जिस गांव को UN ने चुना…भारत के नक्शे में नहीं:200 साल पहले धुड़मारास को अंग्रेजों ने बसाया; बैंबू राफ्टिंग-होम स्टे से मिली अंतरराष्ट्रीय पहचान

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बस्तर के धुड़मारास गांव ने कयाकिंग, बैंबू राफ्टिंग और होम स्टे ईको टूरिज्म से अंतरराष्ट्रीय पहचान बना ली है। UN के 60 देशों के बेस्ट गांव की लिस्ट में धुड़मारास देशभर में इकलौता है। UN टूरिज्म ने बेस्ट टूरिज्म विलेज के लिए 55 गांवों का चयन किया है। इसके अपग्रेडेशन (उन्नयन) लिस्ट में 20 गांवों शामिल हैं। सूची जारी होने के बाद दैनिक भास्कर की टीम जब धुड़मारास पहुंची तो पता चला कि ये गांव देश के नक्शे में ही नहीं है। 200 साल पहले इसे अंग्रेजों ने बसाया था। यहां के लोगों और पंचायत सचिव के मुताबिक कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान, फॉरेस्ट और राजस्व के बीच पेंच फंसा हुआ है। गांव में 40 से 50 घर बस्तर के संभागीय मुख्यालय जगदलपुर से करीब 40 किमी दूर कोटमसर पंचायत का धुड़मारास आश्रित गांव है। यहां लगभग 40 से 45 घर हैं और आबादी 240 से 250 के करीब है। ग्रामीण मानसिंह, तुलसी और ईश्वर के मुताबिक उनकी करीब 5 से 6 पीढ़ी गुजर गई है। गांव में मूलभूत सुविधाओं की कमी गांव में आज भी बिजली, सड़क पानी की कमी है। गांव की ये पहली पीढ़ी है जो 10वीं-12वीं से लेकर ग्रेजुएट हुई है। 2017 से पहले जाति-निवास प्रमाण पत्र भी नहीं बनता था। लेकिन 2017 के बाद से ग्राम सभा के प्रस्ताव और सरपंच, सचिव के दस्तखत के बाद अस्थाई जाति प्रमाण बना। जिससे यहां की युवा पीढ़ी पढ़ाई कर पाई। क्योंकि 8वीं के बाद स्कूलों में जाति प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है। बिचौलियों को बेचते हैं धान इस गांव के किसी भी ग्रामीण का पट्टा नहीं बन पाया है। सैकड़ों एकड़ जमीन में उपजे धान को ग्रामीण सरकार को नहीं बेच पा रहे हैं। मजबूरन बिचौलियों को औने-पौने दाम में बेचते हैं। इन्हें न ही लोन मिल पा रहा और न ही इस गांव का एक भी व्यक्ति किसी भी सरकारी नौकरी में है। यहां तक कि प्यून और शिक्षक की नौकरी भी आज तक किसी को नहीं मिली। स्कूल जर्जर, खुद बनाया नया भवन लोगों के मुताबिक कुछ साल पहले एक स्कूल का निर्माण करवाया गया था। लेकिन जब गांव ही नक्शे में नहीं है तो स्कूल कैसे बनता? इसलिए ग्रामीणों की सहमति से पेदावाड़ा गांव के बॉर्डर पर भवन बनाया गया। गांव के ईश्वर और तुलसी का कहना है कि प्रशासन ने जो स्कूल भवन बनाकर दिया था वो जर्जर हो गया है। पहला भवन ही बहुत मुश्किल से बना इसलिए दूसरे की उम्मीद ही छोड़ दी थी। अब ग्रामीणों ने खुद से एक भवन बनाया है, जिसमें प्राथमिक और माध्यमिक शाला लगती है। पहले गांव तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं थी। इसके लिए बहुत से आंदोलन करने पड़े। जो सड़क बनी है वो किसी अन्य गांव के नाम से स्वीकृत है। हालांकि, सड़क बनने से लाभ हुआ है। खुद की मेहनत से बनाई गांव की पहचान ग्रामीण मानसिंह का कहना है कि जब शासन, प्रशासन ने नहीं