47 साल पहले बन जाता छत्तीसगढ़…हस्ताक्षर को तैयार थे PM:छत्तीसगढ़ी समाज से मोरारजी बोले थे-मेरा समर्थन, लेकिन MP के CM वीरेंद्र बने थे रोड़ा

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2 दिसंबर 1978…यह तारीख छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन के इतिहास में दर्ज है। दिल्ली स्थित प्रधानमंत्री कार्यालय में उस दिन छत्तीसगढ़ी समाज का 15 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई से मिलने पहुंचा था। यह मुलाकात सिर्फ 15 मिनट के लिए तय थी, लेकिन बातचीत का महत्व और आंकड़ों की गहराई देख PM ने अपने शेड्यूल को बढ़ाकर पूरे सवा घंटे तक प्रतिनिधियों की बातें सुनीं। इसी दिन पहली बार केंद्र सरकार की तरफ से स्पष्ट संकेत मिले थे। हालांकि 47 साल पहले MP के CM रहे वीरेंद्र कुमार सकलेचा ने अलग राज्य बनाने की मांग पर इनकार कर दिया था, जिससे छत्तीसगढ़ के लोगों का सपना टूट गया था। इस रिपोर्ट में पढ़िए 47 साल पहले दिल्ली के PMO में हुई वो ऐतिहासिक बैठक, जिसने अलग राज्य आंदोलन को नई दिशा दी… 1978 में रायपुर में निकाली गई थी रैली छत्तीसगढ़ समाज पार्टी के संगठन सचिव जागेश्वर प्रसाद आज के इतिहास को लेकर बताते हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के लिए आंदोलन जो पकड़ रहा था। उस समय पहली बार 23 अक्टूबर 1978 को रायपुर में अलग छत्तीसगढ़ राज्य की मांग को लेकर ऐतिहासिक रैली निकाली गई थी। इस रैली में 10,000 से ज्यादा लोग शामिल हुए, जिनमें बड़ी संख्या में स्वतंत्रता सेनानी, वकील, छात्र, किसान, मजदूर और छत्तीसगढ़ी समाज के प्रतिनिधि शामिल थे। यह रैली राज्य आंदोलन में पहला बड़ा मील का पत्थर साबित हुई। 2 दिसंबर को PMO में अलग राज्य बनाने की चर्चा जागेश्वर प्रसाद ने बताया कि छत्तीसगढ़ी समाज के प्रेसिडेंट और 15 रिप्रेजेंटेटिव 2 दिसंबर को प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई से अलग राज्य के मुद्दे पर बात करने के लिए दिल्ली गए थे। डेलीगेशन को आचार्य नरेंद्र दुबे लीड कर रहे थे, जिन्हें प्रधानमंत्री ने खास सम्मान दिया। वे एक फ्रीडम फाइटर थे। इमरजेंसी के दौरान MISA कैदी थे। प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग के लिए सिर्फ 15 मिनट का समय दिया गया था। डेलीगेशन ने प्रधानमंत्री को एक डिटेल्ड मास्टर प्लान दिखाया, जिसमें छत्तीसगढ़ को आत्मनिर्भर बनाने, सिंचाई कैपेसिटी बढ़ाने, ग्रामीण इकॉनमी को मजबूत करने, रोजगार पैदा करने के प्लान थे। इस दौरान छत्तीसगढ़ी समाज के प्रेसिडेंट ने कहा कि यह इलाका एक कल्चरल पहचान वाला खुशहाल राज्य बने। मास्टर प्लान सुनकर उस समय के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई बहुत इम्प्रेस हुए। 15 मिनट की बातचीत लगभग 45 मिनट तक चली। आंकड़ों और तर्कों ने PM को प्रभावित किया जागेश्वर बताते हैं कि बैठक में प्रतिनिधि दल ने सांख्यिकी आंकड़ों के साथ बताया कि मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा राजस्व योगदान छत्तीसगढ़ क्षेत्र देता है, लेकिन विकास के नाम पर यहां अनुपातिक हिस्सा नहीं मिलता। संसाधनों से समृद्ध क्षेत्र होने के बावजूद छत्तीसगढ़ लगातार पिछड़ रहा है। इन बिंदुओं ने प्रधानमंत्री पर गहरा प्रभाव डाला। पूरी चर्चा सुनने के बाद PM मोरार जी देसाई ने कहा कि मैं छत्तीसगढ़ राज्य की मांग के समर्थन में हूं, लेकिन मध्यप्रदेश सरकार अलग छत्तीसगढ़ राज्य पर प्रस्ताव पारित कर देता है, तो दिल्ली सरकार इसमें देरी नहीं करेगी। यह पहली बार था जब किसी प्रधानमंत्री ने अलग राज्य की मांग को सार्वजनिक रूप से सकारात्मक संकेत दिए। आंदोलनकारियों के लिए यह एक बड़ी जीत थी, जिसने पूरे प्रदेश में ऊर्जा और भरोसा पैदा किया। 