एक्टर मुकेश ऋषि के बेटे राघव ऋषि ने भी पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए एक्टिंग में करियर बनाया है। राघव कहते है कि पापा की ईमानदारी और अनुशासन से उन्हें प्रेरणा मिलती है। पिता-पुत्र पंजाबी फिल्म ‘’निडर’ में स्क्रीन भी शेयर कर चुके हैं। मुकेश ऋषि कहते है कि राघव में सबसे अच्छी बात उसकी काम के प्रति ईमानदारी लगती है। हाल ही में मुकेश ऋषि और राघव ऋषि ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत की। पेश है कुछ प्रमुख अंश.. सवाल: जब पिता इतने लीजेंडरी हों और उस फील्ड में हों जहां उन्होंने एक नाम स्थापित किया हो, तो आपके लिए बड़े चैलेंजेज रहते हैं। आप उन चैलेंजेज से कैसे पार पाते हो? जवाब/राघव: अगर मेरे पिताजी का इतना बड़ा नाम है इस फील्ड में, तो वह मेरे गाइड भी हैं। अगर मैं कहीं अटकता हूं, तो मुझे पता है कि मैं कहां जाकर किसको पूछ सकता हूं। सब कुछ एक जगह मेरे पास है और अगर मुझे कोई दिक्कत आती है तो मैं हमेशा अपने डैडी से बात कर सकता हूं। सवाल: मुकेश जी, आपके बेटे में वैसा ही जुनून दिख रहा है जैसा आपके अंदर था। आपकी ईमानदारी आज इनमें भी नजर आ रही है। आपको कैसा लगता है? जवाब/मुकेश: बहुत अच्छा लगता है। काम के लिए सही तैयारी करनी चाहिए। क्या जरूरत है, डिसिप्लिन क्या है, ये सब। हमारी फिल्म ‘निडर’ साथ में थी, तो रिहर्सल साथ करते थे। इससे सेट पर पिता-पुत्र का डर नहीं लगा, दोनों कैरेक्टर में तुरंत ढल गए। घर पर प्रैक्टिस से सेट पर रिलैक्स रहते थे। काम एक जैसा होने से कोई हिचकिचाहट नहीं हुई। यही सबसे बड़ा फायदा लगा। सवाल:राघव, क्या कभी ऐसा हुआ कि आपके डैड सेट पर हों और रोमांस या एक्शन सीन हो तो कोई हिचकिचाहट हुई? जवाब/ राघव: मैंने जो फिल्में की हैं, उनमें मुझे एक्शन करने का मौका नहीं मिला। लेकिन जो आप एक्शन की हिचकिचाहट की बात कर रहे हैं, वह पहले खत्म हो चुकी थी क्योंकि थोड़ी बहुत एक्शन सीखने के बाद मैंने डैडी के साथ इसकी प्रैक्टिस भी की है। इसलिए अब कोई हिचकिचाहट नहीं है। बात करें रोमांस की, तो थोड़ा सा संकोच रहता है क्योंकि बहुत सारे लोग देख रहे होते हैं। खास बात यह है कि वह फिल्म मेरे पिता के साथ बनी थी, उसमें मेरे कुछ रोमांटिक सीन्स हीरोइन के साथ थे। मुकेश: रिहर्सल में मैं ही हीरोइन बन जाता था। जब हम डायलॉग बोलते थे, तो उसका फायदा जरूर होता था क्योंकि कभी-कभी डायलॉग थोड़े अजीब लगते थे। लेकिन उससे रिलैक्स हो जाते थे। कई बार ऐसे सीन होते थे, जिनमें मैं कहता था, ‘मैं ये डायलॉग पढ़ता हूं, तुम वह करो। सवाल- आपकी फिल्म ‘द ग्रेट इंडियन एस्केप’ बड़ी कमाल की फिल्म थी। आने वाली और फिल्मों के बारे में बताइए? जवाब/ राघव: ‘द ग्रेट इंडियन एस्केप’ मेरी पहली फिल्म थी, जिसे तरनजीत सिंह नामधारी ने डायरेक्ट