भारत-रूस एक-दूसरे का मिलिट्री बेस इस्तेमाल कर सकेंगे:रक्षा समझौते को रूसी संसद की मंजूरी, पुतिन के भारत दौरे से पहले ऐलान

0
3

रूस की संसद के निचले सदन स्टेट ड्यूमा ने मंगलवार को भारत और रूस के बीच हुए एक सैन्य समझौते ‘RELOS’ को मंजूरी दे दी है। इसके तहत दोनों देशों की सेनाएं एक-दूसरे के मिलिट्री बेस, फैसिलिटीज और संसाधनों का इस्तेमाल और एक्सचेंज कर सकेंगी। इनके विमान, वॉरशिप ईंधन भरने, मिलिट्री बेस पर डेरा डालने या अन्य लॉजिस्टिक सुविधाओं का इस्तेमाल कर सकेंगे। इस पर आने वाला खर्च बराबर-बराबर उठाया जाएगा। यह मंजूरी राष्ट्रपति पुतिन के भारत दौरे से दो दिन पहले दी गई है। यह समझौता इस साल 18 फरवरी को भारत और रूस के बीच किया गया था। पिछले हफ्ते रूसी प्रधानमंत्री मिखाइल मिशुस्तिन ने इसे संसद में मंजूरी के लिए भेजा था। रूस-भारत एक दूसरे की आसानी से मदद कर सकेंगे रूसी संसद के स्पीकर ने कहा कि भारत और रूस के रिश्ते बहुत मजबूत हैं और यह समझौता उन रिश्तों को और बेहतर बनाएगा। रूसी सरकार ने भी बताया कि इस समझौते से दोनों देशों की सैन्य साझेदारी ज्यादा मजबूत होगी और जरूरत के समय एक-दूसरे की मदद करना आसान हो जाएगा। इस समझौते के बाद भारत ऐसा पहला देश बन जाएगा, जिसका अमेरिका और रूस के साथ सैन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर साझा करने का समझौता होगा। नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश त्रिपाठी ने मंगलवार को भास्कर के सवाल पर इसकी पुष्टि की। उन्होंने बताया कि रूस के साथ यह समझौता अंतिम चरण में है। इससे अमेरिका-रूस के बीच किसी सैन्य टकराव की नौबत पैदा नहीं होगी। क्यों खास है RELOS समझौता रेसिप्रोकल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक सपोर्ट (RELOS) को दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी में अब तक के सबसे अहम रक्षा समझौतों में से एक माना जा रहा है। यह एक डिफेंस लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज समझौता है। इसके जिसके तहत भारत और रूस की सेनाएं एक-दूसरे के सैन्य बेस, बंदरगाह (Ports), एयरफील्ड और सप्लाई पॉइंट का इस्तेमाल कर सकेंगी। यह उपयोग सिर्फ ईंधन भरने, मरम्मत, स्टॉक रिफिल, मेडिकल सपोर्ट, ट्रांजिट और मूवमेंट जैसे कामों के लिए होगा। भारत ने ऐसे ही समझौते अमेरिका (LEMOA), फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और कई अन्य देशों के साथ किए हैं। अब रूस भी इसमें शामिल हो रहा है। पुतिन 4 दिसंबर को भारत आ रहे, सीक्रेट जगह रुकेंगे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 4 दिसंबर को भारत आ रहे हैं। वे नई दिल्ली में 23वें भारत-रूस वार्षिक सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। पुतिन दिल्ली में सीक्रेट जगह रुकेंगे। इसका ब्योरा सार्वजनिक नहीं किया गया है। 4-5 दिसंबर को दिल्ली मल्टी लेयर सिक्योरिटी के घेरे में रहेगी। राजधानी के ज्यादातर इलाकों में स्वाट टीम, एंटी टेरर स्क्वॉड, क्विक एक्शन टीम्स तैनात रहेंगी। रूस की एडवांस सिक्योरिटी और प्रोटोकॉल टीम के 50 से ज्यादा मेंबर दिल्ली पहुंच चुके हैं। डिफेंस समझौते पर सबसे ज्यादा फोकस रहेगा पुतिन की इस यात्रा में सबसे ज्यादा फोकस डिफेंस समझौते पर रहेगा। रूस पहले ही कह चुका है कि वो भारत को अपना SU-57 स्टेल्थ फाइटर जेट देने के लिए तैयार है। यह रूस का सबसे एडवांस लड़ाकू विमान है। भारत पहले ही अपने वायुसेना बेड़े को मजबूत करने के लिए नए विकल्प तलाश रहा है। इसके अलावा भविष्य में S-500 पर सहयोग, ब्रह्मोस मिसाइल का अगला वर्जन और दोनों देशों की नौसेनाओं के लिए मिलकर वॉरशिप बनाने जैसी योजनाओं पर बातचीत होने की उम्मीद है। रूसी S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदने की उम्मीद न्यूज एजेंसी PTI के मुताबिक, भारत की रूस से कुछ और S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदने पर बातचीत हो सकती है। क्योंकि यह पाकिस्तान के खिलाफ हुए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान काफी प्रभावी रहे थे। ऐसे पांच सिस्टम्स की डील पहले ही हुई थी, जिनमें से 3 भारत को मिल चुके हैं। चौथे स्क्वाड्रन की डिलीवरी रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण रुकी हुई है। S-400 ट्रायम्फ रूस का एडवांस्ड मिसाइल सिस्टम है, जिसे 2007 में लॉन्च किया गया था। यह सिस्टम फाइटर जेट, बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइल, ड्रोन और स्टेल्थ विमानों तक को मार गिरा सकता है। यह हवा में कई तरह के खतरों से बचाव के लिए एक मजबूत ढाल की तरह काम करता है। दुनिया के बेहद आधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम में इसकी गिनती होती है। ब्रिटिश-फ्रेंच और जर्मन राजदूत ने पुतिन के खिलाफ आर्टिकल लिखा रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा से ठीक पहले एक बड़ा विवाद शुरू हो गया है। ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के राजदूतों ने एक भारतीय अखबार में लेख लिखकर रूस पर आरोप लगाया कि उसने यूक्रेन पर बहुत कठोर तरीके से हमला किया है और वह शांति की कोशिशों को गंभीरता से नहीं ले रहा। इस लेख में यह भी कहा गया कि रूस साइबर हमलों और गलत सूचनाओं के जरिए दुनिया में अस्थिरता फैलाने की कोशिश कर रहा है। भारत के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने इस आर्टिकल पर नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि किसी तीसरे देश के बारे में भारत को इस तरह सार्वजनिक मंच पर सलाह देना कूटनीतिक तौर पर सही तरीका नहीं है। ऐसे कदम स्वीकार नहीं किए जा सकते। पूर्व विदेश सचिव कन्वल सिब्बल ने भी इस लेख की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि यह लेख भारत के आंतरिक मामलों में दखल जैसा है और इसका मकसद भारत में रूस के खिलाफ माहौल बनाना हो सकता है। —————- यह खबर भी पढ़ें… भारत को क्यों नहीं मिल रहा रूस से सस्ता तेल:अमेरिका, सऊदी और UAE से खरीद बढ़ी; ट्रम्प की धमकी या कोई और वजह भारत ने 4 साल में पहली बार रूस से तेल खरीदना कम कर दिया है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक सितंबर 2024 में रूस का शेयर 41% था जो सितंबर 2025 में घटकर 31% रह गया। इसकी एक बड़ी वजह भारत पर अमेरिका का 25% एक्स्ट्रा टैरिफ है। पढ़ें पूरी खबर…

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here