भाद्रपद का माह चल रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से अमावस्या तक के समय को पितृपक्ष कहा जाता है। पितृपक्ष के दौरान पितरों को स्मरण किया जाता, उनकी विधिवत पूजा-अर्चना करना और तर्पण करने की मान्यता है। धार्मिक मान्याता के अनुसार, पितृपक्ष के दौरान सभी शुभ कार्य बंद किए जाते हैं। इस दौरान पितरों को तृप्त और उनकी आत्मा को शांति के लिए पिंडदान और श्राद्ध किया जाता है। पितृपक्ष के दौरान अन्न के लिए सबसे पहले अग्नि को भोजन अर्पित करते है। इसके सबसे पहले गोबर का कंड़ा जलाया जाता है इसके बाद अग्नि में भोजन के टुकड़े डालकर जल की छीटें मारकर अग्निदेव को समर्पित करते हैं। इतना ही नहीं कुते, कौए, गाय और चीटी को भी भोजन कराया जाता है। इस लेख में हम आपको बताएंगे अग्नि को भोजन अर्पित करने के पीछे क्या कारण है।
पितृपक्ष में सबसे पहले अग्नि को भोजन क्यों दिया जाता?
एक पौराणिक कहानी के मुताबिक, देवतागण पितरों को पितृपक्ष में लगातर श्राद्ध का भोजन सेवन करने से परेशान हो गए। दोनों को अजीर्ण हो गया। दोनो ही मिलकर ब्राह्मा के पास पहुंचे। ब्राह्मा जी ने कहा, इसका उपाय अग्निदेव के पास है, इसलिए हमें उनके शरण में जाना चाहिए। सभी अग्नि देव के पास गए तो अग्निदेव ने कहा कि अब से हम लोग साथ में, देवता, पितृ और मैं भोजन करेंगे, जिससे अजीर्ण नहीं होगा। यही कारण श्राद्ध को दौरान सबसे पहले अग्नि को भोजन दिया जाता है।
श्रा्द्ध कर्म दोपहर में करना अच्छा माना जाता है
दरअसल, शास्त्रों में बताया गया कि दोपहर में श्राद्ध कर्म करने के लिए सबसे बढ़िया होता है। क्योंकि दोपहर में पितर देवता पूरे प्रभाव में होते हैं। माना जाता है कि पितर देव सूर्य की किरणों से भोग ग्रहण करते हैं। इसी वजह से दोपहर में धूप-ध्यान से पितर अपना भोजन अच्छे से ग्रहण करते हैं।