की थी। इस फिल्म की कहानी एक पायलट की है, जो पाकिस्तान में क्रैश हो जाता है और बंदी बन जाता है। फिल्म में दिखाया गया है कि वह कैसे भागने की कोशिश करता है। इसके बाद हमने एक पंजाबी-हिंदी मिक्स भाषा में ‘निडर’ बनाई, जो एक पिता और बेटे की कहानी है। यह 2023 में रिलीज हुई। पिछले साल हम एक नई अंतरराष्ट्रीय भाषाओं में बनने वाली फिल्म शुरू करने वाले थे, जिसमें अंग्रेजी , कोरियन और भारतीय भाषाएं होंगी। लेकिन लोकेशन की दिक्कतों के कारण यह अब इस साल शुरू होगी। इसका विषय पर्यावरण और जानवरों के संरक्षण पर है, जैसे फिल्म ‘कांतारा’ की कहानी है। सवाल: क्या डैड उस फिल्म का हिस्सा होंगे? जवाब/ राघव: हां, कोशिश करेंगे हिस्सा बने। लेकिन उस फिल्म में हम दोनों ‘निडर’ के जैसे पिता और पुत्र की भूमिका में नहीं होंगें। वहां रिश्ता थोड़ा अलग है। मुकेश: फिल्म में हमारे रिश्ते प्रोफेशनल हैं, हम दोनों काम के साथी हैं। कहानी में हॉलीवुड की एक्ट्रेस भी हैं। कहानी में उनकी एंट्री और घटनाएं होती हैं, जो भारत में बनती हैं, इसलिए हम कहानी में जुड़े हैं। कहानी दिलचस्प है, लेकिन कभी-कभी नए लोग टाइम का सही अंदाजा नहीं लगा पाते, ऐसा कुछ हुआ। सवाल: राघव का इतना बड़ा महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है और लगातार अच्छा काम कर रहे हैं। पिता के नाते, आप राघव को लेकर क्या महसूस करते हैं? जवाब/मुकेश: मैं चाहता हूं कि ईमानदारी से काम करते रहो। लीड फिल्में मिलने से ज्यादा जरूरी है हर काम को अच्छे से करना। चुनौतियां स्वीकार करो, तभी ग्रोथ होती है। मेरी कोई बड़ी महत्वाकांक्षा नहीं है, बस अपने काम को ईमानदारी से करते रहो। सवाल: आप अपनी मेहनत और टैलेंट से आगे बढ़े। कभी खुद को फायदा दिलाने के लिए रेकमेंडेशन नहीं मांगा है। कई स्टार किड्स अपने माता-पिता से कनेक्शन्स का जोर-शोर से प्रचार करवाते हैं, लेकिन आप ऐसा क्यों नहीं करते? जवाब/ मुकेश: नहीं यार, जो जिसकी किस्मत में है, उसे मिलेगी। इसमें कोई बुराई नहीं है। नेपोटिज्म मेरी समझ से बाहर है। जैसे कोई इंडस्ट्रियलिस्ट है तो उसके बच्चे फैक्टरी में जाएंगे, वो स्वाभाविक है। इसमें कुछ फायदे होते हैं। लेकिन आखिर में जब कैमरे के सामने खड़े होते हैं, तो केवल हम खुद होते हैं। सवाल: राघव, आपकी क्या महत्वाकांक्षा है? आप किस तरह की फिल्में करना चाहते हैं? जवाब/राघव: मैं ओटीटी से बहुत प्रभावित हूं। पहले फिल्मों में हीरो और विलेन की अलग-अलग पहचान होती थी, लेकिन अब ओटीटी पर ये सब खत्म हो गया है। साउथ और नॉर्थ दोनों जगह अब अच्छा अभिनय ज्यादा मायने रखता है। ओटीटी टीमवर्क पर जोर देता है, न कि सिर्फ एक कैरेक्टर पर। मैं भी ऐसी फिल्में करना चाहता हूं जहां कोई भी किरदार निभाऊं, उसका असर फिल्म में जरूर दिखे। सवाल: बकेट