तारीख 16 नवंबर 2004… यही वह तारीख और साल है, जब एक मंत्री और 7 IAS समेत कुल 14 लोगों ने सरकारी विभाग जैसा एक NGO बनाया। NGO का नाम रखा गया स्टेट रिसोर्स सेंटर (SRC) और फिजिकल रेफरल रिहैबिलिटेशन सेंटर (PRRC)। न मान्यता, न दफ्तर, न कर्मचारी—सब कुछ सिर्फ कागजों पर तैयार किया गया। NGO सिंडिकेट ने करप्शन में 6 प्रशासनिक अधिकारियों को भी जोड़ा, जिनके हस्ताक्षर और देखरेख में पूरा खेल खेला गया। NGO का उद्देश्य दिव्यांगों का उद्धार करना था, लेकिन सिंडिकेट ने NGO का स्ट्रक्चर हूबहू सरकारी विभाग जैसा बनाया। 15 साल में सैकड़ों करोड़ का घोटाला कर डाला। NGO सिंडिकेट ने रायपुर और बिलासपुर में कागजों पर कर्मचारियों की नियुक्ति की। पे-स्केल बिल्कुल सरकारी पैटर्न पर रखा। सैलरी 27 से 30 हजार तय की गई। हर महीने इनके नाम से डबल-ट्रिपल वेतन निकाला गया। इन्हीं कर्मचारियों में से एक थे रायपुर के कुंदन ठाकुर, जिन्होंने इस करप्शन का भंडाफोड़ किया। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने समाज कल्याण विभाग से जुड़े इस सबसे बड़े NGO स्कैम पर CBI जांच के आदेश दिए हैं। हाईकोर्ट को 31 बिंदुओं में गड़बड़ियां मिली हैं, जिन्हें गंभीर माना गया। CBI को 5 फरवरी 2020 में दर्ज FIR के आधार पर जांच जारी रखने और 15 दिन के भीतर सभी दस्तावेज जब्त करने के निर्देश दिए हैं। भास्कर डिजिटल की टीम ने इस NGO स्कैम को उजागर करने वाले कर्मचारी कुंदन ठाकुर और केस लड़ रहे एडवोकेट देवऋषि ठाकुर से बातचीत की। तत्कालीन मंत्री और IAS अधिकारियों के करप्शन की परतें जानी गईं। NGO घोटाले के पहले पार्ट में पढ़िए—कैसे हुई शुरुआत, कैसे करप्शन हुआ और कैसे NGO पर बैन लगा ? सबसे पहले जानिए इस NGO को क्यों बनाया गया और कौन थे फाउंडर ? दरअसल, 2024 में समाज कल्याण मंत्री रहीं रेणुका सिंह, रिटायर्ड IAS विवेक ढांढ, MK राउत, डॉ. आलोक शुक्ला, सुनील कुजूर, BL अग्रवाल, सतीश पांडे और पीपी श्रोती ने मिलकर 2 NGO बनाए। NGO में राज्य प्रशासनिक सेवा के 6 अधिकारियों को भी शामिल किया। NGO को दिव्यांगों की भलाई के लिए बनाया था, जिसके तहत सुनने की मशीनें, व्हील चेयर, ट्राई साइकिल, कैलिपर और कृत्रिम अंग जैसी चीजें वितरण करना, अवेयर करना, उनकी देख-रेख करना था, लेकिन NGO को सिर्फ कागजों पर कर दिया। जमीन पर NGO गायब था। मंत्री और IAS ने ऐसा सिस्टम बनाया था कि NGO को समाज कल्याण विभाग से मान्यता भी नहीं मिली, लेकिन केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं के तहत NGO के खाते में करोड़ों रुपए ट्रांसफर हुए। ये सिलसिला करीब 14 साल तक चला। नियम कहता कोई भी सरकारी कर्मचारी NGO में मेंबर नहीं हो सकता है, वह अवैध है, लेकिन मंत्री के साथ अधिकारियों ने मिलकर ये संस्था बना ली। NGO बनने के 45 दिन में चुनाव होना चाहिए था, लेकिन 17 साल तक कोई चुनाव नहीं हुआ। प्रबंधकारिणी की कोई बैठक नहीं हुई। इसका कोई ऑडिट नहीं किया गया। अब पढ़िए कैसे खुला NGO घोटाले का राज ? कहानी 2016 की है। संविदा कर्मचारी कुंदन ठाकुर 2008 से मठपुरैना स्वावलंबन केंद्र (PRRC) में संविदा पर नौकरी कर रहे थे। इसी दौरान पता चला कि साथ में काम करने