भारत को क्यों नहीं मिल रहा रूस से सस्ता तेल:अमेरिका, सऊदी और UAE से खरीद बढ़ी; ट्रम्प की धमकी या कोई और वजह

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भारत ने 4 साल में पहली बार रूस से तेल खरीदना कम कर दिया है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर 2024 में रूस का शेयर 41% था जो सितंबर 2025 में घटकर 31% रह गया। इसकी एक बड़ी वजह भारत पर अमेरिका का 25% एक्स्ट्रा टैरिफ है। राष्ट्रपति ट्रम्प का कहना है कि भारत, रूस से कम कीमत में कच्चा तेल खरीद कर बेच रहा है। इससे पुतिन को यूक्रेन जंग जारी रखने में मदद मिल रही है। हालांकि ये सिर्फ अकेली वजह नहीं है, जिससे भारत रूसी तेल खरीदने से परहेज कर रहा है। पिछले एक साल में अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां तेजी से बदली हैं। रूसी तेल की खरीद घटने की 5 वजह जानिए… 1. अमेरिकी टैरिफ से रूसी तेल का फायदा घटा, नुकसान ज्यादा अप्रैल 2022 से जून 2025 तक भारत ने रूस से रोजाना 17-19 लाख बैरल रूसी क्रूड ऑयल खरीदा। इससे भारत को 17 अरब डॉलर की बचत हुई। भारतीय कंपनियों को भी करोड़ों रुपए का फायदा हुआ, लेकिन रूसी तेल खरीदने की वजह से ट्रम्प ने अगस्त में भारत पर 25% टैरिफ लगा दिया। इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रम्प के एक्स्ट्रा टैरिफ से भारतीय निर्यात को लगभग 37 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है और GDP ग्रोथ रेट 1% तक गिर सकती है। 2. रूसी कंपनियों पर प्रतिबंध से भारत को नुकसान अमेरिका ने नवंबर में रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों ‘रॉसनेफ्ट’ और ‘लुकोइल’ पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए। ये दोनों कंपनियां भारत को रूस का लगभग 60% तेल सप्लाई करती थीं। इससे भारत को रूसी तेल की डायरेक्ट सप्लाई मुश्किल हो गई। जैसे ही अमेरिकी प्रतिबंध लागू हुए, इन कंपनियों से किसी भी तरह का भुगतान, बैंकिंग लेनदेन, बीमा या शिपिंग करना गैरकानूनी हो गया। इसका सीधा असर भारत पर पड़ा, क्योंकि भारतीय रिफाइनरियां इन्हीं दो कंपनियों पर सबसे ज्यादा निर्भर थीं। प्रतिबंध लागू होने के तुरंत बाद भारतीय बैंकों ने रूस की इन कंपनियों को पेमेंट रोक दिया। पेमेंट रुकते ही भारतीय ऑयल कंपनियों ने भी खरीद ऑर्डर वापस लेने शुरू कर दिए। 3. रूस ने डिस्काउंट देना कम किया यूक्रेन युद्ध के बाद रूस ने 20-25 डॉलर प्रति बैरल सस्ता क्रूड ऑयल बेचना शुरू किया। तब अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की कीमत 130 डॉलर प्रति बैरल थी, ऐसे में ये छूट भारत के लिए किफायती थी। हालांकि अब अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की कीमत 63 डॉलर प्रति बैरल हो गई है। रूस ने भी अपनी छूट घटाकर 1.5 से 2 डॉलर प्रति बैरल कर दी है। इतनी कम रियायत में भारत को पहले जैसा फायदा नहीं मिल रहा, ऊपर से रूस से तेल लाने में शिपिंग और बीमा खर्च भी ज्यादा पड़ता है। इसी वजह से भारत अब दोबारा सऊदी, UAE और अमेरिका जैसे स्थिर और भरोसेमंद सप्लायर्स से तेल खरीद रहा है, क्योंकि अब कीमत में पहले जैसा बड़ा अंतर नहीं बचा। 