लिस्ट में कोई डायरेक्टर हैं? जवाब/राघव: जो भी काम मिलेगा, वो चलेगा। एक्टर्स के हाथ में पिक और चूज करने की पूरी आजादी नहीं होती। बहुत से बढ़िया डायरेक्टर्स हैं जिनके बारे में हमें पता नहीं, लेकिन वे अच्छा काम करते हैं। खासकर टीवीएफ जैसे प्लेटफॉर्म पर, जहां एक्टर्स को बढ़िया मौके मिलते हैं। मैं निश्चित नहीं कह सकता कि सिर्फ किसी के साथ काम करूंगा। काम अच्छा करना मेरी प्राथमिकता है, चाहे वो नया डायरेक्टर हो या अनुभवी। सवाल: डैडी के नाम और काम की वजह से जिम्मेदारी बढ़ती है, आप इसे कैसे देखते हो? जवाब/राघव: हां, जिम्मेदारी बढ़ती है। मैं उसे अपने काम से ही पूरा कर सकता हूं। डैडी का रास्ता ही मेरा रास्ता है। मैं उम्मीद करता हूं कि मैंने भी अच्छा काम किया होगा। सवाल: डैडी की वो खास आदतें कौन-सी हैं जो आम लोगों को प्रेरित करती हैं? जवाब/राघव: ईमानदारी और अनुशासन उनकी सबसे बड़ी ताकत हैं। वे हमेशा समय पर पहुंचते हैं, जो कम लोगों में दिखता है। उनकी ये प्रतिबद्धता सबको प्रेरणा देती है। सवाल: डैड की सबसे पसंदीदा फिल्म कौन सी है आपकी? जवाब/राघव: कई फिल्में हैं, एक नाम नहीं दे सकता। लेकिन सबसे पहले साउथ की फिल्म ‘इंद्रा- द टाइगर’ आती है। वहां डैड को एक खास अंदाज में दिखाया गया है, जो बहुत अच्छा है। इसके अलावा ‘सरफरोश’, ‘कुरुक्षेत्र’ और हाल की वेब सीरीज ‘सलाकार’ भी है। बहुत सारी फिल्में हैं, लेकिन ‘गुंडा’ जैसा मजा फिर नहीं आएगा। जो उस समय में अच्छा था, आज लोग उसे देखते हैं। सवाल- आपके डैडी का मीम कल्चर का भी एक लीजेंडरी फेज रहा है, इसे कैसे देखते हैं आप? जवाब/राघव: हां, बिलकुल। गुंडे का मीम आज भी चलता है। लोग इसे सीरियसली नहीं लेते, उसी वजह से मजा आता है। डैड का ‘सरफरोश’ वाला डायलॉग भी चलता है, जो अच्छा लगता है। सवाल: मुकेश जी, आपको राघव की कौनसी क्वालिटीज अच्छी लगती हैं? जवाब/मुकेश: मुझे राघव में सबसे अच्छी बात उसकी काम के प्रति ईमानदारी लगती है। जो भी काम करो, दिल से करो तो कभी नुकसान नहीं होगा। बस ईमानदार रहो, दिल लगाओ तो सब सीख मिलेगा। __________________________________________________ मुकेश ऋषि का यह इंटरव्यू भी पढ़ें.. शेखर कपूर-फिरोज नाडियाडवाला करने वाले थे लॉन्च:एक्सीडेंट ने बदली किस्मत, प्रियदर्शन ने दिया मौका, मुकेश ऋषि बोले- हर स्टार का विलेन रहा हूं फिल्मों में अपने खलनायक किरदारों से घर-घर पहचान बनाने वाले मुकेश ऋषि की कहानी संघर्ष और लगन की मिसाल है। कठुआ (जम्मू-कश्मीर) में 19 अप्रैल 1956 को जन्मे मुकेश शुरू से ही स्पोर्ट्स और फिटनेस के शौकीन थे। स्कूल के दिनों में वे तेज गेंदबाज रहे और पढ़ाई के बाद चंडीगढ़ से एम.ए. किया। नौकरी की तलाश उन्हें मुंबई ले आई, जहां कुछ साल काम करने के बाद वे फिजी चले गए।पूरी खबर पढ़ें..