सुनी, हमें कहीं रोजगार नहीं मिला तो प्रकृति ने हमें रोजगार दिया। गांव की जीवनदायिनी कांगेर नदी में बैंबू राफ्टिंग करवाने का प्लान किया। ईको टूरिज्म विलेज के लिए गांव को डेवलप किया गया। इसके लिए ग्रामीणों ने कांगेर नदी के लोकेशन को चुना। बांस की नाव बनाई। फिर बैंबू राफ्टिंग शुरू की। हालांकि, इसके लिए इन्हें कोई ट्रेनिंग नहीं मिली थी। ग्राम सभा में बनाई समिति सभी ग्रामीणों ने मिलकर ग्रामसभा में सामुदायिक वन संसाधन प्रबंधन समिति का गठन किया। जिसके अध्यक्ष मानसिंग बने। समिति में गांव के कुल 31 से 35 घरों से एक-एक सदस्यों को शामिल किया गया। सभी लोग तैराकी में माहिर हैं। बैंबू राफ्टिंग पहले खुद की। फिर सोशल मीडिया के जरिए इसका प्रचार करवाया। मानसिंह और ईश्वर कहते हैं कि टूरिज्म के नाम पर प्रशासन की तरफ से इन्हें अब तक किसी भी तरह से सपोर्ट नहीं मिला है। इन्होंने न तो कयाकिंग के लिए कभी सरकारी मदद मांगी और न ही बैंबू राफ्टिंग के लिए कोई सरकारी फंड दिया गया। हर महीने 2500 पर्यटक पहुंचते हैं जैसे-जैसे सोशल मीडिया के माध्यम से इसका प्रचार होता गया, टूरिस्ट की संख्या बढ़ती गई। यहां ग्रामीणों ने मिलकर होम स्टे भी बना दिया। जिसमें बस्तर आर्ट से लेकर, बस्तर के व्यंजन को शामिल किया। पिछले करीब डेढ़ साल में बारिश के 3 महीने को छोड़कर हर महीने लगभग 2 हजार से 2500 पर्यटक यहां पहुंच रहे हैं। जिसका रिकॉर्ड भी ये अपने पास रखे हैं। विदेशों से भी पहुंचते हैं पर्यटक बस्तर का यह गांव पिछले डेढ़ साल में इस कदर सुर्खियों में छाया की अब यहां विदेशी टूरिस्ट भी पहुंचते हैं। बैंबू राफ्टिंग में पर्यटकों को सैर करवाने वाले युवक महित बघेल ने कहा कि इटली और फ्रांस से भी पर्यटक यहां आकर गए हैं। उन्हें भी बहुत मजा आया। जाते-जाते कहकर जाते हैं सुपर विलेज। पंचायत सचिव बोलीं – नहीं है गांव का नक्शा जब ग्रामीणों ने अपनी समस्या बताई तो हमने सबसे पहले कोटमसर पंचायत सचिव दूसलिया भंडारी से बातचीत की। उन्होंने कहा कि गांव राजस्व रिकॉर्ड में नहीं था। हालांकि, अब इसकी प्रक्रिया शुरू की जा रही है। जब हमने उनसे पूछा कि इस गांव का राजस्व नक्शा है क्या? तो उन्होंने जवाब दिया कि इस गांव का रिकॉर्ड ही दर्ज नहीं है। न ही जिले के नक्शे में है और न ही देश के नक्शे में ये गांव है। 60 देशों में इन 20 गांव को अपग्रेडेशन प्रोग्राम में चयनित किया गया ………………….. छत्तीसगढ़ के धुड़मारास गांव से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें धुड़मारास बेस्ट टूरिज्म विलेज में सिलेक्ट:UN ने 60 देशों के 20 गांवों में किया शामिल; यहां बैंबू-राफ्टिंग से कयाकिंग की सुविधा UN टूरिज्म ने 60 देशों के बेस्ट गांवों के लिए अलग-अलग कैटेगरी की लिस्ट जारी की है। इसमें भारत का एक मात्र गांव अपग्रेडेशन यानी उन्नयन प्रोगाम की कैटेगरी में चयनित हुआ है। यह गांव है बस्तर का धुड़मारास। यहां जंगलों के बीच बैंबू राफ्टिंग से लेकर कयाकिंग तक सुविधा उपलब्ध है। पढ़ें पूरी खबर

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