22 सितंबर से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। छत्तीसगढ़ के बस्तर के मां दंतेश्वरी, डोंगरगढ़ के मां बम्लेश्वरी, बिलासपुर के महामाया मंदिर, रायपुर के महामाया मंदिर समेत कई मंदिरों में तैयारियां जोरों पर हैं। डोंगरगढ़ में भीड़ के दौरान भगदड़ से बचने और चलने के लिए जिगजैग की व्यवस्था की गई है। वहीं, ज्योत जलाने विदेशी भक्तों ने भी बुकिंग की है। इसके अलावा 10 एक्सप्रेस ट्रेनों को डोंगरगढ़ में स्टॉपेज दिया गया है। इस बार भी कई माता-मंदिरों में घी के दीपक नहीं जलेंगे। शक्तिपीठों और देवी मंदिरों की अपनी-अपनी मान्यताएं हैं। इन मंदिरों में लाइव दर्शन, श्रद्धालुओं के रुकने सहित अन्य इंतजाम किए गए हैं। मंदिरों में विशेष आरती के साथ मनोकामना ज्योति कलश भी जलाए जाएंगे। दैनिक भास्कर आपको बता रहा है प्रदेश के प्रमुख मंदिरों में क्या-क्या कार्यक्रम होंगे। इन मंदिरों में इस साल नवरात्रि में क्या खास है, श्रद्धालुओं को क्या सुविधाएं मिलेंगी, दर्शन-पूजन और ज्योति कलश की क्या व्यवस्थाएं हैं पढ़िए:- पहले जानिए शक्ति पीठों के बारे में… जिले के रतनपुर स्थित महामाया मंदिर महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती को समर्पित है। ये 52 शक्ति पीठों में से एक है। देवी महामाया को कोसलेश्वरी के रूप में भी जाना जाता है, जो पुराने दक्षिण कोसल क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। इस बार करीब एक टोना- पत्तल का ऑर्डर है। जिसमें प्रसाद दिया जाएगा। डोंगरगढ़ की पहाड़ी पर स्थित मां बम्लेश्वरी देवी का विख्यात मंदिर आस्था का केंद्र है। बड़ी बम्लेश्वरी के समतल पर स्थित मंदिर छोटी बम्लेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध है। बम्लेश्वरी शक्ति पीठ का इतिहास करीब 2000 वर्ष पुराना है। इसे वैभवशाली कामाख्या नगरी के रूप में जाना जाता था। मां बम्लेश्वरी को मध्य प्रदेश के उज्जयिनी के प्रतापी राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी भी कहा जाता है। इतिहासकारों ने इस क्षेत्र को कल्चुरी काल का पाया है। मंदिर की अधिष्ठात्री देवी मां बगलामुखी हैं। उन्हें मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है। उन्हें यहां मां बम्लेश्वरी के रूप में पूजा जाता है। डोंगरगढ़ स्टेशन पर 9 दिन रुकेंगी 10 एक्सप्रेस ट्रेनें इसके अलावा रेलवे ने नवरात्र पर मां बम्लेश्वरी जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए 10 एक्सप्रेस ट्रेनों को डोंगरगढ़ रेलवे स्टेशन पर स्टॉपेज दी है। 