दशहरा के पावन अवसर पर बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी, जब भगवान श्री राम ने माता सीता का हरण करने वाले रावण का वध किया था। ये बात सभी को पता है। लेकिन क्या आपको ये पता है कि रावण का वध करने के लिए श्री राम को देवी दुर्गा की मदद लेनी पड़ी थी। इतना ही नहीं देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए श्री राम अपनी एक आंख भी अर्पित करने के लिए तैयार हो गए थे। क्यों? चलिए जानते हैं रामायण की इस कहानी के बारे में।
भगवान राम ने मां दुर्गा को अपनी आंख अर्पित करने की कथा रामायण से जुड़ी हुई है, जो मुख्य रूप से अकाल बोधन नामक घटना के रूप में प्रचलित है। कहानी के मुताबिक, जब भगवान राम रावण से युद्ध करने के लिए तैयार हो रहे थे, तब उन्हें देवी दुर्गा के चंडी स्वरूप पूजा करने की सलाह दी गयी थी। श्री राम से कहा गया था कि अगर वह माता की आराधना करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त कर लेते हैं तो वह आसानी से रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त कर पाएंगे।
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देवी दुर्गा का आशीवार्द प्राप्त करने के लिए श्री राम ने अकाल बोधन किया। अकाल बोधन का अर्थ है असमय में पूजा। ये एक विशेष पूजा होती है, जिसके जरिए देवी दुर्गा को नींद से जगाया जाता है। सामान्यतः देवी दुर्गा की पूजा वसंत ऋतु (चैत्र नवरात्रि) में की जाती थी, लेकिन राम ने इस पूजा को शरद ऋतु में किया।
अकाल बोधन के लिए श्री राम को 108 नीले कमल की आवश्यकता थी। उन्होंने 108 कमल फूल एकत्रित किए पर पूजा के समय एक फूल कम पड़ गया। पूजा के दौरान श्री राम अपनी जगह से उठ नहीं सकते थे। फिर उन्हें याद आया कि उनकी मां उन्हें ‘कमल-नयन’ कहती थी क्योंकि उनकी आंखें कमल के फूल के समान है। इसलिए श्री राम ने अपनी एक आंख देवी दुर्गा को अर्पित करने का निश्चय किया। उनकी भक्ति और समर्पण से माँ दुर्गा प्रसन्न हुईं और उन्होंने राम को रावण के साथ युद्ध में विजय का आशीर्वाद दिया।
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अकाल बोधन की यह परंपरा बंगाल और पूर्वी भारत में विशेष रूप से लोकप्रिय है, जहाँ इसे दुर्गा पूजा के साथ जोड़ा जाता है। इसी घटना के बाद से शरद ऋतु में दुर्गा पूजा की शुरुआत मानी जाती है, जिसे आज भी बंगाल में विशेष धूमधाम से मनाया जाता है।