वाले कुछ कर्मचारी रेगुलर हो रहे हैं, तो वह भी अपनी नौकरी रेगुलर कराने के लिए समाज कल्याण विभाग में आवेदन देने पहुंचे। इस दौरान कुंदन को पता चला कि वह पहले से सहायक ग्रेड-2 के पद पर पदस्थ हैं। उनके नाम पर दूसरी जगह से 2012 से वेतन निकल रहा है। ये सुनकर कुंदन सकते में आ गए। इसके बाद कुंदन ने RTI लगाई और पूरी जानकारी जुटाई। RTI से पता चला कि उनके ही जैसे रायपुर में 14 और बिलासपुर में 16 कर्मचारी हैं, जिन्हें 2 जगहों पर पदस्थ दिखाया गया। हर महीने उनके नाम पर सैलरी निकाली जा रही है। कुंदन ने NGO स्कैम के शिकार दूसरे कर्मचारियों से संपर्क किया, लेकिन किसी ने साथ नहीं दिया। मामला कोर्ट पहुंचने पर कुंदन को नौकरी से निकाल दिया गया। भास्कर की टीम पहुंची कुंदन के घर, जहां दस्तावेजों के ढेर NGO स्कैम की पड़ताल के लिए भास्कर डिजिटल की टीम उस शख्स के पास पहुंची, जिसने सबसे पहले इस घोटाले का सच उजागर किया। नाम है कुंदन ठाकुर। रायपुर के बढ़ई पारा की एक गली में घर है। बाहर से घर को देखने पर साधारण लगता है, लेकिन अंदर घुसते ही किसी सरकारी दफ्तर से कम नहीं है। कुंदन के घर में चारों तरफ फाइलों के ढेर, अलमारी में RTI की कॉपियां, कोर्ट के आदेश और रजिस्टर भरे पड़े हैं। कमरे की हर दीवार पर फाइलों का ढेर, अलमारियों में बंद दस्तावेज, टेबल पर फैले हुए कागज और गवाहियों की कॉपियां पड़ी हैं। कुंदन हमें उसी कमरे में ले जाते हैं, जहां जमीन से छत तक सिर्फ पेपर बंडल रखे हैं। कुंदन इस पूरे घोटाले के पीड़ित भी हैं। हाईकोर्ट ने मामले को गंभीर मानते हुए याचिका को जनहित याचिका (PIL) में तब्दील किया और CBI को दोबारा जांच का आदेश दिया। NGO स्कैम सामने आते ही अधिकारियों ने नौकरी से निकाला दैनिक भास्कर से बातचीत में कुंदन बताते हैं कि NGO स्कैम उजागर होने के बाद मुझे नौकरी से निकाल दिया गया। इसके बाद मैंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने इसे जनहित याचिका में बदलकर 30 जनवरी 2020 को CBI जांच के आदेश दे दिए। कुंदन बताते हैं कि 2020 में कांग्रेस सरकार ने छत्तीसगढ़ में CBI जांच पर बैन लगा दिया था, जिसकी वजह से जांच नहीं हो पाई। हालांकि इसके पहले मंत्री अनिला भेंडिया NGO पर 2019 में बैन लगा चुकी थीं। हाईकोर्ट को 31 बिंदुओं में NGO स्कैम में गड़बड़ियां मिली हैं, इसलिए पुरानी FIR के मुताबिक दोबारा CBI जांच के आदेश दिए हैं। कुंदन का कहना है कि NGO ने 2012-2018 तक 4 हजार दिव्यांगों को कृत्रिम अंग लगाए जाने का दावा किया है, लेकिन वह भी झूठा है। कृत्रिम अंगों के नाम पर करोड़ों का स्कैम किया गया है। कृत्रिम अंग लगाने के लिए वहां ऐसा कोई सेटअप ही नहीं था, तो NGO कैसे कृत्रिम अंग लगाए। अब जानिए योजना, नियुक्ति, सैलरी पर कैसे हुआ स्कैम ? कुंदन जब फाइलों के पन्ने पलटते हैं तो सबसे बड़ा राज सामने आता है। नामों की लिस्ट लंबी है, लेकिन कई नाम ऐसे हैं जो असल में कहीं काम ही नहीं कर रहे थे। दस्तावेज बताते हैं कि एक ही आदमी को 2 से 3 जगह पदस्थ दिखाया गया। यानी कुर्सी एक थी, लेकिन सैलरी 2 जगह से निकाली जा रही थी। दस्तावेजों के मुताबिक NGO ने कागजों पर नई-नई नियुक्तियां की, लेकिन जमीन पर इन कर्मचारियों का कोई अस्तित्व ही नहीं था। नकली नियुक्तियां हुईं और फिर उनकी आड़ में फर्जी सैलरी निकाली गई। करीब 30 कर्मचारियों का सालाना वेतन 34 लाख रुपए दिखाया गया। RTI से मिली जानकारी के मुताबिक केवल 5 साल में ये रकम बढ़कर 1 करोड़ 70 लाख रुपए से ज्यादा हो गई। 