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Monday, October 14, 2024

लड़के से लड़की बनने वालों की कहानी:बेटा साड़ी-चूड़ी पहनने लगा, मेल बॉडी में फिलिंग्स फीमेल की,सेक्स चेंज करवाया; रेलवे-BSP में करते हैं जॉब

7 साल की उम्र में मुझे महसूस हुआ कि मैं लड़कों से थोड़ा अलग हूं। मुझे लड़कों के साथ खेलना कूदना पसंद नहीं था। मुझे मम्मी की साड़ी-चूड़ी और बहनों के साथ खेलना अच्छा लगता था। यह बातें रायपुर में ट्रांसवूमेन सखी ने दैनिक भास्कर से कही। दरअसल..2 दिन पहले रायपुर में LGBTQ कम्युनिटी ने प्राइड मार्च निकाला। इस मार्च में गाजे-बाजे के साथ वे लोग नाच रहे थे झूम रहे थे लेकिन उनकी हंसी के पीछे सखी जैसी कई कहानियां थीं, कोई परिवार से बिछड़ने की तो कोई अपने दम पर कुछ पाने की थी। दैनिक भास्कर के माइक और कैमरे पर ट्रांसवूमेन सखी जैसी कई लोगों ने खुलकर अपनी बात रखी, आपको बताते हैं ऐसी ही 3 लोगों की कहानी उनकी जुबानी ट्रांसवूमेन सखी नायक- मैं दस साल से घर के बाहर रहती हूं। मां-बाप की बदनामी ना हो इसलिए मैंने खुद को परिवार से अलग कर लिया। आज मेरी नानी डेथ हो गई है लेकिन मैं उनके अंतिम संस्कार में शामिल नही हो पा रही हूं। 7 साल की उम्र में जब मुझे एहसास हुआ कि लड़की जैसे रहना पसंद है तब से मैं संघर्ष कर रही हूं। मैं अपने जैसे लोगों से मिली और उनसे बात कर इस अनुभव को समझने लगी। अब मैं अलग रहकर अपना काम करती हूं। आज मेरे मम्मी-पापा को मेरे बारे में पता है लेकिन बदनामी के डर से मैं उनके पास नही जाती हूं। मुझे डर लगता है कि घर में मेरे मम्मी पापा के सामने लोग मुझे छक्का बुलाएंगे, हिजड़ा बुलाएंगे और उनको शर्म आएगी। रिश्तेदार के बीच वे मुंह दिखाने के लायक नहीं रहेंगे इसलिए मैंने खुद को अलग कर लिया। अभी मैं शॉपिंग मॉल में सुपरवाइज़र का काम काम करती हूं, मैं अपने काम से खुश हूं । स्कूल में लड़के मेरे कमर पर हाथ मारते थे सखी ने बताया जब मैं पांचवी क्लास में थी तब लड़के छेड़ते थे। मेरे पेट में, मेरे कमर में हाथ मारते थे। बुलिंग किया करते थे,कमेंट करते थे, इसलिए मुझे बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी। परिवार से अलग रहने के बाद मैंने पढ़ाई शुरू की और आज ग्रेजुएट हूं। अच्छे पोस्ट पर काम कर रही हूं । खुद की मेहनत से पैसा कमाया और सेक्स चेंज कराया सखी नायक ने बताया कि आज के समय में लोगों ने मुझे एक्ससेप्ट किया हैं। मैंने अपने मेहनत से पैसा कमाकर सेक्स चेंज करवाया। इस ऑपरेशन के लिए 5 लाख रुपए का खर्च आया था। अभी मेरा मन है, अच्छा इंसान मिले तो जीवन साथी बनाने के बारे में सोचूंगी। फिलहाल मैं समाज से यही चाहती हूं कि हमारी कम्युनिटी के लोगों के लिए उनके परिवार वाले भी सोचें और एक्सेप्ट करें। मैं नहीं चाहती कि मेरे जैसे किसी को तकलीफ हो और अपना परिवार छोड़कर 10 साल घर के बाहर रहे। ग्लैमिका पटेल- भिलाई स्टील प्लांट में डिप्टी मैनेजर के पोस्ट में काम करती हैं। उन्होंने कहा कि, 5 साल की उम्र से ही लड़की बनने का शौक था और बहन के कपड़े पहनना मुझे अच्छा लगता था। परिवार के दबाव के कारण उनकी इज्जत ना जाए इसलिए कई सालों तक मैं दबकर रहती थी। ग्लैमिका ने बताया कि बी.टेक की पढ़ाई पूरी करने के बाद जब मुझे नौकरी लगी तब मुझमें कॉन्फिडेंस बढ़ने लगा। शुरुआती दिनों में मैं ऑफिस एक लड़के की तरह ही जाती थी। धीरे-धीरे मैं अपने जेंडर को लेकर खुलने लगी। लोगों को मैंने समझाया और आज मैं उन्हीं के बीच एक लड़की की तरह काम करती हूं। पिछले साल ही मैंने अपना सेक्स चेंज करवाया है। लोगों ने मुझे स्वीकार किया है। लोग मेरा पुराना नाम भूल कर मेरे नए नाम से मुझे बुलाते हैं। कृष्ण की दासी बनकर रहूंगी ग्लैमिका ने कहा कि, अपना जेंडर चेंज करवाने के बाद मैं लड़की बन गई हूं और मैं अपनी लाइफ अच्छे से जी रही हूं। अगर जीवन में कोई अच्छा इंसान मिला तो मैं जीवन साथी के बारे में सोचूंगी, नहीं तो मैं कृष्णा जी को मानती हूं और जिंदगी भर उनकी दासी बनकर जी सकती हूं। सिंगल गे चाइल्ड को परिवार ने स्वीकार किया मनोज उर्फ विशाखा- रायपुर रेलवे डिपार्टमेंट में काम करते हैं। उन्होंने बताया कि, मैं 8 साल का था तब मुझे पता चला मैं गे हूं। मेरा शरीर लड़के का था और फीलिंग एक लड़की की तरह थी। मुझे अट्रेक्शन लड़कों में ही होता था और मुझे लगा कि मैं गलत बॉडी में हूं। शुरुआती दिनों में मुझे बहुत तकलीफ हुई स्कूल से लेकर कॉलेज तक। धीरे-धीरे मुझे कॉन्फिडेंस आया और मैं लोगों से ओपन होना शुरू हुआ। मैंने अपने परिवार को जेंडर के बारे में बता दिया है और मैं सिंगल चाइल्ड हूं, जिसे मेरे परिवार वालों ने एक्सेप्ट किया है। मेरे ऑफिस में भी सभी को पता है कि मैं गे हूं। किसी को कोई समस्या नहीं होती सभी ऑफिस के लोग मुझे सपोर्ट करते हैं।

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