4. EU ने रूसी तेल से बने प्रोडक्ट लेने से इनकार किया यूरोपियन यूनियन (EU) ने एक नया नियम बनाया है, जिसके तहत 21 जनवरी 2026 के बाद वह भारत, तुर्किये और चीन जैसे देशों से ऐसा डीजल, पेट्रोल या जेट फ्यूल नहीं खरीदेगा जो रूसी कच्चे तेल से बना हो। यह नियम रूस पर आर्थिक दबाव डालने के लिए लाए गए यूरोप के 18वें सैंक्शन पैकेज का हिस्सा है। अभी तक भारत सस्ता रूसी तेल खरीदकर उसे रिफाइन करके यूरोप को बेचता था, लेकिन अब यह रास्ता लगभग बंद हो जाएगा। 2024–25 में भारत ने रूसी तेल से बने प्रोडक्ट का करीब आधा हिस्सा यूरोप को बेचा था, इसलिए नया नियम भारत पर सीधा असर डालता है। EU यह भी चाहता है कि बेचने वाले देशों को सबूत देना पड़े कि उनके फ्यूल में रूसी तेल नहीं है। इसके लिए रिफाइनरी को अपनी क्रूड स्ट्रीम अलग रखनी होगी या 60 दिनों तक रूसी तेल का इस्तेमाल बंद करके दिखाना होगा। अगर शक हुआ तो बैंक भी फाइनेंसिंग रोक सकती है। 5. रूस रुपए में भुगतान लेने को तैयार नहीं पिछले दो साल में भारत ने रूस से बहुत ज्यादा क्रूड ऑयल खरीदा है। जबकि भारत ने रूस को काफी कम एक्सपोर्ट किया है। इस असंतुलन की वजह से रूस के पास काफी ज्यादा भारतीय रुपया जमा हो गया है। रूस इसे आसानी से डॉलर में एक्सचेंज नहीं कर सकता है और न ही इसे बाकी देशों के साथ व्यापार में इस्तेमाल कर सकता है। इसकी वजह ये है कि रुपया इंटरनेशनल लेवल पर अभी ऐसी करेंसी नहीं है जिसे दुनिया के ज्यादातर देश आसानी से स्वीकार कर लें या जिसे ग्लोबल मार्केट में आसानी से एक्सचेंज कर सकें। ऐसे मे रूस रुपए को कहीं इस्तेमाल नहीं कर पाता है। लिहाजा वो इसमें पेमेंट लेने से बचता है। इसके अलावा रूस से सस्ता तेल खरीदने के बाद सबसे बड़ी परेशानी पेमेंट की आती है। अमेरिका और यूरोप ने रूस पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं। इस वजह से अंतरराष्ट्रीय बैंक रूस से जुड़े लेन-देन को लेकर बेहद सतर्क रहते हैं। भारत जब रूस को पेमेंट भेजता है तो कई बार ट्रांजैक्शन रुक जाते हैं या मंजूरी देने में बहुत समय लगता है। डॉलर में पेमेंट करने पर अमेरिकी दबाव और सैंक्शन का खतरा रहता है, इसलिए कई बार किसी तीसरे देश के बैंक के जरिए पैसा भेजना पड़ता है, जिससे प्रोसेस और उलझ जाता है। इन सब का असर भारतीय तेल कंपनियों पर पड़ता है। तेल भले सस्ता हो, लेकिन पेमेंट रुकने से शिपमेंट भी देर से पहुंचता है। ————————– यह खबर भी पढ़ें… रूसी संसद में भारत से रक्षा समझौते पर वोटिंग:पुतिन के दौरे से पहले मंजूरी मिलेगी; एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों का इस्तेमाल कर सकेंगे रूसी संसद के निचले सदन स्टेट डूमा में आज भारत के साथ रक्षा समझौते को मंजूरी देने के लिए वोटिंग होगी। दोनों देशों के बीच इस साल फरवरी में रेसिप्रोकल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक्स एग्रीमेंट (RELOS) पर साइन हुए थे। अब इस समझौते को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे से पहले मंजूरी मिलने वाली है। पढ़ें पूरी खबर…

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