क्रिकेट की पिच पर जुनून, राजनीति की गलियों में संघर्ष और टीवी की दुनिया में ठहाकों की गूंज। नवजोत सिंह सिद्धू की जिंदगी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं। एक बल्लेबाज, नेता, टीवी स्टार और प्यार में डूबा जीवनसाथी। सिद्धू ने हर मोड़ पर अपनी अलग पहचान बनाई, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब उनके अंदर संवाद की कमजोरी थी और वे बातचीत में थोड़ा शर्मीले थे। यहां तक कि स्कूल में ‘छुट्टी’ शब्द तक नहीं बोल पाते थे। क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद सिद्धू ने कमेंट्री की ओर रुख किया। उनकी कमेंट्री स्टाइल बेहद जोशीली, धाराप्रवाह और मनोरंजक है, जिसके कारण वे कमेंट्री बॉक्स में ‘सिक्सर सिद्धू’ और ‘कमेंट्री बॉक्स के सरदार’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनकी हाजिरजवाबी, प्रेरक बातें और वन-लाइनर लोगों के दिलों तक पहुंचने लगे, जिससे उनका व्यक्तित्व और प्रभाव बढ़ा। नवजोत सिंह सिद्धू की यह कहानी बताती है कि कैसे एक शर्मीला व्यक्ति विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा और मेहनत से चमकता हुआ मशहूर टीवी कमेंटेटर, रियलिटी शो का जज और मोटिवेशनल स्पीकर बन सकता है। उन्होंने अपने जीवन में आए उतार-चढ़ाव को अपने अनुभव के रूप में लिया और अपने व्यक्तित्व को नया रूप दिया। आज की सक्सेस स्टोरी में जानेंगे कि कैसे क्रिकेट के मैदान से लेकर राजनीति और टीवी की दुनिया तक का सफर तय करते हुए नवजोत सिंह सिद्धू अपने व्यक्तित्व और सोच में जबरदस्त निखार लाए, जो उन्हें दूसरों से अलग बनाता है। बचपन से क्रिकेट के प्रति जुनून 20 अक्टूबर 1963 को पटियाला, पंजाब में जन्मे नवजोत सिंह सिद्धू का बचपन क्रिकेट के जुनून में बीता। उनके पिता भगवंत सिंह खुद एक मशहूर क्रिकेटर थे, जिनसे सिद्धू ने क्रिकेट का पहला पाठ सीखा। सिद्धू ने अपनी शुरुआती पढ़ाई पटियाला के यदविंद्र पब्लिक स्कूल से की। पढ़ाई के साथ-साथ उनका मन हमेशा क्रिकेट के मैदान में रमता रहा। कॉलेज पहुंचने तक सिद्धू की पहचान एक होनहार बल्लेबाज के रूप में हो चुकी थी। आगे चलकर उन्होंने भारतीय टीम में जगह बनाकर देश का नाम रोशन किया। कॉलेज की मोहब्बत- नवजोत कौर सिद्धू की लव स्टोरी भी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं। कॉलेज के दिनों में वह नवजोत कौर से पहली नजर में ही प्यार करने लगे थे। वे घंटों कॉलेज के बाहर धूप में सिर्फ उन्हें देखने खड़े रहते थे। नवजोत कौर उस समय एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही थीं। दोनों के बीच धीरे-धीरे दोस्ती हुई और वक्त के साथ रिश्ता गहराता चला गया। लंबे इंतजार और समर्पण के बाद सिद्धू ने उन्हें प्रपोज किया। शादी से पहले सिद्धू ने नवजोत कौर की जन्मपत्री मिलवाई और जब 36 में से पूरे 36 गुण मिले तो साल 1991 में दोनों ने शादी कर ली। कैंसर के खिलाफ जंग में साथ शादी के बाद सिद्धू और नवजोत कौर दो बच्चों, बेटे करण और बेटी राबिया के माता-पिता बने। नवजोत कौर राजनीति और समाजसेवा में भी सक्रिय रहीं, अमृतसर से विधायक बनकर उन्होंने जनता की सेवा की, लेकिन जीवन में एक वक्त ऐसा आया जब नवजोत को कैंसर ने घेर लिया। उस कठिन समय में सिद्धू ने हर पल उनका साथ निभाया। साल 2023-24 में नवजोत कौर ने कैंसर को मात दी। इस दौरान सिद्धू ने सोशल मीडिया पर अपनी पत्नी के लिए भावुक संदेश लिखे- “तुम्हारे बिना जीना नहीं आता नोनी।” यह संदेश उनके अटूट प्रेम और साथ निभाने के वादे की मिसाल बन गया। क्रिकेट में संघर्ष और सक्सेस 1983 में वेस्टइंडीज के खिलाफ भारतीय टेस्ट टीम से शुरुआत करने वाले सिद्धू का करियर कई उतार-चढ़ाव से गुजरा। शुरू में उन्हें तकनीकी कमजोरियों के लिए आलोचना मिली, लेकिन 1987 के विश्व कप में पाकिस्तान के खिलाफ उन्होंने लगातार छक्के मारकर ‘सिक्सर सिद्धू’ का दर्जा पा लिया। इनके नाम 51 टेस्ट और 136 वनडे हैं, जिसमें कई यादगार पारी शामिल हैं। 