22 सितंबर से 1 अक्टूबर तक 10 एक्सप्रेस ट्रेनें डोंगरगढ़ रेलवे स्टेशन पर 9 दिन 2 मिनट के लिए रुकेंगी। इसके अलावा एक स्पेशल मेमू ट्रेन भी चलाई जाएगी और 2 मेमू ट्रेनों का विस्तार किया गया है। दुर्ग और डोंगरगढ़ के बीच मेमू स्पेशल इसके अतिरिक्त दुर्ग और डोंगरगढ़ के मध्य 9 दिन के लिए एक मेमू स्पेशल ट्रेन भी चलाई जाएगी। यह ट्रेन दुर्ग से रसमड़ा, मुरहीपार, परमलकसा, राजनांदगांव, बकल, मुसरा, जटकन्हार होते हुए डोंगरगढ़ पहुंचेगी। देश के 52 शक्ति पीठों में से एक दंतेश्वरी मंदिर है। मान्यता है कि यहां देवी का दांत गिरा था। 14वीं शताब्दी में बना यह मंदिर दंतेवाड़ा में स्थित है। मां की मूर्ति काले पत्थर से तराश कर बनाई गई है। मंदिर को चार भागों में विभाजित किया गया है। गर्भगृह और महा मंडप का निर्माण पत्थर के टुकड़ों से किया गया था। मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने एक गरुड़ स्तंभ है। मंदिर खुद एक विशाल प्रांगण में स्थित है जो विशाल दीवारों से घिरा हुआ है। शिखर को मूर्तिकला से सजाया गया है। विदेशों के भक्त भी ज्योत जलाने www.maadanteshwari.in वेबसाइट पर ऑनलाइन बुकिंग करवा रहे हैं। इसके अलावा यदि कोई भक्त पूरे 9 दिनों तक माता के दर्शन करना चाहता है, तो 2100 रुपए की रसीद कटवा सकता है। रोज सार्वजनिक कार्यक्रम होंगे। 1400 साल पहले महामाया मंदिर का निर्माण हैहयवंशी राजाओं ने करवाया था। महामाया मंदिर का गर्भगृह और गुंबद का निर्माण श्रीयंत्र के रूप में हुआ है। मंदिर में मां महालक्ष्मी, मां महामाया और मां समलेश्वरी तीनों की पूजा आराधना एक साथ की जाती है। महामाया मंदिर प्रशासन के मुताबिक इस बार नवरात्रि के एक दिन पहले यानी 21 सितंबर रात 9 बजे तक ज्योत प्रज्वलन का राशि ली जाएगी। अंबिकापुर का नाम ही महामाया अंबिका देवी के नाम पर है। किवदंती है कि महामाया का सिर रतनपुर और धड़ अम्बिकापुर में है। माता की प्रतिमा छिन्न मस्तिका है। महामाया के बगल में विंध्यवासिनी विराजीं हैं। विंध्यवासिनी की प्राण प्रतिष्ठा विंध्याचल से लाकर की गई है। शारदीय नवरात्र में छिन्न मस्तिका महामाया के शीश का निर्माण राजपरिवार के कुम्हार हर साल करते हैं। जिस प्रतिमा को मां महामाया के नाम से लोग पूजते हैं, पहले इनका नाम समलाया था। महामाया मंदिर में ही दो मूर्तियां स्थापित थी। पहले महामाया को बड़ी समलाया कहा जाता था और समलाया मंदिर में विराजी मां समलाया को छोटी समलाया कहते थे। बाद में समलाया मंदिर में छोटी समलाया को स्थापित किया गया, तब महामाया कहा जाने लगा। सक्ती जिले के चंद्रपुर की छोटी सी पहाड़ी के ऊपर विराजित है मां चंद्रहासिनी। मान्यता है कि देवी सती का अधोदन्त (दाढ़) चंद्रपुर में गिरा था। यह मां दुर्गा के 52 शक्ति पीठों में से एक है। यहां बनी पौराणिक और धार्मिक कथाओं की झाकियां, करीब 100 फीट विशालकाय महादेव पार्वती की मूर्ति आदि आने वाले श्रद्धालुओं का मन मोह लेती है। अब जानिए अंचल की देवियों के बारे में… कोरबा के सर्वमंगला देवी मंदिर को कोरेश के जमींदार परिवार ने बनवाया था। त्रिलोकी नाथ मंदिर, काली मंदिर और ज्योति कलश