बनी रहे। टू स्टेट सॉल्यूशन इजराइल और फिलिस्तीन के बीच लंबे समय से चल रहे संघर्ष को सुलझाने का एक प्रस्तावित तरीका है। इस के तहत, इजराइल और फिलिस्तीन दोनों को अलग-अलग, स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता दी जाएगी। स्टार्मर बोले- फिलिस्तीन को मान्यता हमास की जीत नहीं स्टार्मर ने पहले कहा था कहा है कि फिलिस्तीन को मान्यता देना किसी भी तरह से हमास की जीत नहीं है। उनका कहना है कि भविष्य में फिलिस्तीन के शासन में हमास की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए। स्टार्मर ने जुलाई में कहा था कि ब्रिटेन फिलिस्तीन को मान्यता तभी देगा, जब इजराइल और हमास के बीच सीजफायर हो, गाजा में मानवीय मदद पहुंचाई जाए, इजराइल पश्चिमी तट पर कब्जे से पीछे हटे और शांति प्रक्रिया के लिए तैयार हो। इजराइल-हमास जंग में अब तक 60 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं, जबकि गाजा में रहने वाले 20 लाख से ज्यादा लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा है। ट्रम्प का फिलिस्तीन को मान्यता देने से इनकार ब्रिटिश पीएम ने यह फैसला ऐसे समय पर लिया है, जब अमेरिका के कई राजनेताओं ने ब्रिटेन पर ऐसा न करने का दबाव डाला था। उनका कहना था कि इससे न सिर्फ इजराइल की सुरक्षा पर असर पड़ेगा, बल्कि गाजा में हमास के कब्जे में बंधक बनाए गए लोगों के परिवारों की स्थिति भी और कठिन हो जाएगी। पिछले हफ्ते ब्रिटेन की अपनी यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी साफ कहा था कि फिलिस्तीन को मान्यता देने को लेकर उनकी राय ब्रिटेन से मेल नहीं खाती। दूसरी तरफ, इजराइल ने इस कदम की कड़ी आलोचना की है और कहा है कि फिलिस्तीन को मान्यता देना असल में आतंकवाद को इनाम देने जैसा है। ब्रिटेन ने 1917 में यहूदी देश बनाने का समर्थन किया था ब्रिटेन और फ्रांस का यह फैसला इसलिए अहम है क्योंकि ये न सिर्फ ग्रुप7 (G7) में शामिल हैं, बल्कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य भी हैं। मिडिल ईस्ट की राजनीति में ब्रिटेन और फ्रांस की भूमिका ऐतिहासिक रही है। पहले विश्व युद्ध में ओटोमन साम्राज्य की हार के बाद दोनों देशों ने इस क्षेत्र को अपने हिस्सों में बांट लिया था। तब ब्रिटेन को फिलिस्तीन पर अधिकार मिला था। 1917 में ब्रिटेन ने ही बाल्फोर घोषणापत्र जारी किया था, जिसमें यहूदियों के लिए उनका देश बनाने का समर्थन किया गया। लेकिन घोषणापत्र का वह हिस्सा, जिसमें फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों की रक्षा की बात कही गई थी, कभी गंभीरता से लागू नहीं हुआ। ब्रिटेन लंबे समय से टू स्टेट सॉल्यूशन का समर्थन करता रहा है, लेकिन उसकी शर्त यही रही है कि फिलिस्तीन को मान्यता शांति योजना के हिस्से के रूप में ही दी जानी चाहिए। अब ब्रिटेन के अधिकारियों को डर है कि ऐसा समाधान लगभग नामुमकिन होता जा रहा है। ————————————————- यह खबर भी पढ़ें… इजराइल ने गाजा-हमास मुद्दे पर फ्रांस-ब्रिटेन को फटकारा:UN में कहा- इनके इराक-सीरिया में हमले जायज तो हमारा कतर पर हमला भी सही इजराइल के राजदूत डैनी डैनन ने शुक्रवार को UN महासभा में कतर में हमास नेताओं पर इजराइली हमले का बचाव किया और फ्रांस-ब्रिटेन की आलोचना की। डैनन ने कहा कि 2014 से 2022 तक फ्रांस ने माली, चाड, बुर्किना फासो और मॉरिटानिया में आतंकवादियों पर हमले किए। ब्रिटेन ने इराक और सीरिया में ISIS के खिलाफ एयर स्ट्राइक की। यहां पढ़ें पूरी खबर…
