धरती पर सोलह श्रृंगार से चांदनी सी दमक रही महिलाओं को देखकर चांद ने भी शर्माकर बादलों के पर्दे में छिप गया। महिलाएं भगवान चंद्रदेव के दर्शनों के लिए आकाश को निहारती रही। फिर बादलों के बीच से चांद निकला और महिलाओं ने उसका दीदार किया। चंद्रदेव की अर्घ्य देकर पूजा की और पति के हाथों करवा से जल ग्रहण कर व्रत को खोला।