शेरवानी-चश्मा पहनाकर दी 2 मासूमों को अंतिम विदाई:पिता बोले- 1 करोड़ देता हूं, बेटा लौटा दो, मां सदमे में, नवकार बिल्डर पर एक्शन नहीं

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तारीख 9 नवंबर 2025 जगह रायपुर का हीरापुर रविवार की रात इलाके में खुशियां थी। घर में जन्मदिन मनाने की तैयारियां चल रही थी। हंसी-ठहाकों के बीच बच्चों की खिलखिलाहट थी। लेकिन उससे पहले आलोक (8) और सत्यम (10) पानी भरे गड्ढे में समा गए। यह गड्ढा नवकार बिल्डर के कंस्ट्रक्शन साइट में खोदा गया था। दोनों बच्चे परिवार समेत बड़ी मौसी के घर बड़े भाई का बर्थडे मनाने आए थे। सत्यम के पिता बिहार लौट चुके हैं। बच्चों की मौसी खुद को उनकी मौत के लिए दोषी मान रही है। वहीं आलोक के पिता की गुढ़ियारी में ही किराने की दुकान है। बार-बार अपने मोबाइल की स्क्रीन पर बच्चे की तस्वीर देखकर रो रहे हैं। मां सदमे में खामोश है। मुआवजे के कागज पर सब निपट गया है, लेकिन इन घरों की जिंदगी अब भी वहीं अटकी है। उसी गड्ढे के किनारे, जहां दोनों मासूमों की सांसें थम गई थीं। इसी बीच बुधवार को शेरवानी और चश्मा पहनाकर मासूमों को अंतिम विदाई दी गई। दरअसल, बच्चों ने बर्थ डे पर वही चश्में लेने की जिद की थी। पिता का कहना है कि मैं 1 करोड़ देता हूं, बेटा लौटा सकते हो। वहीं, पुलिस-प्रशासन अब तक बच्चों की मौत का दोषी तय नहीं कर सका है। अभी तक गड्‌ढा भी नहीं पाटा गया है। कंस्ट्रक्शन साइट को सिर्फ ग्रीन नेट से चारों ओर से ढक दिया गया है। हादसे के बाद दैनिक भास्कर की टीम ग्राउंड जीरो पर पहुंची। परिजनों से बातचीत की। उन्होंने क्या कुछ कहा पढ़िए इस रिपोर्ट में… पहले देखिए ये तस्वीरें- बच्चों की पसंदीदा चीजों के साथ दी गई अंतिम विदाई बच्चों के शोर-गुल से जो घर गुलजार था अब वहां मातम छाया हुआ है। घर के बाहर सफेद कपड़ों में लिपटे 2 बच्चों की लाशें रखी हुई हैं। चारों तरफ चीख-पुकार और सिसकियों का शोर है। भीड़ के बीच से एक शख्स आगे बढ़ता है, धीरे से दोनों बच्चों की आंखों पर लाल रंग का चश्मा लगाता है। वही चश्मा, जो बच्चों को कुछ दिन पहले बहुत पसंद आया था। फिर कांपते हाथों से उनकी कलाइयों में घड़ी बांधता है। मानों बीता वक्त फिर लौट आएगा। घड़ी के टिक-टिक की आवाज से दिल की धड़कनें फिर शुरू हो जाएंगी। इसके बाद यही व्यक्ति थोड़ी देर तक एक थैला टटोलता है। उसमें से दो चमचमाती सफेद शेरवानी निकालता है। नई, बिल्कुल त्योहार वाली और उनके सामने रख देता है। उनके बगल में कुरकुरे, नमकीन के पैकेट और ठंडी कोल्ड ड्रिंक भी रखता है। सबकुछ वैसे ही जैसे बच्चों की छोटी खुशियां होती हैं। ऐसा लग रहा है, जैसे अगले ही पल दोनों उठेंगे। ये सब देखकर उछल पड़ेंगे, शोर मचाएंगे। लेकिन यहां केवल खामोशी है। एक ऐसी खामोशी जो कानों में गूंज रही है। वो शख्स आखिर