सनानत धर्म में व्रत-त्योहार और तिथियों का विशेष महत्व होता है। शरद पूर्णिमा एक धार्मिक त्योहार है जो हिंदू चंद्र माह अश्विन की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार, नया व्यवसाय या कार्य शुरू करने के लिए पूर्णिमा का दिन शुभ होता है। ज्योतिष के अनुसार, शरद पूर्णिमा सभी पूर्णिमाओं में विशेष मानी जाती है। यह उस रात का जश्न मनाता है जब भगवान कृष्ण ने ब्रज की गोपियों के साथ नृत्य किया था। इसलिए इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन, राधा-कृष्ण, शिव-पार्वती और लक्ष्मी नारायण भगवान के जोड़ों की चंद्रमा देवता के साथ पूजा की जाती थी। लंबे और स्वस्थ जीवन के लिए इस दिन फूल और खीर चढ़ाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी सभी 16 कलाओं में मौजूद रहता है। आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा का महत्व, खीर का अनुष्ठान और तिथियां।
हर साल अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन देवी लक्ष्मी धरती पर विचरण करने आती हैं।
जानें खुले आसमान के नीचे रखी हुई खीर क्यों खाई जाती है?
भक्तों को रात 9 बजे के बाद अपने घर के आंगन में खुले आसमान के नीचे खीर रखने के लिए कहते हैं। खीर गाय के दूध से ही बनी होनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि खीर को खुले आसमान के नीचे रखने से उसमें औषधीय गुण मौजूद रहते हैं। ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके खीर का सेवन करना चाहिए।
ज्योतिष के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा से औषधीय गुण धरती पर बरसते हैं और खीर पर गिरते हैं। अगले दिन उस खीर का सेवन करने से स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इससे मां लक्ष्मी की कृपा से घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है।