2004 से 2018 तक इस NGO के खाते में समाज कल्याण विभाग और उसकी शाखाओं से सीधा पैसा भेजा जाता रहा। योजनाओं का पैसा भी सीधे NGO के खाते में ट्रांसफर होता रहा। चुपचाप फाइलों पर दस्तखत हुए NGO स्कैम को आप इस तरह समझ सकते हैं कि एस कुमार नाम के एक कर्मचारी का वेतन PRRC के साथ ही SRC और माना स्थित गेट लैब से भी निकाला गया। कर्मचारी अनिरुद्ध PRRC में पदस्थ थे, वहां से तो 27,945 रुपए प्रतिमाह वेतन निकला। इसके अलावा गेट लैब माना से भी वेतन निकला। इसी तरह कुंदन ठाकुर का वेतन स्वावलंबन केंद्र और PRRC दोनों जगह से निकलता रहा। रायपुर में 14 और बिलासपुर में 16 कर्मचारी ऐसे मिले, जिनके नाम से 2 जगह वेतन निकाला गया। चुपचाप फाइलों पर दस्तखत हुए और पैसे NGO के खाते में आते रहे। 2015 में 11 कर्मचारियों के नाम पर 31 लाख निकाले कुंदन ठाकुर बताते हैं कि RTI से मिली जानकारी के मुताबिक राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी राजेश तिवारी और अशोक तिवारी ने स्वावलंबन केन्द्र, गेट लेव में कर्मचारियों के नाम पर 31 लाख रुपए निकाल लिए। इन कर्मचारियों को पता ही नहीं था कि उनके नाम से डबल-डबल सैलरी निकाली जा रही है। दस्तावेज के मुताबिक संजीव रेड्डी, अनिरुद्ध, रंजनी भूषण, फिजा खान, ईशा ठाकुर, सुंदन सिंह, स्तुति सिंह, दुष्यंत सिंह, सुरेन्द्र कुमार, देवनाथ धीवर और नरेन्द्र को 3-2 जगहों पर पोस्टेड दिखाया। इन्हीं लोगों के नाम पर NGO ने फर्जी तरीके से पैसे निकाले। दस्तावेजों में दिखाया कि कर्मचारियों को पेमेंट किया गया है। केन्द्र का पैसा भी घूम-फिरकर इसी NGO के खाते में पहुंचा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के अंतर्गत प्रशासकीय व्यय मद यानी किसी सरकारी दफ्तर को चलाने में लगने वाला खर्चा भी NGO के खाते में ट्रांसफर किया गया। पहले ये पैसा सभी जिलों को भेजा गया। इसके बाद सभी जिलों से पैसे को NGO के खाते में ट्रांसफर करा लिया जाता था। विभाग के कई अधिकारियों की भी रही भूमिका घोटाले की पड़ताल में सिर्फ बड़े IAS अफसर ही नहीं, बल्कि राज्य प्रशासनिक सेवा के कई अधिकारी भी सामने आए हैं। दस्तावेज बताते हैं कि इस पूरे नेटवर्क में राजेश तिवारी, सतीश पांडेय, अशोक तिवारी, हरमन खलखो, एमएल पांडेय और पंकज वर्मा की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। इन अधिकारियों ने अलग-अलग स्तर पर दस्तावेजों को वैध ठहराने, वेतन आहरण की प्रक्रिया और फंड ट्रांसफर में सहयोग किया। इनके हस्ताक्षर और आदेश कई जगह रिकॉर्ड में दर्ज हैं, जिससे साफ होता है कि योजना से लेकर क्रियान्वयन तक घोटाले की परतों में इनकी सक्रिय भागीदारी रही है। CBI जांच के आदेश के बाद कुंदन को वापस नौकरी पर बुलाया गया कुंदन सिंह ठाकुर बताते हैं कि उनकी पहली नियुक्ति 22 अगस्त 2009 को समाज कल्याण विभाग के मठपुरैना स्वावलंबन केंद्र में