में झुकता है, दोनों बच्चों के माथे को चूमता है। एक लंबी, टूटती हुई चीख के साथ वहीं गिर पड़ता है। आसपास खड़े लोग उसे संभालते हैं, मगर उसकी आंखों में अब कुछ बचा नहीं। इसके बाद दोनों बच्चों के शव पास खड़े लोग कांधे पर उठाते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। आलोक के पिता बार-बार बच्चे को याद कर रो पड़ते हैं 8 साल के आलोक को खोने के बाद उसका घर अब जैसे ठहर गया है। वहां न बच्चों की खिलखिलाहट है, न कोई आवाज। अब केवल सन्नाटा है। आलोक के पिता कैलाश शाह किसी तरह खुद को संभालने की कोशिश करते हैं, लेकिन बात करते-करते अचानक रुक जाते हैं। फिर बच्चा याद आता है और फफक पड़ते हैं। हमने जब उनसे बात की, तो वो कुछ पल चुप रहे। फिर टूटी आवाज में कैलाश शाह कहते हैं कि, आलोक पढ़ने में बहुत तेज था। गली-मोहल्ले के लोग मुझे उसके नाम से जानते थे। घर में दिन भर हुड़दंग मचाए रखता था। कहता था कि बाबू बड़ा होकर आपको विदेश ले जाऊंगा।’ मैं भी हंसकर कह देता था- हां बेटा, उसी दिन का इंतजार है। बस इतना कहते-कहते उनकी आंखें फिर भर आईं। वो आगे कुछ नहीं बोल पाए। मां खामोश है- जैसे भीतर से सबकुछ सूख गया हो उसी वक्त बगल में रंजू देवी, आलोक की मां, खड़ी थीं। वो घर की खिड़की पर खड़े होकर सब कुछ सुन रही थीं। हर शब्द, हर याद, हर टूटती सांस। लेकिन चेहरे पर कोई भाव नहीं था। आंखें सूखी थीं, जैसे रोते-रोते अब आंसू भी थक गए हों। चेहरा पीला पड़ गया था, होंठ सूख चुके थे। वो बस चुप थीं। इस बीच सड़क पर बच्चों की स्कूल वैन गुजरी, तो उनकी नजर वहीं ठहर गई। कुछ पल तक देखती रहीं। जैसे इंतजार कर रही हों कि उनका आलोक अब बस से उतरेगा, भागता हुआ आएगा और दरवाजा खोलकर कहेगा-मां, मैं आ गया, लेकिन खिड़की के बाहर हवा थी और भीतर एक ऐसी खामोशी। जो अब शायद कभी नहीं टूटेगी। बिल्डर को मैं मुंहमांगी कीमत देता हूं, बस मेरा बच्चा वापस ले आओ आलोक के पिता कैलाश शाह अब किसी से सवाल नहीं करते, बस एक ही बात बार-बार दोहराते हैं। उनकी आंखें सुर्ख हैं, आवाज कांपती है। कहते हैं कि, मेरे बच्चे की मौत का जिम्मेदार वही बिल्डर है। जिसने वहां वो गड्ढा खोदकर छोड़ दिया था। किसी ने चेतावनी बोर्ड तक नहीं लगाया। नगर निगम के अधिकारी जिन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की। कैलाश कहते हैं, उसने हमारे हाथ में 15 लाख का चेक थमाया और बोले कि हम मदद करेंगे। लेकिन बताओ, क्या उस पैसे से मेरा बच्चा लौट आएगा? कुछ पल के लिए रुकते हैं, फिर सिर झुकाकर धीरे से कहते है “मैं बिल्डर और प्रशासन दोनों को मुंहमांगी कीमत देने को तैयार हूं। जितनी चाहे उतनी, बस कोई मेरा आलोक वापस ला दे। ये पैसा मेरे किस काम का, जब मेरा बेटा ही नहीं रहा? उनकी बात खत्म होते ही घर में फिर वही सन्नाटा फैल जाता है…भारी, गहरा और टूटे हुए