1999 में अचानक क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद उन्होंने कई बार टीम के चयनकर्ताओं और मैनेजमेंट से मतभेद का खुलासा किया। यही चुनौती उन्हें राजनीति और टीवी के सफर पर ले आई। राजनीति का सफर 2004 में बीजेपी के टिकट से अमृतसर से सांसद बने। संसद में शेरो-शायरी और आक्रामक भाषण से उनको अलग पहचान मिली। 2016 में बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए, 2017 में पंजाब सरकार में मंत्री बने। पार्टी के भीतर मतभेदों ने भी कई बार सुर्खियां बटोरीं। टीवी इंडस्ट्री में शुरुआत क्रिकेट से संन्यास के बाद टीवी पर कमेंटेटर के तौर पर नई पारी शुरू हुई। उनके वन-लाइनर्स, जोश और हिंदी शायरी दर्शकों को भा गई। ‘द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज’ और ‘कॉमेडी नाइट्स विद कपिल’ में उनकी मौजूदगी ने शो को एक अलग ऊंचाई दी। कपिल शर्मा शो में उनकी ठहाकों की सीट लोगों में लोकप्रिय थी। कपिल शर्मा शो से निकाले गए 2019 में पुलवामा हमले के बाद सिद्धू के बयान को लेकर विवाद हुआ। जनता के दबाव में उन्हें शो से निकालना पड़ा। उनकी कुर्सी पर अर्चना पूरन सिंह आईं, जिन्होंने सिद्धू की जगह ली और आज तक शो की जान बनी हुई हैं। सिद्धू के लिए यह बड़ा झटका था। इंडियाज गॉट टैलेंट से वापसी टेलीविजन की दुनिया में वापसी सिद्धू ने जज के रूप में ‘इंडियाज गॉट टैलेंट’ से की। शो के दौरान उन्होंने संघर्ष को याद करते हुए कहा—“गिरना जरूरी है, तभी उठना आता है।” यह शो सिद्धू की हंसी, शेरो-शायरी और आत्मविश्वास से भरी वापसी है। दैनिक भास्कर से खास बातचीत में सिद्धू ने कमेंट्री, जिंदगी और योग के अपने अनोखे सफर पर खुलकर बात की। उनकी आवाज में वही जोश था, वही शब्दों की मिठास, जो कभी क्रिकेट मैदान की कमेंट्री में सुनाई देती थी। कमेंट्री का सबसे बड़ा सुरूर सिद्धू कहते हैं- अगर मुझे एक घंटा बोलना हो तो मैं एक मिनट भी तैयारी नहीं करता, लेकिन आधे घंटे के लिए दस मिनट और तीन मिनट के लिए पूरा एक घंटा तैयारी करता हूं। सही शब्द चुनना और कम शब्दों में बात को साफ कहना ही कमेंट्री की ताकत है। कई बार एक लाइन पूरी कहानी बयान कर देती है। भीतर की ताकत पहचानना जरूरी यह हुनर किताबों से नहीं आता, यह तब आता है जब आप खुद को समझते हैं। जैसे सागर मंथन से अमृत निकलता है, वैसे ही ध्यान और अभ्यास से भीतर की शक्ति जागती है। जो कुछ ब्रह्मांड में है, वह हमारे भीतर भी है। लोग बाहर भटकते हैं, जबकि असली जवाब भीतर छुपा है- जैसे कस्तूरी मृग अपनी नाभि की खुशबू के लिए जंगलों में फिरता है। क्रिकेटर से योगी 36 साल क्रिकेट खेलने के बाद मैंने अपने खान-पान को अनुशासित किया, मन को गुलाम बनाने वाली आदतों को चैनलाइज किया और योगी बन गया। इंद्रियां बहुत प्रबल हैं, लोग दिखावे में खोए रहते हैं, लेकिन मैं भीतर उतरा हूं। असली ताकत हर इंसान के अंदर है, बस ढूंढनी पड़ती है। मन का बदलाव पहले मन उलझन और नकारात्मक सोच में फंसा था। स्वामी विवेकानंद को पढ़कर समझ आया कि असली सुख भीतर है। वही लड़का जो स्कूल के सामने ‘छुट्टी’ शब्द तक नहीं बोल पाता था, आज लाखों लोगों के सामने बोलता