हिंदू धर्म का मजाक उड़ाने पर तलाक:छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा- पति की धार्मिक मान्यताओं का अपमान मानसिक क्रूरता; पत्नी की अपील खारिज

0
100

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा- धार्मिक ग्रंथों में पत्नी के बिना पति का यज्ञ अधूरा रह जाता है। ऐसे में लंबे समय तक पति के धार्मिक मान्यताओं का अपमान करना मानसिक क्रूरता है। ऐसे में पति अपनी पत्नी से तलाक पाने के लिए हकदार है। इस टिप्पणी के साथ हाईकोर्ट ने हिंदू धर्म का मजाक उड़ाने वाली ईसाई पत्नी को दिए तलाक को सही ठहराया है। इसके साथ ही कोर्ट ने पत्नी की अपील खारिज कर दी है। मामले की सुनवाई बुधवार को जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस संजय जायसवाल की बेंच में हुई। ईसाई धर्म को मानने वाली पत्नी लगातार हिंदू धर्म का मजाक उड़ाती थी। इससे आहत होकर पति ने तलाक दे दिया था। पत्नी ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी। हिंदू रीति-रिवाज के साथ हुई थी शादी दरअसल, मध्यप्रदेश के डिंडौरी जिले के करंजिया निवासी नेहा की शादी 7 फरवरी 2016 को बिलासपुर निवासी विकास चंद्रा से हिंदू रीति-रिवाज के थी। नेहा शादी से पहले से ईसाई धर्म को मानती है। शादी के कुछ महीनों बाद ही वह हिंदू धार्मिक मान्यताओं और देवी-देवताओं का उपहास करने लगी। विकास उसे हिंदू धर्म मानने के लिए कहता रहा, पर वो नहीं मानी। विकास दिल्ली में नौकरी करता था। शादी के बाद वह विकास के साथ दिल्ली में कुछ समय बिताने के बाद बिलासपुर लौट आई। इसके बाद फिर से पत्नी ने क्रिश्चियन धर्म अपनाते हुए चर्च जाना शुरू कर दिया। फैमिली कोर्ट ने पति के पक्ष में दिया फैसला पत्नी के इस व्यवहार से परेशान होकर विकास ने परिवार न्यायालय में तलाक की अर्जी लगा दी। सुनवाई के दौरान परिवार न्यायालय ने विकास के पक्ष में फैसला सुनाते हुए तलाक मंजूर करते हुए डिक्री आदेश जारी कर दिया। फैमिली कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ नेहा ने हाईकोर्ट में अपील की। पति बोला- धार्मिक भावनाओं को किया आहत सुनवाई के दौरान विकास के एडवोकेट ने हाईकोर्ट को बताया कि उसकी पत्नी नेहा ने धार्मिक भावनाओं को आहत किया है। हिंदू धर्म में कोई भी पूजा-पाठ, हवन आदि पत्नी के बिना अधूरी मानी जाती है। लेकिन, उनकी पत्नी ने 10 साल तक उनके साथ पूजा तक नहीं की है। पत्नी ने माना 10 साल तक किसी अनुष्ठान में नहीं हुई शामिल सुनवाई के दौरान नेहा ने खुद स्वीकार किया है कि बीते 10 वर्षों में वह अपने पति के साथ किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में शामिल नहीं हुई है। न ही पूजा-अर्चना आराधना की है, बल्कि उसने चर्च जाना शुरू कर दिया है। विकास ने कोर्ट को बताया कि उनकी पत्नी ने बार-बार उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत किया। देवी-देवताओं का अपमान किया। डिवीजन बेंच ने फैमिली कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि इसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। नेहा की अपील को खारिज कर दी। हाईकोर्ट ने कहा- धार्मिक अपमान पति के साथ मानसिक क्रूरता जस्टिस रजनी दुबे व जस्टिस संजय जायसवाल की डिवीजन बेंच ने कहा कि अपीलकर्ता पत्नी ने खुद स्वीकार किया है कि पिछले 10 वर्षों से उसने किसी भी तरह की पूजा नहीं की है और इसके बजाए वह अपनी प्रार्थना के लिए चर्च जाती है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह दो अलग-अलग धर्मों के व्यक्तियों के बीच विवाह का मामला नहीं है, जहां धार्मिक प्रथाओं की पारस्परिक समझ की अपेक्षा की जाती है। यहां पति ने बताया कि पत्नी ने बार-बार उसकी धार्मिक मान्यताओं को अपमानित किया। उसके देवताओं का अपमान किया और उसे अपमानित किया। कोर्ट के विचार में पत्नी से ऐसा व्यवहार जिसे ‘सहधर्मिणी’ होने की उम्मीद है- एक धर्मनिष्ठ हिंदू पति के प्रति मानसिक क्रूरता के बराबर है। महाभारत-रामायण में ही नहीं बल्कि मनु स्मृति में भी कहा गया है कि पत्नी के बिना कोई भी यज्ञ अधूरा है। धार्मिक कर्म में पत्नी-पति के साथ बराबर की भागीदार होती है। पति अपने परिवार का इकलौता बेटा है, उसे परिवार के सदस्यों के लिए गई धार्मिक अनुष्ठान करना होता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here