सड़क काटने-IED लगाने वाले सरेंडर्ड नक्सली अब चला रहे बैंबू-राफ्टिंग:दंतेवाड़ा में पर्यटकों को करा रहे डैम की सैर; गरियाबंद में मनाई पहली दिवाली

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छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में IED लगाने, सड़क काटने, पुल तोड़ने के मास्टरमाइंड रहे नक्सली अब जीवन की नई राह पर हैं। सरेंडर करने के बाद ये नक्सली अब बैंबू राफ्टिंग चलाकर पर्यटकों को खूबसूरत डैम की सैर करा रहे हैं। यह देश का पहला उदाहरण है, जहां पूर्व नक्सली गांव वालों के साथ मिलकर वाटर स्पोर्ट्स का संचालन कर रहे हैं। इससे उन्हें मुख्यधारा में सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अवसर मिला है, वे समाज में फिर से अपनी पहचान बना पा रहे हैं। साथ ही आर्थिक रूप से भी मजबूत हो रहे हैं। इसके अलावा गरियाबंद जिले में सरेंडर करने वाली महिला नक्सलियों ने 19 साल बाद दिवाली मनाई। हिंसा का रास्ता छोड़कर मुख्यधारा में लौटीं पूर्व नक्सली पहली ‘आजाद’ दीपावली के लिए बाजार में खरीददारी करने निकली। इनमें 8 लाख की इनामी जानसी समेत जुनकी, वैजंती, मंजुला और मैना शामिल हैं। पहले देखिए ये तस्वीरें- दंतेवाड़ा के कुम्हाररास डैम में बैंबू राफ्टिंग की शुरुआत दरअसल, दंतेवाड़ा जिले के कुम्हाररास डैम में वन विभाग और जिला प्रशासन की टीम ने बैंबू राफ्टिंग की शुरुआत की है। ये जिले का पहला बैंबू राफ्टिंग एडवेंचर स्पोर्ट्स है। सरेंडर किए नक्सली और गांव के बेरोजगार युवाओं को आर्थिक रूप से मजबूत करने और आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश है। यहां मैनेजमेंट का सारा खर्च वन विभाग और जिला प्रशासन उठा रही है। संचालन से जो पैसे आ रहे हैं वो समिति रख रही है। कमाई के पैसे सभी में बराबर बंट रहे हैं। इस वाटर स्पोर्ट्स को शुरू हुए ही अभी लगभग 8 से 9 दिन ही हुए हैं। हर दिन करीब 50 से 80 पर्यटक पहुंच रहे हैं। वहीं छुट्टियों में और ज्यादा लोग पहुंचेंगे। एक ही जगह पर सारी सुविधा दंतेवाड़ा जिले में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एक ही जगह पर बैंबू राफ्टिंग, मोटरबोट, कयाकिंग जैसे वाटर स्पोर्ट्स की शुरुआत की गई है। इसके लिए सबसे पहले गांव के स्थानीय युवाओं की एक पर्यटन समिति बनाई गई। जिसके बाद इस समिति के साथ ही कमालूर गांव के रहने वाले 2 से 3 सरेंडर नक्सलियों को भी शामिल किया गया। पहले ट्रेनिंग दी, माहिर हुए तो पानी में उतारा सरेंडर नक्सलियों ने यह काम करने खुद भी दिलचस्पी दिखाई। सबसे पहले इन सभी को तैराकी के गुर सिखाए गए। लाइफ जैकेट पहनना, उतारना सिखाया गया। जिसके बाद बस्तर जिले के धुड़मारास गांव में बैंबू राफ्टिंग का संचालन करने वाले युवाओं को बुलाया गया। उन्होंने बैंबू राफ्टिंग बनाने से लेकर चलाने तक की ट्रेनिंग दी। करीब 15 से 20 दिनों की ट्रेनिंग लेने