47 साल पहले ही बन जाता छत्तीसगढ़ राज्य, CM ने नहीं दी सहमति जागेश्वर बताते हैं कि जब डेलीगेशन ने इस बारे में मध्य प्रदेश के उस समय के मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा को लिखा, तो उन्होंने अलग राज्य छत्तीसगढ़ बनाने से मना कर दिया। यह छत्तीसगढ़ के तुरंत बनने में सबसे बड़ी रुकावट बन गया। जागेश्वर प्रसाद बताते हैं कि छत्तीसगढ़ी समाज की बातों से प्रधानमंत्री हमसे इतने प्रभावित थे कि वे छत्तीसगढ़ राज्य को अलग राज्य बनाने के लिए हस्ताक्षर कर देते, लेकिन राजनीति पैंतरों के चलते उनकी कलम थम गई। बाद में मोरार जी देसाई की सरकार गिर गई। राजनीतिक पैंतरे नहीं चलते तो आज से 47 साल पहले ही छत्तीसगढ़ राज्य बन जाता । 1965 से की थी अलग राज्य बनाने की मांग वैसे तो छत्तीसगढ़ को अलग राज्य बनाने की मांग 1918 में ही शुरू हो गई थी, लेकिन खूबचंद बघेल और बैरिस्टर छेदीलाल जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने समय-समय पर अलग राज्य की मांग उठाई। 16 मई 1965 को जब छत्तीसगढ़ी समाज की स्थापना हुई, तो छत्तीसगढ़ बनाने की नींव रखी गई। रायपुर में पहला छत्तीसगढ़ी सम्मेलन हुआ। छत्तीसगढ़ी समाज पार्टी के संगठन सचिव जागेश्वर प्रसाद बताते हैं कि पहला छत्तीसगढ़ी सम्मेलन 1965 में रायपुर के आरडी तिवारी स्कूल में हुआ था। यहीं से अलग छत्तीसगढ़ राज्य के लिए आंदोलन की शुरुआत हुई। इसके बाद 1967 में रायपुर के ईदगाह भाटा में एक बड़ा सम्मेलन हुआ। राज्य की मांग के समर्थन में 5,000 हस्ताक्षर इकट्ठा किए गए। जागेश्वर प्रसाद बताते हैं कि आचार्य नरेंद्र दुबे और रामानंद शुक्ला के नेतृत्व में अलग राज्य की मांग के समर्थन में 5,000 हस्ताक्षर इकट्ठा किए गए। 1970 के बाद छत्तीसगढ़ी आंदोलन एक जनक्रांति बन गया। हर गांव और हेडक्वार्टर में धरने और रैलियां चलती रहीं। 1978 में रायपुर के जयस्तंभ चौक पर हुई रैली में 10,000-15,000 लोग शामिल हुए। 1979 में छत्तीसगढ़ी वाहिनी बनी। भोपाल असेंबली से लेकर दिल्ली में पार्लियामेंट तक विरोध प्रदर्शन हुए। 1970 के बाद छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन जनक्रांति बन गया जागेश्वर बताते है कि 1970 के बाद छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन जनक्रांति बन गया। हर गांव और मुख्यालयों में धरने, रैलियां का सिलसिला निरंतर चलता रहा। 1978 में रायपुर जयस्तंभ चौक पर रैली में 10-15 हजार लोग शामिल हुए थे। 1979 छत्तीसगढ़ी वाहिनी’ का गठन किया गया । भोपाल विधानसभा से लेकर दिल्ली में संसद का घेराव किया गया। छत्तीसगढ़ी समाज पार्टी के नेतृत्व में 24 जुलाई 2000 को संसद घेराव किया गया, जिसमें सैकड़ों की संख्या में कार्यकर्ताओं ने दिल्ली पहुंचकर संसद भवन का घेराव किया। उन्होंने राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री सचिवालय और लोकसभा सचिवालय तक ज्ञापन दिए, उस दिन आंदोलनकारियों ने स्पष्ट चेतावनी दी। 36 घंटे में छत्तीसगढ़ राज्य गठन की घोषणा करो, महिलाओं की बड़ी भागीदारी इस आंदोलन में दिखाई दी। छत्तीसगढ़ की सामूहिक प्रयास से तीन महीने बाद 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य बना। 10 तस्वीरों में देखिए राज्य निर्माण की मांग को लेकर किए गए आंदोलन…

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