है। जीवन में शांति मन शांत हो तो जिंदगी सुंदर दिखती है। झील का पानी स्थिर हो तो चांद की परछाई साफ दिखती है, वही हाल मन का है। जिंदगी जल्दबाजी से नहीं मिलती, शांति में जीनी पड़ती है। असली नवजोत को कम लोग जानते हैं लोग बाहर से मुझे वन-लाइनर, शायरी और एंटरटेनमेंट के लिए पहचानते हैं, लेकिन भीतर की शांति और गहराई को कम लोग देखते हैं। योगी अंदर से जागरूक और संतुलित होता है। तीन महीने नाड़ी शोधन करें तो शरीर हल्का हो जाएगा, चेहरा दमकने लगेगा और मन शांत रहेगा। मां पार्वती का साथ मेरी सबसे बड़ी ताकत है मां पार्वती का प्यार। संगत का असर सबसे गहरा होता है। जैसे लकड़ी में लोहे का कील डाल दो तो वो लंबे समय तक तैरेगी, वैसे ही सही संगत जीवन को ऊंचा उठाती है। शांति और समझ की मिसाल बाबा नानक की क्षमा, महावीर का धैर्य, करोड़ों में एक को मिलती है। जब यह अवस्था आए तो किसी चीज की कमी या डर नहीं रहता। असफलता का डर दुनिया में सबसे बड़ा डर असफलता का है। डर दूर करना है तो पल में जीना सीखो। कल का पछतावा और कल की चिंता आज का मौका छीन लेते हैं। राहुल द्रविड़ ने कहा था- “एक गेंद पर ध्यान दो, पूरी पारी नहीं।” रोड रेज केस में एक साल की सजा, 10 महीने बाद रिहाई मिली थी नवजोत सिंह सिद्धू को 1988 के एक विवादित रोड रेज केस में सुप्रीम कोर्ट ने एक साल की सजा सुनाई थी। इस गंभीर मामले में 27 दिसंबर 1988 को पटियाला में उनकी कार पार्किंग को लेकर 65 वर्षीय गुरनाम सिंह से कहासुनी हुई थी, जो बाद में हाथापाई में बदल गई। सिद्धू ने गुरनाम सिंह को घुटना मारकर गिरा दिया था। गुरनाम सिंह को अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई। रिपोर्ट में बताया गया कि उनकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी। इस घटना को लेकर सिद्धू और उनके दोस्त रूपिंदर सिंह संधू के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज हुआ था। मामला कोर्ट के कई स्तरों से गुजरा। शुरू में सेशन कोर्ट ने सिद्धू को बरी कर दिया था, लेकिन बाद में हाईकोर्ट ने उन्हें छह साल की सजा (दोनों को तीन-तीन साल की) सुनाई और जुर्माना लगाया। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार इस केस की सुनवाई की और 2018 में गैर इरादतन हत्या के आरोपों से सिद्धू को बरी कर दिया, लेकिन चोट पहुंचाने के मामले में दोषी ठहराया गया और ₹1000 का जुर्माना लगाया। इस फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अंततः 2022 में सिद्धू को एक साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई। सजा सुनाए जाने के बाद सिद्धू ने अदालत में आत्मसमर्पण किया और पटियाला केंद्रीय जेल में बंद रहे। हालांकि उनके अच्छे व्यवहार के चलते उन्हें निर्धारित एक साल की सजा से पहले, करीब 10 महीने बाद जेल से रिहा कर दिया गया। जेल से बाहर निकलते ही उन्होंने सरकार पर लोकतंत्र की स्थितियों को लेकर तीखा हमला बोला। ——————————– पिछले हफ्ते की सक्सेस स्टोरी पढ़िए… ‘बैंडिट क्वीन’ के बाद भी बेरोजगार रहे मनोज बाजपेयी:इश्क में दो बार नाकाम हुए, सुसाइड का सोचा, ‘सत्या’ के बाद सड़क पर चलना हुआ मुश्किल कभी ‘सत्या’ का ‘भीखू म्हात्रे’, कभी ‘शूल’ का ‘समर प्रताप सिंह’, कभी राजनीति का ‘वीरेंद्र प्रताप’, कभी ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ का ‘सरदार खान’, कभी ’फैमिली मैन’ का ‘श्रीकांत तिवारी’ तो कभी ‘पिंजर’ का ‘राशिद’, जितने किरदार, उतनी पहचान। मनोज बाजपेयी ने अपनी एक्टिंग से इन सारे किरदारों में जान फूंक दी। पूरी खबर पढ़ें..