के बाद सरेंडर नक्सली समेत पर्यटन समिति के इस काम में माहिर हुए। अब इन सभी वाटर स्पोर्ट्स का संचालन कर रहे हैं। सड़क काटने, पुल तोड़ने, IED लगाने के थे मास्टरमाइंड कमालूर गांव के रहने वाले सरेंडर नक्सली मोहन भास्कर का कहना है कि ‘मैंने लंबे समय तक नक्सल संगठन के साथ जुड़कर काम किया। बड़े लीडर्स के लिए खाने की व्यवस्था करना, बैठक की व्यवस्था का काम करता था। इसके साथ ही इलाके में IED लगाना, सड़क काटने का काम, पुलिस की रेकी करना, पुल तोड़ना, पेड़ काटकर मार्ग बंद करने जैसा काम किया करता था। कुछ ही समय पहले दंतेवाड़ा पुलिस के सामने सरेंडर कर मुख्यधारा से जुड़ गया। वहीं अब बैंबू राफ्टिंग की ट्रेनिंग लिया हूं। पर्यटकों को इसपर बिठाकर सैर भी करवा रहा हूं। काम में मजा आ रहा है। पैसे भी कमा रहा हूं।’ पैसे कमाने के लिए कर रहे काम वहीं दूसरा सरेंडर नक्सली कमलू भी कमालूर का रहने वाला है। कमलू भी मोहन भास्कर की ही तरह नक्सलियों के लिए काम किया करता था। अब सरेंडर के बाद कमलू का कहना है कि, पैसे कमाने के लिए बैंबू राफ्टिंग चला रहे हैं। काम में भी मजा है और इनकम भी हो रही है। जानकारी के मुताबिक, अभी 8-9 दिन पहले ही राफ्टिंग की शुरुआत हुई हैं। इन्हें हर महीने कितनी सैलरी मिल रही इसका डेटा अभी सामने नहीं आया है। एक महीने पूरे होने पर सैलरी दी जाएगी। अब जानिए कैसे पहुंच सकते हैं आप? सिर्फ इसी जगह को क्यों चुना? वैसे तो बैंबू राफ्टिंग और वाटर स्पोर्ट्स के लिए दंतेवाड़ा में और भी कई जगह है, लेकिन कुम्हाररास डैम में इसे शुरू करने की सबसे बड़ी वजह प्राकृतिक खूबसूरती है। डैम चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। ठंड के दिनों धुंध या फिर हल्की बारिश के बाद बादलों का डेरा दिखता है, जो यहां की खूबसूरती और बढ़ा देता है। साथ ही गांव में शांति है। पक्षियों की चहचहाहट, शांत वातावरण और खूबसूरत नजारा ही आकर्षण का केंद्र है। 50 से लेकर 200 रुपए तक टिकट यहां मोटर बोट के लिए 50 रुपए और बैंबू राफ्टिंग के लिए 200 रुपए निर्धारित किए गए हैं। जल्द ही टिकट काउंटर बनाया जाएगा, साथ जी कैंटीन की भी सुविधा मिलेगी जिसमें बस्तर का पारंपरिक फूड मिलेगा। व्यवस्था ऐसी की जा रही है कि कोई भी पर्यटक दिन के करीब 5 से 6 घंटे बड़ी असानी से यहां बिता सके। पर्यटक बोले- वीडियो में देखा था, बैठकर मजा आ गया यहां पहुंचे पर्यटक कुणाल और प्रभात मरकाम ने कहा कि, बैंबू राफ्टिंग की शानदार शुरुआत की गई है। हमने सिर्फ वीडियो में ही देखा था। लेकिन आज इसपर बैठकर सैर करने का लुत्फ उठाएं हैं। मजा आ गया। DFO बोले- पहले ट्रेनिंग दी, फिर शुरू किया दंतेवाड़ा जिले के DFO सागर जाधव ने कहा कि, कुम्हाररास में इसकी शुरुआत की गई है। पर्यटन समिति के साथ मिलकर सरेंडर नक्सली इसका संचालन कर रहे हैं। और भी सरेंडर नक्सली आएंगे तो हम उन्हें भी ट्रेनिंग