भवन से घिरा हुआ है। वहां भी एक गुफा है, जो नदी के नीचे जाती है और दूसरी तरफ निकलती है। गंगरेल में 52 गांव डूबने के बाद मां अंगार मोती माता की स्थापना की गई थी। माता के चरण पादुका मंदिर में अभी भी विराजित है। ये 52 गांव गंगरेल बांध बनने से पहले टापू पर स्थित थे। बांध बनने के बाद, इन गांवों के लोगों ने मां अंगारमोती को बांध के किनारे लाकर स्थापित किया, और वे उन्हें अपनी अधिष्ठात्री देवी मानते हैं। गरियाबंद जिले में स्थित जतमई माता के मंदिर से सटी जलधाराएं उनके चरण स्पर्श करती हैं। स्थानीय मान्यता के अनुसार ये जलधाराएं माता की दासी होती हैं। मुख्य प्रवेश द्वार के शीर्ष पर, एक पौराणिक पात्रों का चित्रण भित्ति चित्र देख सकते हैं। मां जतमई की पत्थर की मूर्ति गर्भगृह में स्थापित है। महासमुंद जिले के बागबहारा घुंचापाली में मां चंडी का मंदिर स्थित है। किंवदन्ती है कि करीब 150 साल पहले ये तंत्र-मंत्र की साधना स्थल हुआ करता था। यहां महिलाओं का जाना प्रतिबंधित था। प्राकृतिक रूप से माता चंडी के स्वरूप में शिला (पत्थर) ने आकार लिया। वैदिक रीति रिवाज से पूजा-अर्चना शुरू हो गई। इसके बाद महिलाओं का चंडी माता की पूजा करने की प्रतिबंध समाप्त हुआ। यहां सुबह शाम, आरती के वक्त भालुओं की आमद भी होती है। इस बार श्रद्धालु मंदिर के वेबसाइट https://chandimata.in पर जाकर 9 दिन 24×7 लाइव दर्शन कर सकते हैं। दिव्यांग-बुजुर्गों के लिए निशुल्क वाहन व्यवस्था है। बरफानी धाम राजनांदगांव शहर में स्थित है। मंदिर के शीर्ष पर एक बड़ा शिवलिंग देखा जा सकता है। उसके सामने एक बड़ी नंदी प्रतिमा है। मंदिर तीन स्तरों में बनाया जाता है। नीचे की परत में पाताल भैरवी का मंदिर है, दूसरे में नवदुर्गा या त्रिपुर सुंदरी और ऊपरी स्तर में भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों की प्रतिमा है। गोंदिया-दुर्ग मेमू का फेरा रायपुर तक बढ़ाया गोंदिया-दुर्ग मेमू को 9 दिन के लिए रायपुर तक बढ़ाया गया है। यह ट्रेन गोंदिया से दुर्ग तक पहुंचने के बाद भिलाई नगर, भिलाई पावर हाउस, भिलाई, देव बलौदा चरौदा, डी-केबिन, कुम्हारी, सरोना होते हुए रायपुर पहुंचेगी। वापसी में भी यही मार्ग तय करते हुए गोंदिया लौटेगी। गोंदिया तक जाएगी रायपुर-डोंगरगढ़ मेमू इसी तरह रायपुर-डोंगरगढ़ मेमू को 9 दिन के लिए गोंदिया तक बढ़ाया गया है। यह ट्रेन डोंगरगढ़ से चलकर गुदमा, आमगांव, धानौली, सालेकसा, दरेकसा, बोरतलाव, पनिया-जोब होते हुए गोंदिया पहुंचेगी। वापसी में गोंदिया से डोंगरगढ़ होते हुए रायपुर तक जाएगी। दुर्ग और डोंगरगढ़ के बीच मेमू स्पेशल इसके अतिरिक्त दुर्ग और डोंगरगढ़ के मध्य 9 दिन के लिए एक मेमू स्पेशल ट्रेन भी चलाई जाएगी। यह ट्रेन दुर्ग से रसमरा, मुरहीपार, परमलकसा, राजनांदगांव, बकल, मुसरा, जटकन्हार होते हुए डोंगरगढ़ पहुंचेगी।
