सऊदी अरब को F-35 जेट्स बेचेगा अमेरिका:एक विमान ₹900 करोड़ का, मिडिल ईस्ट में यह सिर्फ इजराइल के पास

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने सोमवार को कहा कि अमेरिका सऊदी अरब को F-35 फाइटर जेट्स बेचेगा। ये जेट्स दुनिया के सबसे एडवांस मिलिट्री जेट्स माने जाते हैं। एक F-35 जेट की कीमत करीब 100 मिलियन डॉलर (करीब 900 करोड़ रुपए) है। यह फैसला ऐसे समय लिया गया है जब सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) मंगलवार को व्हाइट हाउस की पहुंचने वाले हैं। ट्रम्प ने सऊदी अरब को ग्रेड पार्टनर बताया है। सऊदी अरब कई सालों से F-35 विमान खरीदना चाहता रहा है, लेकिन इजराइल को इस पर आपत्ति है, क्योंकि इससे उसकी मिलिट्री बढ़त कम हो सकती है। फिलहाल में मिडिल ईस्ट में सिर्फ इजराइल के पास ही F-35 हैं। अमेरिकी संसद चाहे तो इस सौदे को रोक सकती है, लेकिन आम तौर पर ऐसा नहीं होता।। F-35 5वीं जेनरेशन का फाइटर जेट F-35 अमेरिका का 5वीं जेनरेशन का लड़ाकू विमान है। इसे लॉकहीड मार्टिन कंपनी ने डेवलप किया है। इस प्लेन को 2006 से बनाना शुरू किया गया था। 2015 से यह अमेरिकी वायुसेना में शामिल है। ये पेंटागन के इतिहास का सबसे महंगा विमान है। F-35 के 3 वैरिएंट्स हैं, जिनकी कीमत 700 करोड़ रुपए से शुरू होकर 944 करोड़ रुपए के बीच है। इसके अलावा F-35 को ऑपरेट करने के लिए हर घंटे 31.20 लाख रुपए का अतिरिक्त खर्च आता है। प्रिंस सलमान 7 साल बाद अमेरिका जा रहे हैं प्रिंस सलमान आखिरी बार 2018 में अमेरिका गए थे। उनकी विजिट के कुछ महीनों बाद ही वॉशिंगटन पोस्ट के पत्रकार जमाल खशोगी की इस्तांबुल में सऊदी एंबेसी के अंदर हत्या हो गई थी। इसके बाद प्रिंस सलमान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी आलोचना का सामना करना पड़ा था। हालांकि बीते 7 सालों में अंतरराष्ट्रीय राजनीति काफी बदल चुकी है। अमेरिका और सहयोगी देशों के बीच कई मुद्दों पर विवाद सामने आया है। गाजा जंग में इजराइल को मदद देने की वजह से अमेरिका को कई देशों की नाराजगी झेलनी पड़ी है। दूसरी तरफ चीन और सऊदी अरब के रिश्ते मजबूत हुए हैं। पिछले महीने दोनों देशों ने जॉइंट नेवी एक्सरसाइज की थी और चीन ने 2023 में सऊदी-ईरान समझौते में मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी। व्यापार के मोर्चे पर भी चीन अब सऊदी का सबसे बड़ा साझेदार बन चुका है।
डिफेंस, AI और इन्वेस्टमेंट समझौते पर बात हो सकती है मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ट्रम्प और MBS की मुलाकात के दौरान रक्षा सहयोग, परमाणु तकनीक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और निवेश समझौतों पर बातचीत हो सकती है। सऊदी अरब अमेरिका के साथ एक मजबूत डिफेंस एग्रीमेंट चाहता है, जबकि ट्रम्प चाहते हैं कि सऊदी अरब उनके गाजा शांति प्रस्ताव का समर्थन करे और गाजा को फिर से बसाने में मदद भी करे। MBS अपने विजन 2030 योजना के तहत सऊदी इकोनॉमी की निर्भरता तेल से कम करके टेक्नोलॉजी और नई इंडस्ट्री की तरफ ले जाना चाहते हैं दूसरी बार राष्ट्रपति बनने पर ट्रम्प ने सबसे पहले MBS को फोन किया था ट्रम्प ने दूसरी बार राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद सबसे पहले सऊदी प्रिंस सलमान को ही फोन किया था। शपथ ग्रहण के कुछ दिन बाद ट्रम्प से उनके पहले विदेशी दौरे को लेकर मीडिया ने सवाल किया था। इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि जो देश अमेरिका में सबसे ज्यादा निवेश करेगा, वे वहां का पहला दौरा करेंगे। इसके बाद सऊदी सरकार ने एक बयान जारी कर कहा था कि उनका देश अगले चार सालों के भीतर अमेरिका में 600 अरब डॉलर (50 लाख करोड़ रुपए) के निवेश के लिए तैयार है। हालांकि ट्रम्प ने कहा था कि वो इसे बढ़ाकर 1 ट्रिलियन डॉलर होते देखना चाहते हैं, जिसमें ज्यादा से ज्यादा अमेरिकी मिलिट्री इक्विपमेंट की खरीद भी शामिल है। सऊदी अरब के सॉवरेन वेल्थ फंड और पब्लिक इन्वेस्टमेंट फंड (PIF) में 925 अरब डॉलर की भारी भरकम रकम है। सऊदी ने इसके जरिए पहले ही अमेरिका में कई इन्वेस्टमेंट कर रखे हैं। वहीं, UAE ने भी अगले 10 साल में अमेरिका के AI, सेमीकंडक्टर, एनर्जी और इन्फ्रा सेक्टर में 1.4 ट्रिलियन डॉलर निवेश करने की इच्छा जताई है।

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