देंगे। ट्रेनिंग देने के लिए धूड़मारास की समिति के सदस्यों को बुलाया गया था। इन्हें बैंबू राफ्टिंग में माहिर किया गया, जिसके बाद ही चलाने पानी में उतारा गया है। ये पहला प्रयास है। इसी तरह जिले के और अन्य जगहों पर भी इसकी शुरुआत की जाएगी। हमारी पूरी कोशिश है कि इन्हें आर्थिक रूप से मजबूत किया जाए। कलेक्टर बोले- पुनर्वास नीति का मिल रहा फायदा दंतेवाड़ा कलेक्टर कुणाल दुदावत ने कहा कि, सरेंडर पुनर्वास पॉलिसी की मंशा के अनुरूप ही कौशल प्रशिक्षण दिया जा रहा है, यही हमारा लक्ष्य है। बैंबू राफ्टिंग का संचालन करने वाले सरेंडर नक्सलियों को आर्थिक रूप से मजबूत करने की पूरी कोशिश है। इतना तय है कि ये इस काम से अपना घर आसानी से चला लेंगे। गरियाबंद में हिंसा छोड़ने के बाद पहली दिवाली गरियाबंद जिले में 5 महिला नक्सलियों में जानसी नगरी एरिया कमेटी की कमांडर थी। इस पर 8 लाख का इनाम था। ये धमतरी रिसगांव नक्सली हमले में शामिल थी। वहीं, जुनकी पर 5 लाख, बाकी अन्य तीनों कमेटी के मेंबर थे। इन पर 2-2 लाख का इनाम था। ये बड़े नक्सलियों के अंगरक्षक होते थे। सभी ने हाल ही में सरेंडर किया है। बीते दिनों इन दोनों सहित कई अन्य पुरुष और महिला नक्सलियों ने सरकार की आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति से प्रभावित होकर हिंसा का रास्ता छोड़ दिया था। समाज की मुख्यधारा में लौटने के बाद, यह उन सभी के लिए पहला दीपावली का त्योहार है, जिसे वे बिना किसी डर या प्रतिबंध के मना रहे हैं। उनके चेहरों पर एक नई शुरुआत की खुशी और संतोष साफ झलक रहा था। 19 सालों तक जंगल में रहे, त्योहार नहीं मनाते थे 8 लाख की इनामी पूर्व नक्सली जानसी ने बताया कि 19 सालों तक नक्सलियों के साथ रहने के बाद जंगल से निकलकर यह उनकी पहली आज़ादी की दीपावली है। वहीं, 5 लाख की इनामी जुनकी ने कहा कि उन्होंने पहले कभी दीपावली नहीं मनाई थी, क्योंकि नक्सलवाद से पहले वह बस्तर के अंदरूनी क्षेत्र में रहती थीं जहां यह त्योहार नहीं मनाया जाता। यह उनकी पहली दीपावली है और वे इसके लिए बेहद खुश हैं। एक अन्य पूर्व नक्सली मैना ने बताया कि जंगल में किसी भी त्योहार का नाम लेना भी मना था, त्योहार मनाना तो दूर की बात है। अब वह अपने साथियों के साथ दीपावली मनाने के लिए काफी उत्सुक हैं। ………………………… इससे जड़ी खबर भी पढ़ें… सरेंडर नक्सली-जोड़े ने थाने में रचाई शादी…VIDEO:2024 में लाल-आतंक का साथ छोड़ा, पुलिस में शामिल हुए, प्यार हुआ, अब जीवन साथ बिताने का फैसला छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में सरेंडर नक्सली जोड़े ने विवाह कर समाज की मुख्यधारा में लौटने का संकल्प लिया। पखांजूर थाना परिसर में रविवार को यह शादी संपन्न हुई। कभी हथियार थामने वाले हाथ आज मेहंदी से सजे थे। पढ़ें पूरी खबर…

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