पिता के दिल की तरह। सत्यम का परिवार रायपुर छोड़ वापस बिहार चला गया सत्यम के पिता शेषनारायण शाह कई सालों से रायपुर में रह रहे थे। यही उनका घर बन गया था, यही रोजी-रोटी का सहारा भी। लेकिन बेटे की मौत ने सबकुछ बदल दिया। कुछ ही दिनों में उन्होंने काम, घर, रिश्ते सब पीछे छोड़ दिए और पूरे परिवार के साथ चुपचाप वापस बिहार लौट गए। जब हमने बात करने की कोशिश की, तो वे कुछ देर खामोश रहे। फिर धीमे स्वर में बोले- यहां अब बचा ही क्या है? जिसके लिए गांव-घर छोड़ा था, वो ही नहीं रहा। अब यहां रहकर क्या करेंगे? उनकी आंखें कहीं दूर देख रही थीं। जहां कभी सत्यम खेलता था, हंसता था, आवाजें लगाता था। वे बोले- यहां रहेंगे तो हर गली, हर चीज उसकी याद दिलाएगी। बस दर्द ही मिलेगा। इसलिए लौट गए हैं। शायद वहां, अपने गांव की मिट्टी में थोड़ा सुकून मिले। उनके जाने के बाद घर खाली नहीं हुआ, बल्कि भारी हो गया है। उस सन्नाटे से, जो किसी पिता के टूटे हुए दिल से निकलता है। मामा लक्ष्मी साव की आंखों में अब भी वही रात तैरती है… रविवार की उस रात हीरापुर में हर कोई परेशान था। कोई गली में खोज रहा था, कोई मैदान में। आलोक और सत्यम कहीं नहीं मिल रहे थे। दोनों के मामा लक्ष्मी कुमार साव भी पुलिस वालों के साथ टॉर्च लेकर इधर-उधर ढूंढ रहे थे। वक्त बढ़ता जा रहा था, बेचैनी बढ़ती जा रही थी। करीब आधी रात को, जब सब थक चुके थे, लक्ष्मी साव की नजर कंस्ट्रक्शन साइट की ओर पड़ी। वहां पानी से भरे गड्ढे के किनारे 2 छोटी चप्पलें पड़ी थी। पुलिस बोली- गोताखोर सुबह आएंगे, मैं तुरंत पानी में कूद पड़ा मामा कहते हैं कि, पुलिस कहने लगी गोताखोर सुबह आएंगे। वो बस वहीं रुक गए और अगले ही पल बिना कुछ सोचे पानी में कूद पड़े। आसपास के लोग चिल्लाते रहे रुको, बहुत गहरा है। लेकिन उन्होंने कहा कि, गांव में इससे गहरे तालाब में भी उतर चुका हूं। इन्हें मैं ही निकालूंगा। कुछ मिनट बाद उन्होंने पानी से पहले आलोक, फिर सत्यम को बाहर निकाला। सब दौड़े आए। किसी ने सीने पर दबाव दिया, किसी ने मुंह से पानी निकालने की कोशिश की। लेकिन सब बेकार गया। बच्चों के शरीर में अब कोई हरकत नहीं थी। लक्ष्मी साव बार-बार बस एक ही बात दोहराते रहे “काश पहले ही देख लिया होता…घर के इतने पास थे, फिर भी नहीं बचा पाया। उस रात का वो पल आज भी उनके दिल पर ठहरा हुआ है, जब 2 चप्पलें पानी के ऊपर तैर रहीं थीं और नीचे 2 जिंदगियां हमेशा के लिए डूब चुकी थीं। मौसी बोली- जीवन भर का दाग लग गया, अब इस घर में नहीं रहेंगे हीरापुर की वो शाम शायद हमेशा के लिए गीता देवी के दिल में जम गई है। 