संविदा पर हुई थी। यहां उन्होंने लगातार काम किया, लेकिन मार्च 2016 में अचानक सेवा से हटा दिया गया। करीब डेढ़ साल बाद, 26 अगस्त 2017 को उन्हें दोबारा ज्वॉइनिंग दी गई। कुंदन कहते हैं कि इसी दौरान जब उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका लगाई और घोटाले की परतें खोलनी शुरू कीं, तो विभाग ने 26 सितंबर 2018 से उन्हें फिर से नौकरी से हटा दिया। यह सिलसिला पूरे सात साल तक चला और वे लगातार कोर्ट में अपनी लड़ाई लड़ते रहे। अब ताजा घटनाक्रम में 25 सितंबर 2025 को जैसे ही बिलासपुर हाईकोर्ट ने CBI जांच का आदेश दिया, विभाग ने उसी दिन उन्हें फिर से नौकरी पर बहाल कर दिया। कुंदन इसे अपनी लंबी लड़ाई की पहली बड़ी जीत मानते हैं। सिर्फ 2 जिलों में इतना बड़ा स्कैम, पूरे छत्तीसगढ़ में कैसी स्थिति होगी ? हाईकोर्ट में कुंदन की ओर से पैरवी करने वाले वकील देवऋषि ठाकुर ने बताया कि ये पूरा ढांचा किसी सरकारी विभाग से कम नहीं दिखता था। बाहर से देखने वालों को साफ लगता था कि ये शासन का ही कोई हिस्सा है, जबकि हकीकत बिल्कुल अलग थी। यह एक नॉन गवर्नमेंट ऑर्गेनाइजेशन था। हमने हाईकोर्ट के सामने केवल 2 जिलों के दस्तावेज और ऑडिट रिपोर्ट रखी थी, लेकिन सिर्फ उसी के आधार पर कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सीधे CBI जांच के आदेश दे दिए। अब सोचिए, जब बाकी जिलों की परतें खुलेंगी तो मामला कितना बड़ा निकलकर सामने आएगा। हाईकोर्ट के आदेश पर जांच में क्या-क्या मिला ? हाईकोर्ट के निर्देश के बाद तत्कालीन मुख्य सचिव अजय सिंह ने डॉ. कमलप्रीत सिंह को जांच सौंपी। यह जांच रिपोर्ट अब कोर्ट में शासन की ओर से पेश की गई है। भास्कर के पास इसकी कॉपी मौजूद है। जांच में क्या मिला- SRC के रजिस्ट्रेशन के बाद से एक भी ऑडिट नहीं हुआ। फर्जी नियुक्तियां की गईं और कर्मचारियों को नकद में वेतन दिया गया। सरकार का कोर्ट में जवाब- सेंटर माना भौतिक रूप से संचालित है। यहां 2012-2018 के बीच 4000 मरीजों को कृत्रिम अंग लगाए गए। 2014-15 में ऑडिट कराया गया था। भुगतानों में अस्पष्टता को स्वीकारा गया। जांच में क्या मिला- याचिकाकर्ता कुंदन ठाकुर समेत अन्य कर्मचारियों का वेतन दूसरी शाखाओं से भी निकाला गया। खुद कर्मचारियों को इसकी जानकारी नहीं थी। सरकार का कोर्ट में जवाब- सेंटर कुंदन ठाकुर की नियुक्ति का मूल विभाग स्वावलंबन केंद्र, मठपुरैना है। मार्च 2015 के सरकारी दस्तावेजों में दर्ज है कि उन्हें दो जगहों से मानदेय मिल रहा था। शेष भुगतान चेक के जरिए किया गया। जांच में क्या मिला- NGO SRC में फर्जी नियुक्तियां की गईं। सरकार का कोर्ट में जवाब- कार्यालय अवधि में 21 कर्मचारी नियमित सेवाएं दे रहे थे। 2017 से 11 कर्मचारियों को आउटसोर्सिंग के जरिए निराश्रित निधि से भुगतान हुआ। बाकी 11 कर्मचारियों का भुगतान शासन से PRRC के जरिए किया जाता रहा। अब हाईकोर्ट के आदेश के बाद CBI ने पुराने FIR पर दोबारा जांच शुरू कर दी है। 15 दिन में दस्तावेज जब्त करने की प्रक्रिया जारी है। इस जांच में जब बाकी जिलों का हिसाब सामने आएगा, तो कई और बड़े नाम एक्सपोज हो सकते हैं। NGO स्कैम के पार्ट-2 में पढ़िए इन सवालों के जवाब