6 दिन पहले ही वे अपने परिवार के साथ किराए के एक छोटे से घर में शिफ्ट हुई थीं। रविवार को उनके बेटे का बर्थडे था। घर में खुशियों की हल्की-हल्की रौनक थी, बच्चे हंस रहे थे और रिश्तेदारों से घर भरा हुआ था। इसी जश्न में शामिल होने उनकी 2 बहनों के साथ दोनों बेटे सत्यम और आलोक भी आए थे। कौन जानता था कि यह मुलाकात आखिरी होगी। गीता देवी बताती हैं कि, यहां शिफ्ट हुए सप्ताह भर ही हुआ है। हमें तो मालूम ही नहीं था कि घर के पीछे इतना बड़ा गड्ढा खुदा है। वहां कोई चेतावनी बोर्ड नहीं था, ना ही कोई बाउंड्री। बच्चे खेलते-खेलते उसी कंस्ट्रक्शन साइट की तरफ चले गए। घर में सब लोग तैयारियों में लगे केक काटना था, फोटो खींचनी थी, गिफ्ट खोलने थे। किसी ने सोचा भी नहीं कि कुछ ही देर में ये जश्न मातम में बदल जाएगा। देर रात तक बच्चों का पता नहीं चला तो खोजबीन शुरू हुई जब शाम ढल गई और बच्चों की आवाजें सुनाई नहीं दीं, तब सब घबरा गए। खोजबीन शुरू हुई। कॉलोनी के हर कोने में देखा गया। आखिर रात करीब 12 बजे वो पल आया जिसने सबका दिल तोड़ दिया। दोनों बच्चों के शव पानी से बाहर निकाले गए। गीता देवी वहीं बैठी रह गईं, हाथ जोड़े, आंखें फटी हुईं जैसे यकीन ही न हो कि सब खत्म हो गया है। तभी किसी ने कहा कि, ये सब तेरे कारण हुआ। तुझे पता नहीं था कि पीछे गड्ढा है? दूसरे ने कहा कि, यहां आना ही नहीं चाहिए था, देख ले अब। वो बस सुनती रहीं। कोई जवाब नहीं दिया। बस रोती हुई बोलीं अब इस घर में नहीं रह पाएंगे। जीवन भर का दाग लग गया है मुझ पर। फिर उन्होंने चुपचाप दरवाजा बंद किया। दीवारों पर अब भी बच्चों की हंसी की गूंज बाकी थी, लेकिन घर में सिर्फ सन्नाटा था। सालभर पहले खोदा गया था गड्ढा, निगम से शिकायत भी हुई रायपुर के हीरापुर में हुए इस दर्दनाक हादसे के पीछे सिर्फ किस्मत नहीं, बल्कि लापरवाही की एक लंबी चेन है, जो बिल्डर से शुरू होकर नगर निगम और पुलिस तक जाती है। वार्ड पार्षद संदीप साहू बताते हैं कि वार्ड में बिल्डर राजेश जैन (नवकार बिल्डकॉन) ने करीब सालभर पहले निर्माण के लिए गहरा गड्ढा खोदा था। स्थानीय लोगों ने कई बार शिकायत की, लेकिन निगम ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। साहू का कहना है कि जोन कमिश्नर को 3 बार लिखित शिकायत दी गई। निरीक्षण भी हुआ, लेकिन न तो बाउंड्रीवॉल बनी, न चेतावनी बोर्ड लगाया गया। …………………………………… इससे संबंधित यह खबर भी पढ़िए… रायपुर में पानी भरे गड्ढे में डूबे 2 भाई…मौत:बिल्डर ने खुदवाया, भरा नहीं, परिजन-ग्रामीणों ने चक्काजाम किया, 3KM तक जाम में फंसे रहे लोग रायपुर के सरकारी स्कूल के पास 2 बच्चे खेलते-खेलते सड़क किनारे बने पानी से भरे गड्ढे में गिर गए। दोनों बच्चे मौसेरे भाई थे। गड्ढे की गहराई ज्यादा होने के कारण वे बाहर नहीं निकल पाए और डूबने से उनकी मौत हो गई। मृतकों में सत्यम (8 साल) और आलोक (7 साल) शामिल थे। ये दोनों बच्चे अपनी मौसी के बेटे के जन्मदिन के मौके पर यहां आए थे। पढ़ें पूरी खबर…

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